प्रो. बलवीर व डॉ. श्रीभगवान ने अंतर्राष्ट्रीय शोध-संगोष्ठी में शोध पत्र प्रस्तुत किए

प्रो. बलवीर व डॉ. श्रीभगवान ने अंतर्राष्ट्रीय शोध-संगोष्ठी में शोध पत्र प्रस्तुत किए

रोहतक, गिरीश सैनी। एमडीयू के संस्कृत विभाग के पूर्व-विभागाध्यक्ष प्रो. बलवीर आचार्य एवं वर्तमान विभागाध्यक्ष डॉ. श्रीभगवान ने राजस्थान विवि, जयपुर में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय शोध-संगोष्ठी में शोध पत्र प्रस्तुत किया। इस प्रतिष्ठित अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन भारतीय ज्ञान परंपरा में विधि एवं न्याय की अवधारणा: वर्तमान भारतीय विधिक विकास के परिप्रेक्ष्य में विषय पर किया गया।

प्रो. बलवीर आचार्य ने वैदिक न्याय व्यवस्था शीर्षक से अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि वेदों में न्याय व्यवस्था की विस्तृत व्याख्या की गई है। वेदों में नारी के अधिकार की बातें कही गई हैं और नारी को पुरुष के साथ समानता का अधिकार दिया गया है।

डॉ. श्रीभगवान ने प्राचीन भारतीय न्याय- व्यवस्था शीर्षक से प्रस्तुत अपने शोध पत्र में कहा कि भारत में दुनिया की सबसे प्राचीन न्यायपालिका है। किसी भी अन्य न्यायिक प्रणाली की वंशावली इतनी प्राचीन या उच्च नहीं है। आधुनिक भारतीय न्याय व्यवस्था मूल रूप से प्राचीन समय से चली आ रही न्याय विधानों तथा दंड स्वरूपों पर ही विकसित हुई है। उन्होंने कहा कि हमारी आधुनिक न्याय व्यवस्था की स्थापना तथा उत्पत्ति में प्राचीन वेदों, स्मृतियों, महाकाव्यों तथा कौटिल्य और शुक्र जैसे विद्वानों द्वारा लिखित व्यवस्था का योगदान रहा है। इस सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय विद्वानों एवं शिक्षाविदों ने प्रो. बलवीर आचार्य एवं डॉ. श्रीभगवान के शोध पत्र की सराहना की।