समाचार विश्लेषण/राजनीति में नहीं रहा परकाश
देश व पंजाब की राजनीति के चर्चित व्यक्तित्व पांच बार मुख्यमंत्री रहे कद्दावर नेता परकाश सिंह बादल नहीं रहे । कह सकता हूं कि राजनीति में परकाश नहीं रहा । सरपंच से लेकर पांच पांच बार मुख्यमंत्री बनने का शानदार सफर तय कर बादल अंतिम यात्रा पर निकल गये । एक बार अकाली दिग्गज नेता ज्ञानी करतार सिह ने इन्हें राजनीति की राह दिखाते कहा कि तुम्हें तहसीलदार नहीं बनना है बल्कि तहसीलदार बनाने हैं यानी एक समय ये तहसीलदार बनने का सपना देख रहे होंगे !
-*कमलेश भारतीय
देश व पंजाब की राजनीति के चर्चित व्यक्तित्व पांच बार मुख्यमंत्री रहे कद्दावर नेता परकाश सिंह बादल नहीं रहे । कह सकता हूं कि राजनीति में परकाश नहीं रहा । सरपंच से लेकर पांच पांच बार मुख्यमंत्री बनने का शानदार सफर तय कर बादल अंतिम यात्रा पर निकल गये । एक बार अकाली दिग्गज नेता ज्ञानी करतार सिह ने इन्हें राजनीति की राह दिखाते कहा कि तुम्हें तहसीलदार नहीं बनना है बल्कि तहसीलदार बनाने हैं यानी एक समय ये तहसीलदार बनने का सपना देख रहे होंगे ! सन् 1970 से लेकर सन् 2012 के बीच बादल पांच साल मुख्यमंत्री बने और सबसे उम्रदराज ही नहीं सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री भी बनने का रिकाॅर्ड इनके ही नाम है । सिर्फ 43 वर्ष के थे जब पहली बार मुख्यमंत्री बने और 84 साल के थे जब आखिरी बार इसी पद पर शोभायमान हुए । ज्यादातर विपक्ष को मजबूत करने में भी जुटे रहे और केंद्र सरकार बनने में इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता । क्षेत्रीय दलों को पहचान दिलाने में अहम् भूमिका रही । आखिरी चुनाव में इन्हें पराजय का सामना करना पड़ा । एक प्रगतिशील , युवा मुख्यमंत्री के तौर पर बादल ने ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब बच्चों के लिये सन् 1979 में गवर्नमेंट आदर्श स्कूल खोले जिसमें मुझे भी पहले प्राध्यापक और बाद में प्रिसिंपल के तौर पर काम करने का अवसर मिला । ऐसे ही स्कूल जैसे आजकल हरियाणा में संस्कृति माॅडल स्कूल है । बेशक आज चाहे अरविंद केजरीवाल शिक्षा व गवर्नमेंट स्कूलों की देखभाल का श्रेय ले रहे हैं लेकिन बादल ने इसकी शुरूआत सन् 1979 में ही कर दी थी और ये आधा दर्जन आदर्श स्कूल आज भी उसी शान से चल रहे हैं । यह इनकी देन मानी जा सकती है जो स्थायी याद रहेगी । सबसे बड़ी बात कि इन स्कूली के लिये स्टाफ चुनने के समय शूरू शुरू में बादल खुद बैठे थे और बिना किसी सिफारिश सिर्फ योग्यता के आधार पर स्टाफ का चयन कर कीर्तिमान बनाया था । एक सपना देखा था इंग्लैंड के दौरे है लौटकर क्योंकि वहां उन्हे ग्रामीण क्षेत्र में ऐसे स्कूल दिखाये गये थे ।
अगर नहीं कर पाये तो सतलुज यमुना लिंक नहर का कोई हल । हां , किसानों को उनकी जमीनें जरूर लौटा दी थीं । हरियाणा की राजनीति में ये चौ देवीलाल के पगड़ी बदल भाई कहलाते थे । दोस्ती तो खूब निभाई लेकिन सतलुज यमुना लिक नहर के मामले में अलग अलग ही राजनीति करना इन परिवारों की विवशता रही । विपक्ष यही बात जनसभाओं में उठाता रहा कि यदि पगड़ी बदल भाई हैं तो बैठकर इस नहर का फैसला क्यों नहीं कर देते ? हां , चौटाला परिवार के राजनीतिक बिखराव को रोकने की कोशिश में भी सफल न हुए । आपातकाल में एक ट्रक ड्राइवर बन कर पुलिस को चकमा दे दिया था । यानी ड्रामा और सादगी दोनों में कुशलता हासिल थी । एक बात तो तय है कि राजनीति से प्रकाश चला गया है ।
बेटे सुखबीर सिंह व बहूरानी सिमरन को राजनीति के सारे दांव पेच समय रहते ही सिखा दिये । फिर भी इनके लम्बे अनुभव का फायदा सुखबीर को अभी तक नहीं मिला । अब पिता के बाद सुखबीर शिरोमणि अकाली दल को एकजुट रखने में सफल रहते हैं या नहीं ? यही देखना है ! विनम्र श्रद्धांजलि ऐसे नेता को ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।