समाचार विश्लेषण/मुख्यमंत्रियों के जनस॔वाद
लम्बा समय पत्रकारिता में हो गया । नेताओं और जनता के बीच संवाद भी देखते हुए रोचक दृश्य देखने को मिलते रहे । पंजाब में था तब प्रकाश सिह बादल मुख्यमंत्री थे और हमारे क्षेत्र में आये और गांव दर गांव कहते रहे आपकी सब्जियां जहाज से भेजने का प्रबंध किया जायेगा । ग्रामीण गद्गद् होते रहे , तालियां गूंजती रहीं और देखिये पांच पांच बार मुख्यमंत्री बने लेकिन ग्रामीणों का स्तर नहीं उठा , आलू तक खेतों में ही पड़े रहते सही मूल्य के अभाव में ! वैसे जब भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा के मुख्यमंत्री थे उन दिनों इनके जनसंवाद में मंच संचालन करने वाले प्रो वीरेंद्र कहते थे -हुड्डा तेरे राज में जीरी गयी जहाज में !
-*कमलेश भारतीय
लम्बा समय पत्रकारिता में हो गया । नेताओं और जनता के बीच संवाद भी देखते हुए रोचक दृश्य देखने को मिलते रहे । पंजाब में था तब प्रकाश सिह बादल मुख्यमंत्री थे और हमारे क्षेत्र में आये और गांव दर गांव कहते रहे आपकी सब्जियां जहाज से भेजने का प्रबंध किया जायेगा । ग्रामीण गद्गद् होते रहे , तालियां गूंजती रहीं और देखिये पांच पांच बार मुख्यमंत्री बने लेकिन ग्रामीणों का स्तर नहीं उठा , आलू तक खेतों में ही पड़े रहते सही मूल्य के अभाव में ! वैसे जब भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा के मुख्यमंत्री थे उन दिनों इनके जनसंवाद में मंच संचालन करने वाले प्रो वीरेंद्र कहते थे -हुड्डा तेरे राज में
जीरी गयी जहाज में !
सन् 1997 में हिसार( हरियाणा) आ गया । चौ बंसीलाल की सरकार थी और सरकारी प्रवक्ता गाड़ी में रैलियों की कवरेज के लिये लेने आते थे । चौ बंसीलाल की बास गांव की रैली नहीं भूलती । गांव की पंचायत ने अनेक विकास कार्यों का ज्ञापन सौंपा तो एकदम बिफर पड़े ! गुस्से में बोले-मेरा बस चले तो बास में एक बड्डी सी जेल बनवा दूं । पहले अपने छोरेयां ने अपराध और लूटमार से हटाओ , तब कोई काम करूंगा । असल में उन दिनों मुंढाल के चौराहे पर देर रात निकलना मुश्किल था और अनेक वारदातें होने के समाचार आते रहते थे ! यह अनोखा अंदाज था चौ बंसीलाल के जनसंवाद का ! इससे भी बढ़कर घिराय गांव में मीडिया से रूबरू होना नहीं भूल पा रहा ! एक पत्रकार साथी ने सवाल किया कि किसका कद बड़ा है राजनीति में ? आपका या चौ भजनलाल का ? चौ बंसीलाल का जवाब-फीता ले आ भाई कहीं से ! माप ले ! यही हाजिरजवाबी ही तो कमाल की थी !
फिर ओमप्रकाश चौटाला के अनेक जनसंवाद कार्यक्रमों में जाने का अवसर मिला ! बरवाला की अनाज मंडी में लोकसभा की करारी हार के बाद जनसंवाद कर रहे थे । एक गांव की पंचायत की बारी आई । पांच लोग ज्ञापन लेकर हाजिर हुए । एकाध मिनट देखा और गांव का नाम सुनकर बिदक गये ! खफा होकर बोले- गांव से बस पांच लोग ही आये और पचास लाख की ग्रांट मांगने लगे ! ज्ञापन फेंक कर बोले -वोट तो दिये नहीं , ग्रांट दे दो इनको ! जाओ !
जो अधिकारी मुझे जनसंवाद में लेकर आये थे , मैंने उन्हें कहा कि इस गांव में जो पांच वोट बच रहे थे , चौधरी साहब ने तो वो भी फेंक दिये !
आजकल हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी जनसंवाद पर हैं ! कल जो सिरसा जिले के गांव बणी में हुआ वह खूब वायरल हो रहा है । सरपंच नैना झोरड़ समस्या लेकर मंच पर मुख्यमंत्री के सामने आई और बताया कि उनके पति पर हमला हुआ और पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की । इसके जवाब में श्री खट्टर ने कहा कि यह समस्या बाद में अलग से बताना । इस पर महिला सरपंच भड़क गयी और अपना दुपट्टा उतारकर मुख्यमंत्री के पैरों में फेंक कर बोली -यह है हिन्दुस्तानी महिला की इज्जत ! फिर तो पुलिस फटाफट मंच पर आई और महिला सरपंच को हिरासत में लेकर चली गयी ।
इस सारे मामले को विपक्ष को आलोचना का मौका मिल गया या कहिये दे दिया ! हालांकि मुख्यमंत्री ने कहा कि जनसंवाद का मतलब बहसबाजी नहीं है ! आप मंच पर राजनीति न करने लग जायें ! दूसरी ओर खबरें यह भी है कि विरोध करने आने वाले कांग्रेसियों को रतिया के ऑफिस में ही बंद कर दिया ! क्या यह है जनसंवाद? क्या जनता की तकलीफें सुनने नहीं निकले आप ? कहां तो राजा विक्रमादित्य होते थे जो भेष बदल कर रात के समय निकलते थे और कहां दिन में पूरे लेवल लश्कर के साथ जनसंवेद में एक महिला सरपंच की बात पर हंगामा हो गया ! इतना आश्वासन तो दे ही सकते थे कि मामले की जांच करवा लेंगे बहन ! बस ! शब्दों की मरहम तो लगा ही सकते थे ! बात बन जाती ! अब बिगड़ गयी ! यदि कोई समस्या सुनकर हल नहीं करने चाहते तो फिर सीएम विडो ही ठीक है । जनसंवाद में वाहवाही की उम्मीद न कीजिये बल्कि जनता को अपने मन की कह लेने दीजिए ! ऊपर से नीचे तक अपने ही मन की न करते और कहते रहिये ! जंतर-मंतर पर महिला पहलवानों की कोई नहीं सुन रहा ! वे अब दिल्ली की सड़कों पर निकल पड़ी हैं ! कोई महिला कोच की नही सुनता ! सब अपने मन की करते जा रहे हैं और अपने मन की करने का ताजा ताजा प्रमाण और परिणाम मिले कर्नाटक की हार के रूप में ! अब तो संभल जाइये !
दुष्यंत कुमार कहते हैं :
मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूं पर कहता नहीं
बोलना भी है मना , सच बोलना दरकिनार !
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।