समाचार विश्लेषण/संसद में हंगामे से दुखी प्रधानमंत्री 

समाचार विश्लेषण/संसद में हंगामे से दुखी प्रधानमंत्री 
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ और  जैसी हमारी नयी परंपरा बन गयी है , हंगामे की भेंट चढ़ गये दोनों सदनों में  ये पहले दिन के सत्र । इससे हमारे प्रधानमंत्री बहुत व्यथित हुए और कहा कि परंपरा के अनुसार नये मंत्रियों के परिचय भी नहीं करवाने दिये । यह परंपरा प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से चली आ रही है । विपक्षी सांसदों ने न केवल हंगामा किया बल्कि नारेबाजी भी की । इस पर क्षुब्ध प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कुछ लोगों को दलित , आदिवासी, अलाप पिछड़ा  वर्ग और महिला मंत्रियों का यहां परिचय करवाया जाना रास नहीं आ रहा । दोनों सदनों में विपक्षी सांसद तीन नये कृषि कानूनों और बढ़ती महंगाई जैसे ज्वलंत मुद्दों पर नारेबाजी करते दिखे । हालांकि सदन की कार्यवाही स्थगित भी की गयी लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा ।
अब सवाल उठता है कि आखिर नकारात्मक मानसिकता बनी कैसे ? परंपरायें टूटती क्यों जा रही है ? कभी सोचिए ।
जब गोवा में बिना कांग्रेस को राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का न्यौता देने से पहले ही आप दलबदल कर सरकार बना लेते हो , तब कौन सी परंपरा का पालन किया गया था ? जब आधी रात को दलबदल करवा कर महाराष्ट्र में राज्यपाल को जगा कर सरकार बना देते हो तब कौन सी परंपरा का पालन किया गया था ? जब मणिपुर में मात्र दो विधायकों के बल पर ही कांग्रेस विधायकों को तोड़कर सरकार बना ली थी , तब कौन सी परंपरा का पालन किया था आपने ? जब उत्तराखंड में विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया था और कोर्ट ने हरीश रावत को सरकार लौटाई थी तब कहां गयी थीं आपकी परंपरा की दुहाइयां ? कितनी कितनी बार कोर्ट ने आपको सही कदम के लिए आगाह किया ताकि आप लक्ष्मण रेखायें न लांघें । राजस्थान में मुख्यमंत्री द्वारा सत्र बुलाने की मांग राज्यपाल ठुकराते रहे और फाइल लौटाते रहे , वह कैसी परंपरा थी ? राष्ट्रपति को दखल देना चाहिए था । 
 किसान आंदोलन में आपने बातचीत के द्वार ही बंद कर लिये ? यह लोकतांत्रिक परंपरा है क्या ? यदि देश का किसान आपके द्वार पर सात माह से बैठा अपनी बात कहना चाहता है तो आप समय निकाल कर सुनते क्यों नहीं ? क्यों एक फोन काॅल की दूरी पर बैठे हो ? आदिवासी , दलित और अल्प संख्यकों की चिंता है किसान की नहीं ? वे क्या इस देश में नहीं रहते ? 
प्रधानमंत्री जी की व्यथा बहुत उचित है क्योंकि संसद पर एक दिन में लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं ताकि सबसे बड़ी पंचायत में देशवासियों की समस्याओं पर बातचीत की जाये और कोई हल निकाला जाये । विपक्षी सांसदों को भी परंपराओं का पालन कर इस पैसे का सदुपयोग करने के लिए सहयोग करना चाहिए । प्रदर्शन व धरने के लिए सड़क बहुत है । संसद से सड़क तक देश मे प्रदर्शन ही प्रदर्शन हो रहे हैं । 
कृपया परंपराओं का पालन कीजिए और देश को लोकतांत्रिक राह पर चलाने में पक्ष और विपक्ष सहयोग दें ।