समाचार विश्लेषण/मनीष के बाद राबड़ी देवी; ये तेरे प्रतिरूप .. अच्छे नहीं
-कमलेश भारतीय
कभी किसी कविता का शीर्षक था -ये मेरे प्रतिरूप । आज मन में उतर आया । होली आ रही है और दो नेताओं की होली बदरंग हो चुकी है । दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया इसी चक्कर में पूर्व उपमुख्यमंत्री हो गये कि उन्हें सीबीआई ने अपना रूप और रंग दिखाया । अब होली भी जेल में मनाएंगे ! अभी इस पर आठ विपक्षी दलों ने ज्ञापन दिया कि सीबीआई, ईडी और निर्वाचन आयोग जैसी एजेंसियों या स्वास्थ्य संस्थाओं को स्वायत्त ही रहने दिया जाये लेकिन पिछले कुछ वर्षों से ये सत्ता के प्रतिरूप बन गये हैं और विपक्षी नेताओं पर इनके माध्यम से तरह तरह के दवाब बनाये जा रहे हैं । यह कोई स्वस्थ परंपरा नहीं कही जा सकती । यह एक ऐसे लोकतांत्रिक देश में सहज ही स्वीकार्य नहीं , जिसका उदाहरण विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में दिया जाता है ! मनीष सिसोदिया के बाद बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के यहां भी सीबीआई पहुंच गयी । इस तरह उनकी होली भी बेमजा हो गयी । होली है तो होली है लेकिन विपक्ष की तो होली नहीं । यह नहीं कि यदि गलत किया है तो कार्रवाई न की जाये । यह नहीं कि भ्रष्टाचार पर लगाम न कसी जाये लेकिन ऐसा भी संकेत न जाये कि यह सब प्रतिरोध की भावना से किया जा रहा है । ऐसा भी न लगे कि यदि ये लोग भाजपा में शामिल हो गये होते तो इनके सब पाप गंगा में लगाई एक डुबकी की तरह धुल गये होते । ऐसे भी अनेक उदाहरण हैं । इधर आप पार्टी ने भी पंजाब में सत्ता में आने के बाद इसी तरह का रवैया कांग्रेस नेताओं के साथ अपना रखा है । हर पूर्व मंत्री भ्रष्ट साबित किया जा रहा है । अगर कैप्टन अमरेंद्र सिंह के मंत्रिमंडल के मंत्री इतने ही भ्रष्ट थे तो फिर उन पर कोई आंच क्यों नहीं आ रही ? यह भी सोचने की बात है । वे तो मनमोहन सिंह की तरह पाक साफ थे लेकिन मंत्री दोनों हाथों से धन इकट्ठा कर रहे थे ? मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल के कुछ मंत्री भी इसी तरह भ्रष्टाचार में बदनाम हुए । सबसे मजेदार बात देखिए कि महात्मा गांधी के राजघाट पर जाकर शपथ लेने वाले मनीष सिसोदिया को शराब नीति के चलते जेल की हवा खानी पड़ रही है । इसलिए किसी ने सोशल मीडिया पर चुटकी ली कि मनीष सिसोदिया कितना अच्छा काम कर रहे थे कि बच्चों के लिए 'पाठशाला' तो बुजुर्गों के लिए 'मधुशाला' बनवा रहे थे ! खैर ! ये तेरे प्रतिरूप। .. ..लोकतंत्र के लिये अच्छे नहीं !
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।