न्याय यात्रा के बीच विपक्ष की मुश्किलें
#कमलेश भारतीय
इधर कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी न्याय यात्रा पर हैं और उधर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता इस पुराने राजनीतिक दल को बाॅय बाॅय कहने के मूड में हैं । जैसे कि पहले महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा कांग्रेस छोड़कर भाजपा में कमल की ओर खिंचे चले गये, ऐसे ही अब सुनने में आ रहा है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे मनीष तिवारी भी कांग्रेस को अलविदा कहने के मूड में हैं। इससे पहले मुम्बई ( महाराष्ट्र) से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी कांग्रेस का झंडा छोड़कर भाजपा का कमल थाम चुके हैं। यह सिलसिला थमने का नाम नही ले रहा । कहां जाकर थमेगा, कोई नहीं जानता ! सोशल मीडिया पर तो एक मज़ेदार कमेंट भी पढ़ने को मिल रहा है कि यदि कांग्रेस छोड़कर जाने वालों का यही हाल रहा तो एक दिन कहीं खुद राहुल गाँधी ही न कहें कि मैं भाजपा ज्वाइन करने जा रहा हूँ । खैर ! ऐसा तो नहीं होगा और न ही स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह ठीक रहेगा । विपक्ष तो रहना ही चाहिए और यही लोकतंत्र के लिए जरूरी भी है । विपक्ष ही नहीं होगा तो सत्ताधारी दल को जगायेगा कौन? विपक्ष को ज़िदा रहना जरूरी है । जैसे एक ग़ज़ल में कहते हैं :
ज़िंदा रहने के लिए तेरी कसम
इक मुलाकात जरूरी है सनम !
ऐसे ही स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मज़बूत विपक्ष रहना जरूरी है सनम ! पर क्या करें, कांग्रेस को खत्म करने का मिशन भी तो पूरा करना है न भाई ! तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि कम से कम विपक्ष के नेता का पद पाने लायक तो सांसद जिता कर ले आइये, हुज़ूर ! अभी कांग्रेस विपक्षी दल जरूर है लेकिन इतना संख्या बल नहीं कि विपक्षी नेता का दर्जा दिया जा सके ! यह चुनौती कांग्रेस या विपक्ष स्वीकार करे ! क्या कांग्रेस के अलावा कोई दूसरा राजनीतिक दल यह करिश्मा कर सकता है ? शायद नहीं !
मज़ेदार बात यह भी है कि इंडिया संगठन में भी दरारें आ रही हैं । पहले बिहार में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार निकल भागे और फिर से भाजपा के साथ सरकार बना ली ! वैसे यह भी लोकतंत्र का मज़ाक ही है कि एक ही विधानसभा की अवधि में बार बार पलटी मार कर मुख्यमंत्री बने रहना ! यह कीर्तिमान संभवत: नीतीश कुमार के नाम ही रहेगा ! सुशासन बाबू से दलबदल बाबू बनना ! इन्होंने तो हमारे हरियाणा के चौ भजनलाल का कीर्तिमान भी एक ही झटके में तोड़ दिया और उनका नाम भी सम्मान से बना रह गया ! बड़े पद के चक्कर में बार बार दलबदल और हाथ खाली के खाली हाथ ! एक मज़बूत नेता का यूं रण से रणछोड़दास बन जाना ! सही लिखा किसी ने कि कितनी नावों में कितनी बार सवारी करेंगे सुशासन बाबू !
पंजाब में भी छोटे बादल का हृदय परिवर्तन होने वाला है और वे भी भाजपा के साथ फिर से दोस्ती का हाथ बढ़ाने वाले हैं ! कांग्रेस और आप का साथ चंडीगढ़ में फेल रहा और यह प्रयोग भी समय रहते करके देख लिया विपक्ष ने ! लोकसभा चुनाव बस आ ही रहे हैं और विपक्ष प्रयोगशाला में ही बैठा है तो चुनाव की रणनीति कब बनायेगा ? राहुल गाँधी की न्याय यात्रा क्या कुछ कर पायेगी ? क्या इसका कोई असर देखने को मिलेगा ? यह यक्ष प्रश्न सामने है और लोकसभा चुनाव सिर पर मंडरा रहे हैं ! देखिए होता है क्या!