राजनीतिक विश्लेषण/बदल गये मुख्यमंत्रियों के चेहरे
कमलेश भारतीय
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में से तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला तो तेलंगाना में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला। मिजोरम में मात्र चार साल पुरानी पार्टी जेडपीएम को सफलता हाथ लगी। लालदुहुमा मुख्यमंत्री बने। मिजोरम में राष्ट्रीय दलों में से भाजपा को दो और कांग्रेस को मात्र एक ही सीट पर संतोष करना पड़ा। लालदुहुमा कभी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के सिक्योरिटी इंचार्ज थे और कांग्रेस की टिकट पर सांसद भी रह चुके हैं पर कांग्रेस से दूरी बनी और चार साल पहले नयी पार्टी बना ली। इस तरह मिजोरम में नये चेहरे ने मुख्यमंत्री की शपथ ली जबकि पहले मुख्यमंत्री विधानसभा का चुनाव ही हार गये। हालांकि उनकी पार्टी दूसरे स्थान पर रही।
सबसे आश्चर्यजनक बात रही उन राज्यों में जहां भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला जैसे राजस्थान में बसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में आगे होने के बावजूद मुख्यमंत्री पद से दूर रह गयीं और पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा पर भाजपा ने भरोसा जताते हुए उन्हें मुख्यमंत्री पद पर बिठाया। इसी प्रकार मध्यप्रदेश में भी निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज चौहान के फिर मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा न हो सका। बसुंधरा राजे और शिवराज चौहान के चेहरों पर पद से वंचित होने की उदासी साफ साफ देखी जा सकती थी। वे हारे हुए खिलाड़ी नज़र आ रहे थे। बसुंधरा राजे को तो भजनलाल शर्मा के नाम का प्रस्ताव तक रखना पड़ा। हालांकि कांग्रेस भी ऐसे ही करती आई है। भजनलाल शर्मा हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की तरह सौभाग्यशाली रहे कि पहली बार विधायक बनते ही मुख्यमंत्री भी बना दिए गये। खट्टर दूसरी बार भी मुख्यमंत्री बने और राजनीति में पारंगत हो चुके हैं। कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला का राजस्थान में रिवाज बदलने का सपना पूरा न हो सका !
मध्यप्रदेश में शिवराज चौहान की बजाय मोहन यादव की मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी की गयी जबकि शिवराज चौहान मन मसोस कर रह गये। भाजपा ने तीसरे राज्य छत्तीसगढ़ में भी पूर्व मुख्यमंत्री रहे डा रमन को दोबारा अवसर न देकर आदिवासी चेहरे विष्णु साय को मुख्यमंत्री बनाया। दो दो उपमुख्यमंत्री बनाने की परंपरा भी भाजपा ने उत्तर प्रदेश से शुरू की जिसे दो राज्यों में फिर आजमाया है। इसके पीछे सभी वर्गों को साधने और पार्टी के साथ जोड़े रखने की रणनीति दिख रही है। यह भी कहा जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए नये चेहरों पर दांव लगाया गया है। भाजपा की यही रणनीति है कि समय से पहले ही किसी भी चुनाव की तैयारी शुरू कर देती है।
तेलंगाना में कांग्रेस को बहुमत मिला और क्षेत्रीय दल दूसरे स्थान पर रहा। यहां भाजपा को कोई खास सफलता नहीं मिली जिसके चलते यह सवाल उठ रहा है कि कहीं कांग्रेस का वर्चस्व सिर्फ दक्षिणी राज्यों तक ही सीमित तो नहीं रह गया? तेलंगाना में कांग्रेस ने युवा चेहरे रेवंत रेड्डी को मुख्यमंत्री पद सौंपा। यदि यही नीति पहले आजमाई होती तो कुछ युवा नेता कांग्रेस से दूर न होते।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा है कि राजस्थान के चुनाव परिणामों का असर हरियाणा पर नहीं पड़ेगा। अब यह तो आने वाला चुनाव ही बतायेगा कि यह विश्वास कितना सही या कितना गलत साबित होता है। इतना जरूर है कि पहली बार सैलजा विधानसभा चुनाव लड़ने की बात बार बार कह रही हैं जो हरियाणा में कांग्रेस की स्थिति की ओर संकेत करने के लिए काफी है।