समाचार विश्लेषण//पी के की न और कांग्रेस सक्रिय
-*कमलेश भारतीय
चुनाव रणनीतिकार नाम से चर्चित प्रशांत किशोर ने आखिर कांग्रेस को न कह दी है । कई दिनों से चर्चा चल रही थी कि पी के यानी प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल हो जायेंगे । बहुत सारी बैठकों के बाद आखिर पी के व रणदीप सुरजेवाला ने अलग अलग ट्वीट करके यह जानकारी दी कि बात नहीं बनी ।
वैसे तो बड़ी अजीब बात है कि अब राजनीतिक दलों को बाहर से किसी रणनीतिकार को आमंत्रित करने की जरूरत पड़ रही है जबकि यदि विचारधारा और मूल्यों पर आधारित रहें तो किसी राजनीतिक दल को किसी रणनीतिकार की कोई जरूरत नहीं । यही रणनीतिकार पहले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और सपा की लुटिया डुबो चुके हैं । तृणमूल कांग्रेस की गोवा में लुटिया डुबोने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है । पंजाब में भी रहे और भाजपा के साथ भी रहे ।
क्या रणनीतिकार नाम की नयी नीति सामने आने लगी है और ऐसा लगता है कि राजनीतिक दल खुद वैचारिक तौर पर दीवालिया हो चुके हैं । अभी भी पी के सलाह दे रहे हैं कांग्रेस को कि कहां समझौते करने हैं और कहां नहीं करने हैं । कितनी लोकसभा की सीटों की गंभीरतापूर्वक तैयारी करनी है और कितने प्रचार की जरूरत है । क्या राजनीतिक दलों की क्लास अब रणनीतिकार लगाया करेंगे ? वह भी खूब सारा पैसा लेकर ?
कांग्रेस ने इधर कुछ राज्यों में सक्रियता दिखानी शुरू की है । हिमाचल में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी व मंडी से सांसद प्रतिभा सिंह को हिमाचल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपी गयी है । इसी तरह हरियाणा में गहन मंथन चल रहा है कि किसे शैलजा की जगह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपी जाये ? रोज़ नये नये नाम उछलते हैं और शैलजा भी मजे लेती है । बड़ी बात कि सुनने में आ रहा है कि कांग्रेस हाईकमान शैलजा को राज्यसभा भेजने की तैयारी में है लेकिन इसका रास्ता भी तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा से विचार विमर्श के बाद ही निकलेगा । फिर कैसे बने तालमेल ? राज्यसभा भी जाना है और विरोध भी करना है तो बात कैसे बने ? हरियाणा प्रदेश कांग्रेस संगठन न अशोक तंवर बना पाये और न ही शैलजा यह करिश्मा कर पाई । ऊपर से इल्जाम यह कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने दो दलित नेताओं को काम करने नहीं दिया । एक तो छोड़कर चला गया और दूसरी क्या कदम उठाएंगी वे ही जानती हैं । हां , कुलदीप बिश्नोई भी उत्साहित दिखाई दे रहे हैं पर पूछिये इनसे कभी किसी का साथ दिया है ? 'एकला चलो रे' की नीति पर ही चलते आ रहे हैं तो अब दूसरों से क्या उम्मीद कर सकते हैं ? किसी एक का साथ दिया हो तो बताइए ? जब गुलाम नबी पूरे हरियाणा में बस लेकर निकले थे तब भी हिसार में आकर शामिल नहीं हुए थे । किसी और जगह जाकर बस में सवार हुए थे । अब वे कांग्रेस की कमान चाहते हैं तो दूसरों से क्या उम्मीद करेंगे ? जैसा किया है , वैसा ही पाओगे कि नहीं ? जैसा बोया , वैसा ही तो काटोगे ?
उधर पंजाब में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे सुनील जाखड़ को हाईकमान ने सभी पदों से हटा दिया है यह कहकर कि सुनील अनुशासनहीन होते जा रहे थे । चर्चा तो निलम्बन की भी थी लेकिन रियायत कर दी । सुनील ने 'गुडलक' कह दिया है । क्या पता उनका नया कदम कहां पड़ जाये और कांग्रेस देखती ही रह जाये ?
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।