राजनीति पथ: आश्रम से रिजोर्ट तक/ कमलेश भारतीय
सादगी राजनीति से बहुत दूर जा चुकी है। अब रिजोर्ट कल्चर आ चुका है।
राजनीति का पथ अब तक आश्रम से चलता हुआ रिजोर्ट तक पहुंच गया है। आश्रम से रिजोर्ट तक आने में लगभग सत्तर साल लग गये और मज़ेदार बात कि यह पथ दो गुजरातियों के बल पर तय हुआ। कांग्रेस से जुड़े और पोरबंदर में जन्मे गुजराती महात्मा गांधी साबरमती आश्रम से राजनीति चलाते थे और वहां सेवा के संस्कार व मंत्र दिए जाते रहे। फिर महात्मा गांधी के नाम पर राजनीति की जाती रही। आश्रम तब भी पीछे छूटते गये। जहां तक कि गांधी टोपी भी कब गायब हो गयी, कांग्रेस वाले भी नहीं जान पाए। संस्कृति बदलती गयी। अब दूसरे गुजराती अमित शाह ने पिछले दस वर्ष से राजनीति को रिसोर्ट तक ले जाने में अहम् भूमिका निभाई है। वैसे महात्मा गांधी पैसा कम से कम खर्चने में विश्वास रखते थे तो अमित शाह तो शाह ठहरे। शाह खर्च करते हैं राजनीति में। तभी तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आरोप लगा रहे हैं कि हमारे कांग्रेस के विधायकों को पच्चीस पच्चीस करोड़ों रुपये की आकर्षक ऑफर दी जा रही है और राज्यसभा चुनाव जो दो माह पहले होने वाले थे, इसलिए स्थगित किए गये क्योंकि तब तक विधायकों की खरीद सुनिश्चित नहीं हो पाई थी। यानी रिजोर्ट में जाने वालों का आंकड़ा तय नहीं हो पाया था। अब हो गया तो हमें भी अपने विधायक रिजोर्ट में ले जाने पड़े। गुजरात के राज्यसभा चुनाव से यह रिजोर्ट संस्कृति खुल कर सामने आई थी जब भाजपा और कांग्रेस दोनों ने इसे खुशी खुशी स्वीकार किया था। फिर मध्य प्रदेश सरकार गिराने के लिए भी पता नहीं बिल्लियों की तरह कितने रिजोर्ट बदले गये। अब कांग्रेस के विधायक मुख्यमंत्री गहलोत से कह रहे हैं कि हम न तो कपड़े लेकर आए और न ही दवा। इसलिए एक बार वापस जाने दीजिए। पहले रक्षाबंधन पर बहनों से राखो भी न बंधवा पाए थे। परिवारवालों से मिलने की बात दूर रही।
इस राजनीति से क्या नया भारत बनाया जा रहा है? राजनीति सेवा और जनसेवा से पूरी तरह से मुख मोड़ चुकी? अब सिर्फ उद्योग बन कर रह गयी। पहले चुनाव में पूंजी लगाइए और फिर पच्चीस पच्चीस करोड़ कमाओ। झारखंड के इकलौते मुख्यमंत्री याद हैं मधु कौड़ा? आजकल जेल की हवा खा रहे हैं। उन्हें पता ही नहीं चला कि कितनी सम्पत्ति इकट्ठी कर ली एक ही झटके में। लालू यादव चारा कांड में जेल में ही जन्मदिन मना रहे हैं जोकि जेपी के आंदोलन से निकले थे। सब कस्मे वादे भूल गये और क्या और कितनी सम्पत्ति बना ली कि खुद नहीं गिन पा रहे हैं। राजनीति घोटालों का नाम हो गयी है। जिसे जितना अवसर मिलता है, वह उतना ही लूटता है। किसी ने शुरू में क्या चुटकुला बनाया था कि डाकू पहले लूटता है और बाद में जेल जाता है जबकि नेता पहले जेल जाता है, फिर बाहर आकर लूटता है। बहुत भले लोग भी हैं राजनीति में पर अब उंगलियों पर गिनने लायक। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ऐसे अनुपम उदाहरण रहे इन कुछ वर्षो में। कभी गुलजारी लाल नंदा भी ऐसी सादगी के लिए जाने जाते थे। पर अब तो आलीशान बंगले, कार, कोठियां, नौकर चाकर सब तामझाम जरूरी हो गया है। सादगी राजनीति से बहुत दूर जा चुकी है। अब रिजोर्ट कल्चर आ चुका है।
यह कहां आ गये हम
राजनीति करते करते ....