समाचार विश्लेषण/दलबदल की दलदल में राजनीति
-*कमलेश भारतीय
उत्तर प्रदेश में बसपा के कुछ पूर्व विधायक और नेता समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये । वैसे भी उत्तर प्रदेश हो या कोई भी प्रदेश विधानसभा चुनाव आने से पहले यह सबसे पहली झांकी होती है -दलबदल । इसलिए किसी एक दल को दोष क्या देना ? पर बसपा प्रमुख बहन मायावती इससे खूब कुपित हुईं और कहा कि दलबदलुओं से पार्टी का जनाधार नहीं बढ़ता । इन नेताओं को बरसाती मेंढक कहने से भी गुरेज नहीं किया कि पार्टी के लोग ऐसे बरसाती मेंढकों से दूरी बना कर रखें । मायावती का कहना है कि ऐसे दलबदल से जनाधार नहीं बढ़ेगा बल्कि इससे नुकसान ही उठाना पड़ेगा। सत्ता लोलुपता के ऐसे खेल को जनता खूब समझने लगी है । इससे जनता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला ।
बहन मायावती ने बात तो खरी कही पर जब दूसरी पार्टी से कोई बसपा में आयेगा तब बयान बदल जायेगा और कहेंगी कि इन नेताओं के आने से पार्टी का आधार मजबूत होगा ।
वैसे सन् 2014 के बाद दलबदल की दलदल में राजनीतिक दल लगातार फंसते ही जा रहे हैं । ऐसा सर्वेक्षण भी आया था कि भाजपा में कांग्रेस से सबसे ज्यादा नेता इन सालों में शामिल हुए । मणिपुर सबसे बड़ा उदाहरण रहा जहां भाजपा के मात्र दो ही विधायक थे । थोड़ी सी जोड़तोड़ से कांग्रेस की सरकार बन जाती लेकिन जो थोक में कांग्रेस विधायकों का दलबदल हुआ कि सब हैरान दो विधायकों वाली भाजपा सत्ताधारी बन गयीं । इसी प्रकार असम में सोनोवाल मुख्यमंत्री बने थे । इसी प्रकार गोवा में हुआ । वहां भी कांग्रेस सरकार बनाने के करीब थी लेकिन उसे न्यौता ही नहीं दिया बल्कि रातों रात भाजपा ने कांग्रेस के विधायक अपने पाले में लेकर सरकार बना ली । उत्तराखंड में हरीश रावत की चली आ रही सरकार को गिराने की पूरी कोशिश हुई लेकिन उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बचा दी । महाराष्ट्र में अजीत पवार का सहारा लेकर आधी रात को राज्यपाल ने देवेंद्र फड़णबीस को मुख्यमंत्री की शपथ दिला दी बिना विधायकों की परेड करवाये । इसी प्रकार के अनेक उदाहरण हैं । जहां जहां थोड़ी सी भी दरार दिखती है वहां वहां दलबदल शुरू करवा दी जाती है । मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार ऐसे ही दलबदलुओं की कृपा से भगवामयी हो गयी । महाराजा सिंधिया ने खेल दिखाया । राजस्थान में भी कोशिश की गयी गहलोत सरकार को अस्थिर करने की लेकिन बात सिरे नहीं चढ़ी लेकिन दलबदल का नंगा नाच सारे देश ने देखा ।
अभी उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले जितिन प्रसाद कांग्रेस से भाजपा में गये और मंत्री हो गये । अभी उत्तर प्रदेश में यह दलबदल का खेल बढ़ने वाला है । सुना है जयंत कांग्रेस की महासचिव प्रियंका बाड्रा व दीपेंद्र हुड्डा से शिष्टाचार भेंट कर चुके हैं । देखिए आने वाले दिनों में हाथ थाम न लें ।
हरियाणा में भी दलबदल की न सही पर निर्दलियों के सहयोग के लिए भाजपा ने पूरा दांव खेला जब सिरसा की सांसद सुनीता डुग्गर हंसते हंसते चौ रणजीत चौटाला और गोपाल कांडा को हेलीकाप्टर में दिल्ली ले जा रही थीं । जब विपक्ष ने गोपाल कांडा जैसे विधायक के कांड की याद दिलाई तब उसके बारे में बयान आया कि सहयोग नहीं लिया जायेगा । अब मज़ेदार बात कि उसी गोपाल कांडा के भाई गोविंद कांडा को भाजपा में शामिल कर ऐलनाबाद से उपचुनाव का प्रत्याशी बनाया गया । है न मज़ेदार । भाजपा के पास अपना कोई कार्यकर्त्ता इस योग्य था ही नहीं कि पार्टी का चेहरा बन सके? ऐसे कांडा परिवार के सहयोग की जरूरत आन पड़ी जिसकी कहानियां अभी भूली नहीं हैं तो क्या ऐसे प्रत्याशी को जनता वोट देगी? यह आज ऐलनाबाद का परिणाम बता देगा । फिर भी एक बात साफ है कि यह दलबदल का रोग सभी राजनीतिक दलों को लग चुका है और राजनीति की गंगा मैली होती जा रही है ।
अरे कोई तो बचाओ
सारे दल हैं दलबदल रोगी ...
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।