यादों के झरोखे से - हिंदी कवि तेजराम शर्मा की याद में

पत्रकार, कवि व लेखक कमलेश भारतीय का भावोत्तेजक लेख

यादों के झरोखे से - हिंदी कवि तेजराम शर्मा की याद में
हिंदी कवि तेजराम शर्मा।

आज सुबह शिमला के रचनाकार तेजराम शर्मा की याद हो आई। मैं उनके बारे में नहीं जानता था लेकिन वे दैनिक ट्रिब्यून में मेंरी कार्यशैली से प्रभावित थे। खासकर पुस्तक समीक्षा। एक दिन अचानक वे हिसार मेरे घर ही पहुंच गये क्योंकि उन दिनों वे अम्बाला सर्कल के पोस्ट ऑफिस महाप्रबंधक थे। पूरी दोपहर हमने एक साथ बातचीत और खानपान में बिताई। उनका नया काव्य संग्रह आया था। उन्होंने आग्रह किया कि इसकी समीक्षा मैं लिखूं। मैंने उन्हें नियम बताया कि जब तक संपादक विजय सहगल आदेश नहीं दें तब तक समीक्षा नहीं आयेगी या जिसको भी समीक्षा के लिए भेजा जायेगा वही करेगा। इस पर हिमाचली भाई और बिरादर होने के नाते उन्होंने फोन लगा दिया सहगल जी को और इच्छा जाहिर कर दी। उन्होंने अनुमति दे दी। इस तरह हमारी पहली मुलाकात हुई। फिर चंडीगढ़ रहते मैंने मोहाली के पांच फेज के पोस्ट आफिस में सर्टिफिकेट ले रखे थे जो पूरे हो गये यानी मैच्योर। मैंने अपने मित्र व सहयोगी हरेश वाशिष्ठ को बुलाया। वे मोटरसाइकिल लेकर आए। हम पोस्ट ऑफिस पहुंचे और पोस्ट मास्टर रुपये देने में आनाकानी करने लगा कि भी पैसा ही नहीं है। कहां से दें? उसे लगता था कि यह हिसार से आया परदेसी कुछ दे तो पैसे दे दें। तभी अचानक मुझे तेजराम शर्मा का ध्यान आया और मैंने उन्हें फोन लगा कर सारी बात बताई वे हंसते हुए बोले-अभी मिल जायेंगे। उन्होंने बाद में सीधे उस पोस्टमासटर को डांटा और तुरंत पैसे दिलवाए। यह बहुत मज़ेदार वाकया रहा। फिर वे सेवानिवृत हो गये। शिमला जा बसे। अपने घर। इधर भाई एस आर हरनोट और आर डी शर्मा ने अपने आयोजनों में मुझे शिमला बुलाना शुरू किया। तब हमारी मुलाकात रोटरी हाॅल में या माॅल पर होने लगी। वे भाभी जी के साथ आते और शांत होकर, मंद मंद मुस्कुराते मज़ा लेते कविताओं का। उन्हें खुद कविता पाठ करने की कोई जल्दबाजी में नहीं देखा। उनके गीता के शलोकों का अनुवाद संग्रह का विमोचन करने का अवसर भी मिला। लौटते समय मैं सारा पढ़ गया और उन्हें बधाई दी। कुछ हाइकु मैंने अपनी फेसबुक पर भी पोस्ट किए थे। खैर। फिर असुखद सूचना मिली कि वे नहीं रहे। संयोग से उनके अंतिम शांति पाठ के समय मैं शिमला में ही था। मैंने जाने का प्रोग्राम बनाया और कुल राजीव पंत व  रतनचंद निर्झर को साथ लिया। हालांकि हरनोट भाई से वादा था साथ जाने का लेकिन उनसे माफी मांगी। और वे पैदल भी हमसे पहले वहां पहुंच चुके थे। मैंने सोचा कि तेजराम जी के घर तब आया जब वे जा चुके। छूने आया उनका मन। भाभी जी को व बंधुओं को नमन किया। तस्वीर में मुस्करा रहे तेजराम जी को पुष्पार्पित कर विदा ली पर मन से कहां विदा हुए हो आप तेजराम जी?