मनोज कुमार के विदा होने पर...

– *कमलेश भारतीय
मनोज कुमार, जिन्हें प्यार से भारत कुमार भी कहा जाता है, अब विदा हो गए। बेशक, वे भारत कुमार कहलाने योग्य थे। राज कपूर के बाद वे एक नए शो मैन बने, जिन्होंने अपनी बनाई फिल्मों में भारत, भारतीयता और संस्कृति को बचाए रखने का भरपूर प्रयास किया। ऐबटाबाद (अब पाकिस्तान) में जन्मे मनोज कुमार का असली नाम हरिकृष्ण गोस्वामी था। वे दस साल के थे, जब विभाजन की पीड़ा को सहा, जिसे वे कभी नहीं भूल पाए और यही संभवतः देशभक्ति के बीज उनकी फिल्मों में आए होंगे। वे परिवार के साथ विभाजन के समय दिल्ली आ गए और फिल्मों में उनकी प्रेरणा दिलीप कुमार रहे। दिलीप कुमार की एक फिल्म में नायक का नाम 'मनोज कुमार' था, और बस, हरिकृष्ण गोस्वामी से मनोज कुमार बनने की यही वजह रही। जब ‘क्रांति’ में दिलीप कुमार के साथ काम करने और उन्हें निर्देशित करने का अवसर मिला, तब उनकी यह साध भी पूरी हो गई।
‘पूरब और पश्चिम’ फिल्म के प्रसिद्ध गीत “भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात बताता हूं” से वे भारत कुमार के नाम से प्रसिद्ध हो गए। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर मनोज कुमार की फिल्मों के गीत सबसे ज्यादा सुनने को मिलते हैं और शायद यह सिलसिला आगे भी चलता रहेगा।
फिल्म निर्देशक के तौर पर उन्होंने समय के अनुसार विषय चुने। जैसे, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के 'जय जवान, जय किसान' नारे पर ‘उपकार’ जैसी पहली फिल्म बनाई। पहले फिल्म का नाम यही नारा था, जिसे बाद में 'उपकार' के रूप में प्रस्तुत किया गया। बेशक, तब जवान और किसान की समस्याओं की ओर ध्यान दिलाने के साथ-साथ लाल बहादुर शास्त्री को भी सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
फिल्म निर्माता के रूप में मनोज कुमार ने सबसे खतरनाक विलेन प्राण को ‘मलंग’ का रोल देकर उनकी छवि ही बदल दी और वे चरित्र अभिनेता बन पाए। प्राण को विलेन की छवि से भी छुटकारा मिल गया। इसी प्रकार, गुलशन बावरा जैसे गीतकार को अवसर दिया और महेंद्र कपूर की आवाज़ को देश-विदेश में घर-घर तक पहुंचाया। यही एक अच्छे फिल्मकार का कार्य होता है, जैसे राज कपूर ने शैलेंद्र को गीतकार के रूप में स्थापित किया और उनकी जोड़ी अंतिम समय तक बनी रही। गायक मुकेश के निधन पर भी राज कपूर ने कहा था – “मेरी आवाज़ ही चली गई हो!”
‘उपकार’ के बाद ‘पूरब और पश्चिम’ भारतीय संस्कृति की महिमा और भव्यता को प्रस्तुत करने के लिए बनाई गई। वहीं ‘शोर’ फिल्म समाज में बढ़ते ध्वनि प्रदूषण और महंगाई पर आधारित थी, जिसमें साइकिल चलाकर उस समय के संघर्ष को दिखाने में वे सफल रहे। इस फिल्म में भी खलनायक प्रेमनाथ की छवि को बदलने में वे सफल रहे।
‘क्रांति’ तक मनोज कुमार की फिल्मों का सम्मोहन बना रहा, लेकिन ‘क्लर्क’ और ‘कलियुग की रामायण’ के औसत प्रदर्शन से वे जैसे जनता की नब्ज़ को पकड़ना भूल गए। 'कलियुग की रामायण' नाम को लेकर भी काफी विवाद हुआ, जिसके चलते नाम बदलकर 'कलियुग और रामायण' करना पड़ा, फिर भी फिल्म नहीं चली। उन्होंने अपने बेटे कुणाल को भी लॉन्च किया, लेकिन इसमें भी सफलता नहीं मिल पाई। धीरे-धीरे वे फिल्म निर्माण से दूर होते चले गए या शायद आर्थिक घाटा नहीं उठा पाए।
वैसे उन्होंने हरियाली और रास्ता, हिमालय की गोद में, दस नंबरी, यादगार और संन्यासी जैसी फिल्मों में भी बेहतरीन अभिनय किया, जिनके लिए उन्हें याद किया जाता रहेगा।
सबसे अधिक उल्लेख उनकी शहीद फिल्म का होता है। बेशक वे इसमें केवल नायक थे, लेकिन कहा जाता है कि पर्दे के पीछे से निर्देशक बनने का सपना देखा। यह फिल्म सफल रही और फिर वे स्वयं निर्माता-निर्देशक बनकर सामने आए।
यही शहीद फिल्म थी जिसे भगत सिंह की मां विद्यावती ने देखा और सराहा। बल्कि मनोज कुमार, भगत सिंह का किरदार निभाने से पहले पंजाब की माता विद्यावती से आशीर्वाद लेने भी गए थे। उन्होंने मनोज कुमार को आशीर्वाद देते हुए कहा था – “सचमुच तुम मेरे भगत जैसे ही दिखते हो!”
मनोज कुमार लगभग विवादों और प्रेम-प्रसंगों से दूर ही रहे। लेकिन जब शाहरुख़ खान और फराह खान ने 'ओम शांति ओम' के एक गाने में उनका और कुछ अन्य दिग्गज कलाकारों का मज़ाक उड़ाया, तब वे इसे कोर्ट तक ले जाने को तैयार थे। मुश्किल से शाहरुख़ खान ने उन्हें मनाया।
मनोज कुमार की फिल्मों की हमारी पीढ़ी प्रशंसक रही है और उनके फिल्मों के डायलॉग भी महफिलों में सुने-सुनाए जाते रहे हैं। हर तरह की फिल्मों में भूमिका निभाने के बावजूद उनकी भारत कुमार की छवि सदैव मन में बनी रहेगी।
मनोज कुमार उर्फ भारत कुमार को विनम्र श्रद्धांजलि!
तिरंगे में मनोज कुमार को विदाई देना, सही और सच्ची श्रद्धांजलि है।
– *पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी