समाचार विश्लेषण/राजनीति: छूटती नहीं है काफिर मुंह को लगी हुई
-कमलेश भारतीय
वाह । क्या बात कही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने -जी चाहता है राजनीति छोड़ दूं .. क्योंकि राजनीति सिर्फ सत्ता के लिए रह गयी है । नितिन गडकरी नागपुर के एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे । नितिन गडकरी ने कहा कि समाज में और भी बड़े काम हैं जो राजनीति के बिना भी किये जा सकते हैं । महात्मा गांधी के समय राजनीति देश व समाज के विकास के लिए होती थी लेकिन अब सिर्फ सत्ता के लिए होती है । हमें यह समझने की जरूरत है कि राजनीति का मतलब क्या है ? क्या यह देश व समाज के कल्याण के लिए है या सिर्फ सरकार में रहने के लिए ?
बहुत ही दुखती रग पर हाथ रख दिया गडकरी ने । वैसे तो देश की सत्ता एक फकीर के साथ में है , जो कह रहा है कि जिस दिन मेरी जरूरत नहीं होगी , उस दिन अपनी झोली उठा कर चल दूंगा । इस फकीर ने यही झोली फैलाकर कहा था जनसभाओं में कि कांग्रेस को आपने पैंसठ साल दिये तो क्या मुझ फकीर को साठ महीने भी नहीं दे सकते ? दे दीजिए और मैं अच्छे दिन ला दूंगा । जनता ने फकीर की झोली भर दी वोटों से और साठ महीने से ज्यादा समय दे दिया । अब फकीर पूछ रहा है कि काग्रेस ने सत्तर साल में क्या किया और खुद रेल , एयरलाइन्स और देश का सत्तर साल में बनाया क्या क्या बेच रहा है । है न मजेदार ? और सारा दोष प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु पर । यह नहीं किया , वह नहीं किया और जो खुद किया -ईडी और निर्वाचन आयोग जैसो एजेंसियों को तोता बना पिंजरे में बंद कर दिया । संविधान को ताक पर रख कर सरकारों को गिराने का सिलसिला जारी है । सरकार का मानवीय चेहरा गायब है । सोनिया गांधी को अस्वस्थ होने पर भी ईडी कार्यालय में बुला बुला कर अपमानित किया जा रहा है । यह एक फकीर के काम हैं और नितिन गडकरी भी इस बदली हुई राजनीतिक व्यवस्था के अंग हैं । एक समय इनका नाम भी प्रधानमंत्री पद के लिए उछला लेकिन नरेंद्र मोदी के आगे नतमस्तक होना पड़ा। इसलिए यह फकीरी जाग रही है नितिन गडकरी के मन में । वैसे नारा देकर रखा है कांग्रेस मुक्त भारत लेकिन कांग्रेस के ही नेताओं को भाजपा में शामिल कर एक नयी कांग्रेसमय भाजपा बना दी ।
वैसे राजनीति ऐसी चीज है जैसे कहा जाता है : छूटती नहीं है काफिर मुंह को लगी हुई । और यह भी कि
कल हमने पीने से तौबा की
आज इस खुशी में दो बार पी ,,
तो आप याद कीजिए कि अपने मोरारजी देसाई किस उम्र में जाकर उच्च पद तक पहुंचे थे ? ध्यान कीजिए कि अभी तक लालकृष्ण आडवाणी जी ने कोई संकेत नहीं दिये कि वे राजनीति से संन्यास लेने जा रहे हैं । या मुरली मनोहर जोशी क्या संन्यास लेने जा रहे हैं ? कौन सी आस है जो उन्हें अभी तक संन्यास की घोषणा से रोके हुई है ? कैप्टन अमरेंद्र सिंह सब देख चुके । पार्टी की बुरी तरह हार हुई लेकिन संन्यास की बजाय अभी तक राजनीति की शतरंज खेल रहे हैं । क्या आकर्षण है ? क्या पाना बाकी रह गया है ? गाने की पंक्तियां देखिए
क्या पाया नहीं तूने
क्या खोज रहा है तू ,,;
मेरे मन यह बता ,,,नितिन गडकरी का मन पूछ रहा है कि प्रधानमंत्री कब बनोगे ? नहीं बन सकते तो राजनीति छोड़कर एक तरफ हो जाओ । कोई और समाज सेवा का क्षेत्र चुन लो । इतना आसान तो नहीं दिल को समझाना ।
चाहे ये मानो , चाहे वो मानो
मकसद तो है
दिल को समझाना ...
अब दिल समझ जाये तो फिर आप संन्यास न ले जायें ...गडकरी जी पर अभी आस बाकी है ...
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।