समाचार विश्लेषण/विदेश भागने की महामारी
-कमलेश भारतीय
हमारे देश में विदेश भागने की महामारी कोरोना से बहुत पहले से है । संयोग से मैं पंजाब के उस क्षेत्र से आता हूं जहां विदेश भागने की महामारी बहुत शुरू से अपनी जड़ें अच्छे से जमाये हुए है । यानी वह क्षेत्र जिसे पंजाब में दोआबा कहते हैं । एक बार लंदन में एक सर्वे हुआ था कि आखिर कहां से सबसे ज्यादा लोग आते हैं तो सर्वे में रोचक बात सामने आई कि नवांशहर दोआबा के बीस किलोमीटर स्क्वेयर क्षेत्र से आते हैं । हमारे छोटे से कस्बे में अनेक ट्रैवल एजेंसियां खुली हुई हैं और पाउंड/डाॅलर किसी बैंक में नहीं बल्कि इन एजेंसियों में भारतीय नोटों में बदल देते हैं जबकि हिसार में मुझे स्टेट बैंक जाना पड़ा था । यही नहीं जब मैं खटकड़ कलां के आदर्श स्कूल में प्रिंसिपल था तो रोज़ किसी न किसी बच्चे का सर्टीफिकेट जारी करना पड़ता कि उसे विदेश जाना है । पड़ोस के गांव काहमा के पोस्ट ऑफिस से विदेशी पत्र लेने जाता तो पोस्टमास्टर कहता कि खत्म हो गये क्योकि ग्रामीण एक साथ दस दस खरीद कर ले जाते । मेरी अपनी दो सिस्टर इन लाॅ आज भी इंग्लैंड रहती हैं । खैर , अब जमाना वाट्स अप का आ गया तो मजे में बहनें आपस में बातें कर लेती हैं । मेरे कितने ही छात्र विदेश बस गये हैं और फेसबुक पर मुझे खोज खोज कर फ्रेंड बन रहे हैं । कितने प्रतिभाशाली छात्र विदेश चले गये। इसी को ब्रेन ड्रेन कहते हैं यानी पढ़ायें लिखाएं हम और इनकी योग्यता का लाभ मिले दूसरे देशों को ।
आज एक खबर ने ध्यान खींचा कि विदेश में सैटल होने या कराने के नाम पर 3600 दुल्हनों ने 150 करोड़ रुपये लूट लिए । यह बड़े हैरान करने वाले आकड़े हो सकते हैं और विदेश जाने के लिए कितने लोग हैं जो कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं । मैंने दैनिक ट्रिब्यून में दो ऐसे लेख लिखे थे जो इसके रविवारीय परिशिष्ट के शीर्ष लेख बने । पहला -मन डोले सात समंदर पार । दूसरा -देशी दुल्हन, विदेशी दूल्हा । आज की भाषा में दोनों हिट रहे । सहायक संपादक विजय सहगल ने मुझे पत्रों का ढेर दिखाया था । खैर , हमारे दोआबा में गांवों में ऐसी कोठियां हैं जिनमें कोई नहीं रहता । सिर्फ केयर टेकर रहते हैं और विदेश से सितम्बर से फरवरी तक हमारे लोग आते हैं और अपनी मिट्टी की खुशबू में जीते हैं । यही क्यों यह नवांशहर दोआबा ही है जहां एयरकंडीशन शव-दाह गृह भी है ताकि विदेश से जब तक परिजन आएं तब तक शव को सुरक्षित रखा जा सके । यह विदेश जाने का क्रेज़ दोआब सिर्फ पंजाब तक सीमित नहीं रहा । अब यह केरल तक फैल चुका है । मेरे खटकड़ कलां स्कूल का एक सहयोगी सिर्फ पाठी बन गये इंग्लैंड जाकर और कुछ सालों में अकूत सम्पत्ति कमा कर लौट आया । यह पाठी और पुजारी होने के नाम पर भी विदेश जा रहे हैं लोग । सिर्फ शादी के नाम पर नहीं ।
आपको याद होगा कुछ वर्ष पहले लोकप्रिय गायक दिलेर मेहंदी को पकड़ लिया गया था-कबूतरबाजी के नाम पर कि वह अपने साजिंदों के नाम पर विदेश ले जाता था । पटियाला पुलिस की जेल में दिन बिताने पड़े और मुफ्त में गाने भी सुनाने पड़े । इस तरह भी लोग विदेश चले जाते हैं । सिर्फ घूमने कम ही जाते हैं । ये जो शादियां होती हैं ये विदेशी दुल्हनें सिर्फ कोर्ट को धोखा देने के लिए की जाती हैं और वे विदेशी बालाएं बिना साथ रहे पैसे वसूलती हैं अच्छे खासे । खूब लम्बा चौड़ा धंधा है । जैसे ही सैटल हो जाते हैं तो कोर्ट में तलाक की अर्जी लगाई जाती है । और फिर पंजाब या अपने इंडिया से दुल्हन की तलाश । यही चक्र चल रहा है और शायद चलता रहेगा ।