समाचार विश्लेषण/इसे राजनीति से मत जोड़िए प्लीज 

समाचार विश्लेषण/इसे राजनीति से मत जोड़िए प्लीज 
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
सिरसा के डेरे का बाबा इक्कीस दिन की पैरोल पर गुरुग्राम के डेरे में धूप में बैठकर अपने पोते पोतियों से खेल रहा है । अनुयायी एक झलक पाने के लिए दूर दूर से आ कर निराश लौट रहे हैं क्योंकि बाबा पर अनेक पाबंदियां भी हैं । बेशक हनीप्रीत की चर्चा भी होने लगी है । वह भी सुनारिया जेल से ही बाबा के काफिले के पीछे पीछे गुरुग्राम तक पहुंची थी । इसमें क्या बुराई है  मुंहबोली बेटी है ।
 दूसरी ओर  जेलमंत्री चौ रणजीत चौटाला , गृहमंत्री अनिल विज , मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ही नहीं कभी खुद वकील रहे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा सभी तो कह रहे हैं कि इस फरलो को राजनीति या चुनावों से जोड़कर देखना ठीक नहीं । हालांकि पंजाब के अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल ने इस पैरोल पर जब सवाल उठाया तब अनिल विज ने कह लिया कि सुखबीर को हर बात का राजनीतिक कनेक्शन क्यों दिखता है ? वहीं पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला का कहना है कि बाबा की पैरोल से भाजपा को कोई फायदा नहीं होगा । ऐसे समय में जेल में बंद आरोपियों को छोड़ने से जनता की नाराजगी ही बढ़ती है । अभी तक कोई फैसला संगतों को नहीं पहुंचा है । सुना है कि मतदान से दो दिन पहले डेरे की ओर से अपना मत बता दिया जायेगा कि वोट किधर करना है ।
इधर उत्तर प्रदेश में भी एक आदेश आया है कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री टेनी के बेटे व लखीमपुर खीरी कांड के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को हाईकोर्ट ने जमानत दे दी है । इसे भी राजनीति या उत्तर प्रदेश के चुनाव से जोड़कर न देखें प्लीज । बेशक आशीष को उस जघन्य कांड के समय घटनास्थल पर गाड़ी में मौजूद पाया गया हो । विपक्ष जितना चाहे शोर मचा ले टेनी महोदय को मंत्रिमंडल से बाहर नहीं किया जायेगा । यह साफ साफ संदेश है । इसे भी कृपा कर राजनीति से न जोड़ें क्योंकि एक ताजा इंटरव्यू में प्रधानमंत्री जी ने चुनावों के समय ईडी और अन्य छापों पर कहा है कि ये स्वतंत्र एजेंसियां हैं और चुनावों में क्या ये अपना काम न करें ? अरे चुनावों में तो और तेज़ी से काम करना  चाहिए ताकि पता चले कि कानून अपना काम कर रहा है । अब हाईकोर्ट का चुनावों से क्या लेना देना ? प्लीज इसे राजनीति से जोड़कर न देखें । 
हां , राजनीति से जोड़े बिना और जुड़े बिना पत्रकार छत्रपति की धर्मपत्नी कुलवंत कौर इस संसार से विदा हो गयीं लेकिन ऐसे समय में विदा हुईं जब बाबा फरलो काट रहा है । कुलवंत कौर के हौंसले की बात करें कि कैसे करवा चौथ वाले दिन अपने पति को सन् 2002 में खो दिया लेकिन हिम्मत नहीं हारीं । सभी संगी साथी , रिश्तेदार भी साथ छोड़कर चले गये लेकिन वह अपने चौदह वर्षीय बेटे अंशुल को कोर्ट भेजती रहीं और पंद्रह वर्षों बाद तथाकथित बाबा को सुनारिया जेल पहुंचाकर कर ही दम लिया । ऐसी हिम्मत को सलाम । इसे राजनीति से न जोड़कर देखिए प्लीज । वे एक संदेश दे गयीं कि 
कुछ भी नहीं है मुश्किल 
अगर ठान लीजिए ।
छत्रपति की जान ही ले सके , उसकी दिखाई सच्चाई जिंदा रही और उस मशाल को थामे रहीं कुलवंत कौर और वह मशाल थमा गयीं अंशुल छत्रपति को । इसे राजनीति न कहिए । 
हां , दिलीप सिंह जिसे आप 'ग्रेट खली' के नाम से ज्यादा जानते हैं वे भाजपा में शामिल हो गये हैं । वैसे हिमाचल निवासी दलीप सिंह पंजाब में जालंधर में पुलिस में कार्यरत रहे थे और धीरे धीरे ग्रेट खली बन गये । 
चलिए । आज तो राजनीति की कोई बात ही न कीजिए । प्लीज । आज राजनीति पर मौन व्रत है ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।