प्रो. संदीप चाहल ने बनाया बटरफलाई मैप ऑफ जालंधर

प्रो. संदीप चाहल ने बनाया बटरफलाई मैप ऑफ जालंधर
प्रो. संदीप चाहल से नो टू डेकोरेट फोटोफ्रेमस ऑफ बटरफ्लाई के फ्रेम के साथ। बटरफ्लाई मैप ऑफ जालंधर।  

पूरे विश्व में 20 मार्च को सैव सपैरोज़ दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि जनमानस को गोरईया की कम होती जनसंख्या और इसके संरक्षण एवं बचाने के उपाओं के बारे में जागरूक किया जा सके। जालंधर की एनजीओ दस्तक वेलफेयर काउंसिल गत 16 वर्षों से जालंधर एवं पंजाब में चिड़िया बचाओ अभियान एवं उसके संरक्षण के लिए भरकस प्रयास कर रही है। इस एनजीओ के प्रधान प्रो. संदीप चाहल ने गत वर्ष पिछले कई वर्षों के शोध के आधार पर वैज्ञानिक- लाइन ट्रांजेक्शन मेथड द्वारा बाइनोकुलर्स एवं डीएसएलआर कैमराज़ की सहायता से एनजीओ दस्तक वेल्फेयर काऊँसल वालंटियरस के माध्यम से जालन्धर जिले में सर्वेक्षण कर सपैरो मैप ऑफ जालन्धर बनाया था जिसमें ज़िले में गोरईया के जालन्धर में विभिन्न स्थानों में पाई जाने की विस्तृत जानकारी दी गई थी। प्रो. संदीप चाहल ने बताया कि तितलियों की बचपन की अवस्था लारवा अथवा सुंडियां सभी पंछियों की प्रमुख डाईट होती है क्योंकि यह प्रोटीन से भरपूर होती है जिससे कि सभी पंछी अपने छोटे अंडों में से निकले हुए बच्चों को देते हैं ताकि उनके शरीर का विकास जल्द हो सके।

तितलियों का लारवा अथवा सुंडियां सभी पंछियों की फूड चेन का प्रमुख अंग हैं जो कि ईको सिस्टम को बनाए रखने के लिए अति ज़रूरी है। प्रो. संदीप चाहल ने दो वर्ष के गहन अध्ययन के उपरान्त वर्ल्ड स्पैरो डे को समर्पित बटरफ्लाई मैप ऑफ जालंधर बनाया है जिसमें जालंधर के पाँच सब डिवीज़न व गयारह बलॉकों में पाए जाने वाली इण्वायरमेंट इंडीकेटर की तितलियों की प्रजातियों की डिस्ट्रीब्यूशन के बारे में दशार्या गया है। प्रो. चाहल ने बताया कि इस बटरफ्लाई मैप ऑफ जालंधर में यह बताया गया है कि जालंधर ज़िले में मिल्कवीड अथवा अक के पौधे पर पलेन टाईगर तितली, सभी सिटरस पौधों पर लाईम तितली, अशोका के पेड़ पर ब्लू-जे तितली, पत्ता गोभी पर कैबेज तितली, अन्य मौसमी फूलों पर लैमन पैंसी तितली, पी-कॉक पैंसी तितली, वाईट एवं यैलो आरेंज टिप तितली तथा ग्रेट एगफलाई तितली की प्रजातियां देखने को मिली हैं। 

प्रो. चाहल ने कहा कि विश्व में तकरीबन तितलियों की 2400 प्रजातियां हैं जिनमें अकेले भारत में तकरीबन  1500 प्रजातियां पाई जाती हैं।  विभिन्न प्रजातियों की तितलियों का जीवन काल भी अलग-अलग होता है। पंजाब में  तितलियों की 142 प्रजातियां तथा उनकी 14 फैमिलीज़ पाई जाती हैं जोकि यहां पर मौजूद 12 नेचुरल वैटलैंडस तथा 10 मैन मेड वैटलैंडस में साधरणत: देखी जा सकती हैं। भारत में ही करीब सौ तितलियों की प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं पंजाब में पाई जाने वाली कैबेज तितली प्रजाति के संरक्षण में बहुत सहायक मानी जाती हैं।   अध्ययन के अनुसार एक तितली का  अण्डे से व्यस्क होने  तक का  जीवन दो सप्ताह से लेकर कई महीनों तक  हो सकता हैं। वास्तव में तितलियों का लारवा प्रकृति के अनेक जीवों विशेषकर पंछियों का भोजन बनने के कारण भोजन श्रृंखला का  अहम हिस्सा है। बहुत से पंछी अपने बच्चों को तितलियों के  लारवा को ही  भोजन  के रूप में  देते हैं क्योंकि इसमें प्रोटीन के तत्व बहुतात में होते हैं जिससे शरीर का विकास जल्दी होता हैं।  लारवा के  भोजन श्रृंखला का हिस्सा होने के कारण मात्र पांच फीसदी तितलियां ही प्रकृति में बच पाती हैं। 

प्रो. संदीप चाहल ने कहा कि मानव जीवन के लिए बेहद जरूरी  पौधों, और फसलों में पोलिनेशन की प्रकिया व इनकी उपज को बढ़ाने  एवं सुचारू बनाने के लिए मधुमक्खियों के बाद तितलियां ही सर्वप्रिय हैं। कृषि क्षेत्र में तितलियों के माध्यम से होने वाले सेचन, परागण यानि की पालिनेशन की कीमत प्रति वर्ष दौ सौ बिलियन डालर की है यानि तितलियां प्रतिवर्ष खेती में मनुष्य को 200 बिलियन डालर का फायदा पहुंचाती हैं।  लोगों को शहरीकरण के दौर में अपने घरों में सिट्रस प्रजाति के पौधों - किन्नू, संतरे व निम्बू तथा उनके बोनसाई प्रजातियों को गमलों में लगाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए जो कि तितलियों की प्रजाति - मोनारक तथा लेमन बटरफ्लाई के प्रजनन तथा इन्हें बचाने के लिए बहुत सहायक हैं। पंजाब सिट्रस प्रजाति के फल - किन्नू का सबसे बड़ा उत्पादक है तथा किन्नू, नींबू व संतरे तथा इनकी बोनसाई प्रजातियों के पत्तों पर मोनारक तथा लेमन बटरफ्लाई अपने अंडे देती हैं तथा पोलीनेशन की प्रक्रिया द्वारा किन्नू फल के बढ़िया उत्पादन करने में मदद करती हैं। लेमन तितलियां सिट्रस प्रजाति के फलों खासकर किन्नू, संतरे व निम्बू के उतपादन में भी किसानों को हर वर्ष 10 मिलियन डॉलर फायदा पहुंँचाती है। 

प्रो. संदीप चाहल ने बताया कि पंजाब में बहुरंगी लेमन बटरफ्लाई की तस्करी तितलियों के तस्कर बाल श्रम के अन्तर्गत बच्चों को 150 रुपए दिहाड़ी के हिसाब से  दे कर गैर कानूनी ढंग से इन्हें पकड़वाते हैं तथा इन मरी हुई तितलियों को हांगकांग, इंडोनेशिया, फिलिपिनस, चीन, ताइवान, जापान, इंग्लैंड, कनाडा व अमेरिका में उँचे दामों में 2000 से 5000 रुपए तक बेचते हैं। दुख की बात है कि तस्करी के कारण तितलियों के वजूद पर  संकट मंडरा रहा है। भारत में नॉर्थ ईस्ट स्टेटस- मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, नागालैंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, आसाम, पंजाब, हिमाचल व जम्मू कश्मीर में तितलियों को पकड़ कर विभिन्न राज्यों के साथ-साथ विदेश में तस्करी करके भारी दामों पर इन्हें बेचा जाता है। 

पूरे विश्व में हर वर्ष तकरीबन 20 मिलियन डॉलर का तितलियों का अवैध कारोबार बेधड़क चल रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कुछ तितलियों की प्रजातियों का गहनों के बराबर का मूल्य है तथा वह काफी महंगे दामों पर बेची जाती हैं। 

पकड़ कर मारी गई  तितलियों  को फोटो  फ्रेम में बंद कर  दीवारों पर सजाने, कानों में गहनों की तरह  पहनने और सजावटी सामान के तौर पर इस्तेमाल की जाती हैं। 

वाइल्ड लाइफ एक्ट 1972 के अन्तर्गत संरक्षित होने के कारण तितलियों को पकड़ना, मारना व इसकी तस्करी करना कानूनन जुर्म है। परन्तु दुख की बात है कि देश में इस कानून को सख्ती से लागू नहीं किया जा सका है जिसके कारण इनकी तस्करी बेधड़क जारी है। प्रो. संदीप चाहल ने बताया कि पिछले दस वर्षों में एनजीओ दस्तक वेलफेयर काउंसिल के माध्यम से शहर के शिक्षण संस्थानों में तथा विभिन्न इलाकों में सेमिनार का वह से नो टू डेकोरेट बटरफलाई फ्रेमस का अभियान चला रहें हैं जिससे वह जनमानस को पकड़ कर मारी गई तितलियों के महंगे फोटोफ्रेम्स लोगों को ना खरीदने के लिए प्रेरित कर रहें हैं तथा उन्हें कैमरे के साथ उनकी फोटो खींचने के लिए उत्साहित कर रहें हैं ताकि तितलियों को बचाया जा सके।