कलाओं की तरफ लौटे कविता
चंडीगढ़: पंजाब विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के कही अनकही विचार मंच की ओर से आज वेब - संवाद का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त अमेरिकी कवि लुईस ग्लिक को समर्पित रहा। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली से प्रो. दिलीप शाक्य शामिल हुए। उनके वक्तव्य का विषय 'कविता की नई राहें' था।
प्रो. दिलीप शाक्य ने हिंदी कविता के विभिन्न पड़ावों का जिक्र करते हुए कहा कि समकालीन कविता में बड़ी समस्या यह है कि अन्य कला रूपों जैसे संगीत चित्रकला आदि से उसका सम्बन्ध टूटता जा रहा है। उन्होंने कविता के कलाओं की तरफ लौटने का आह्वाहन करते हुए कहा कि कथावृत, आख्यान की परिपाटी से भी कविता को जोड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में न जाने कितनी कहानियां बिखरी पड़ी हैं लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या हम उन्हें आज की कविता में दर्ज कर पा रहे हैं। उनका कहना था कि कला व साहित्य लोगों को संस्कारित करने का कार्य भी करता है लेकिन विडंबना यह है कि हमने हिंदी कविता में दो दर्जे बना दिए हैं एक अकादमिक और दूसरा लोकप्रिय। उन्होंने यह भी कहा कि वाक्य और शब्द में कविता को बनाने के लिए बहुत बड़ी प्रतिभा की जरूरत है। इसलिए ज्यादा जरूरत कविता को लोक जीवन में लेकर जाने की जरूरत है।
उन्होंने खड़ी बोली कविता के आरम्भ पर विस्तार से बात करते हुए जोर देकर कहा कि भारतेन्दु के साथ - साथ हमें नज़ीर अकबराबादी को भी इस सम्बन्ध में श्रेय देना होगा। उन्होंने नोबेल पुरस्कार जीतने वाली अमेरिकी कवि लुईस ग्लिक के व्यक्तित्व और कृतित्व का संक्षिप्त परिचय देते हुए बताया कि ग्लिक की कविताओं में भी सत्य ही सबसे बड़ा मूल्य रहा जिसके कारण उनकी कविताएं संपूर्ण मानवता का संस्पर्श कर पाई। इस अवसर पर उन्होंने अपनी कुछ कविताओं का वाचन भी किया।
विभागाध्यक्ष डॉ. गुरमीत सिंह ने डॉ. दिलीप शाक्य का स्वागत करते हुए कहा कि कविता के क्षेत्र में 9 वर्षों बाद साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया है। जिसके कारण एक बार पुनः कविता आज चर्चा के केंद्र में है और बहुत से विद्वान तो इसे कविता की वापसी के रूप में देख रहे हैं। इस बार साहित्य का नोबेल पुरस्कार एक महिला कवयित्री को मिलने से यह खुशी और बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि वक्त के साथ कविता के प्रतिमान बदलते रहे हैं लेकिन साहित्य की सभी विधाओं में कविता वह विधा है जो मनुष्य के सबसे करीब रहती है। उन्होंने 'वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान।
निकलकर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान' कविता को उद्धृत करते हुए कहा कि आम जन की दुख तकलीफ और आकांक्षाएं हर युग में अभिव्यक्त होती रही है।
आज के कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से शोधार्थी एवं प्राध्यापकों ने हिस्सा लिया जिनमें विभाग के प्रो. सत्यपाल सहगल, यूएसओएल से डॉ. राजेश जायसवाल, पटियाला से शगनप्रीत कौर, प्रयागराज से डॉ. ज्ञानेन्द्र शुक्ल और डॉ. प्रशांत मिश्रा शामिल रहे।