संस्कृत विभाग के प्राध्यापकों ने अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सम्मेलन में शोध पत्र प्रस्तुत किए

संस्कृत विभाग के प्राध्यापकों ने अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सम्मेलन में शोध पत्र प्रस्तुत किए

रोहतक, गिरीश सैनी। एमडीयू के संस्कृत विभाग के प्राध्यापकों- प्रो. सुरेन्द्र कुमार, प्रो. सुनीता सैनी तथा डॉ. ‌रवि प्रभात ने कर्नाटक में आयोजित अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सम्मेलन में शोध पत्र प्रस्तुत किया।

कर्नाट के उडूपी स्थित कृष्ण मठ में आयोजित संस्कृत जगत के इस प्रतिष्ठित सम्मेलन में प्रो. सुरेन्द्र कुमार ने “चित्तवृत्ति-विमर्श” शीर्षक से अपने शोध पत्र में भारतीय दर्शन परंपरा में प्रतिपादित चित्त की वृत्तियों के संदर्भ में विशिष्ट तथ्यों का प्रकाशन किया।

प्रो. सुनीता सैनी ने वाल्मीकि रामायण के आलोचनात्मक संस्करण के आधार पर वैदिक ऋषि अगस्त्य पर समीक्षात्मक अध्ययन कर अपने शोध पत्र का प्रस्तुतीकरण किया। उन्होंने अपने शोध पत्र में ऋषि अगस्त्य से संबंधित तथ्यात्मक अवधारणाओं का प्रतिपादन किया। डॉ. रवि प्रभात ने पाणिनि के एक महत्वपूर्ण सूत्र “इकोऽचि विभक्तौ” को आधार बनाकर समग्र पाणिनीय परंपरा के वैयाकरण आचार्यों कात्यायन, पतंजलि, वृत्तिकर, जिनेन्द्र बुद्धि, हरदत्तमिश्र, कैयट तथा नागेश आदि के मन्तव्यों का विश्लेषण कर कई व्याकरणिक गूढ़ गुत्थियों को सुलझाने का कार्य अपने शोध पत्र में प्रस्तुत किया।

एमडीयू के प्राध्यापकों के शोध पत्रों के समीक्षक मंडल में शामिल रामटेक संस्कृत विवि के कुलपति प्रो. मधुसूदन पेन्ना, डेक्कन कॉलेज पुणे के प्रो. प्रसाद जोशी, सम्मेलन के अध्यक्ष प्रो. सरोज भाटे तथा नवनियुक्त अध्यक्ष केंद्रीय संस्कृत विवि के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी ने इन शोध पत्रों की सराहना की और महर्षि दयानंद विवि की उपस्थिति को सराहते हुए हुए अपनी शुभकामनाएं व्यक्त की । संस्कृत विभाग के प्राध्यापकों के अखिल भारतीय सम्मेलन में भाग लेने पर एमडीयू के कुलपति प्रो. राजबीर सिंह ने भी सराहना करते हुए कहा कि प्राध्यापकों को ऐसे प्रतिष्ठित सम्मेलनों में सहभागिता करते रहना चाहिए, इससे विवि में शोध के लिए उपयुक्त वातावरण का निर्माण होता है।