समाचार विश्लेषण/इसे कहते हैं गेम, जाॅनी
-कमलेश भारतीय
इसे कहते हैं गेम, जाॅनी । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी न केवल टकटकी लगाये हाॅकी मैच देखकर खिलाड़ियों को शाबाशी दे रहे थे और जीत हार को खेल का हिस्सा बता कर सान्त्वना दे रहे थे बल्कि वे साथ साथ चिंतन भी कर रहे थे और उन्हें अचानक से याद आए हाॅकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद । बस । फिर क्या था ...उन्हें यह भी याद आ गया कि अभी तक उन्हें भारत रत्न नहीं दिया पर खेल रत्न के नाम पर पुरस्कार देने वाला तो बना ही सकता हूं और इस तरह गांधी परिवार का नाम भी कट सकता है और कोई मेजर ध्यान चंद के नाम पर देने पर खेल रत्न का विरोध भी नहीं कर सकेगा । इसे कहते हैं गेम । फिर यूपी में चुनाव आने वाले हैं ऐसे में मेजर ध्यान चंद बहुत काम आयेंगे । जैसे पश्चिमी बंगाल के चुनाव से पहले नेताजी सुभाषचंद्र बोस और स्वामी विवेकानंद ही नहीं रवींद्रनाथ टैगोर भी याद आए पर बात बनी नहीं । अब यूपी में पहला गेम खेला । यही नहीं प्रधानमंत्री जी ने पंद्रह अगस्त को ओलम्पिक खिलाड़ियों को मेहमान बनाने का फैसला किया है । अमृत महोत्सव पर ।
मेजर ध्यान चंद के नाम पर खेल रत्न अवार्ड कर देने पर कांग्रेस ने कोई विरोध नहीं किया बल्कि सराहना की और सराहना करते प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि हाॅकी के जादूगर के मेजर ध्यान चंद के नाम खेल रत्न अवार्ड देने का फैसला का स्वागत् करते हैं लेकिन जो खेल स्टेडियम अपने नाम किया उसको भी किसी खिलाड़ी के नाम करें और जो दिल्ली में खेल स्टेडियम अरूण जेटली के नाम किया उसे भी खिलाड़ी के नाम कीजिए तब बहुत बहुत अच्छा लगेगा प्रधानमंत्री जी । राजीव गांधी ने देश के लिए शहादत दी थी और यह बात सारा देश जानता है वे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ते शहीद हो गये। पंजाब में भी संत लौंगोवाल से समझौता कर शांति बहाल की थी । ऐसे व्यक्ति के नाम अवार्ड न भी रहा तो कोई बड़ी बात नहीं लेकिन किसी भी प्रधानमंत्री ने अपने कार्यकाल में कोई स्मारक/स्टेडियम या यादगार अपने नाम की नहीं बनवाई । आप लोगों को याद होगा कि जब ये गुजरात के मुख्यमंत्री होते हुए प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार बने तब पंद्रह अगस्त को अपने पीछे लाल किले का पूरा बैनर लगवा कर उस वर्ष भाषण दिया था । इतने महत्त्वाकांक्षी हैं सदा से । अरे आपको ध्यान नहीं ? ये वही महत्त्वाकांक्षी नरेंद्र मोदी यानी नमो हैं जिन्होंने अपने राजनीतिक गुरु लाल कृष्ण आडवाणी को अज्ञातवास दे रखा है । पहले राष्ट्रपति बनाने का ख्वाब दिखाया और जब राष्ट्रपति बनाने का समय आया तब जिन्ना की मजार जाने का मामला निकल आया । जो अपनी महत्त्वाकांक्षा के लिए अपने गुरु को ही अज्ञातवास दे सकते हैं वे नमो राजीव गांधी को भी खेल रत्न से अज्ञातवास दे सकते हैं और दिया । एक बार विचार कर लेते । पुनर्विचार कर लेते यदि इस तरह नाम बदलते रहोगे तो आने वाले समय आपके रखे पार्टी के नेताओं के नाम पर भी इसी तरह बदलाव होने का खतरा है । कभी मायावती ने यूपी के पार्कों में हाथी ही हाथी खड़े कर दिये । क्या ये रहे या इनको किसी नापसंद किया ? आप मेजर ध्यान चंद को किसी और रूप में भी याद कर सकते थे और बड़ी लकीर खींच कर । छोटी लकीर खींच क्या होगा ? कुछ बड़ा सोचो साहब । कुछ नया सोचो साहब । ये छोटी छोटी बातें आपकी छवि को धूमिल करती है । वैसे भी लोकप्रियता का ग्राफ नीचे जा रहा है । प्लीज । खेल देखो , गेम न करो । कहीं मासूमियत भी काम आती है और दिल के करीब ले जाती है । इसे इवेंट न बनाइए । हर बात इवेंट नहीं होती । हाॅकी को ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी इवेंट नहीं बनाया जिन्होंने करोड़ों रूपये स्पांसरशिप में लगा दिये । आपने तो खेल बजट ही कम रखा । बजट बढ़ाइए और खेल स्टेडियम भी जिनके नाम खिलाड़ियों के नाम पर हों ताकि प्रेरणा मिले ।
(लेखक पूर्व उपाध्यक्ष,हरियाणा ग्रंथ अकादमी हैं)