विश्लेषण/प्रधानमंत्री पद की रेस शुरू
-कमलेश भारतीय
नया साल दस्तक दे रहा है और नये साल में लोकसभा चुनाव आ रहे हैं यानी लोकसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। सभी दलों में प्रधानमंत्री पद के नाम को लेकर खुसर फुसर शुरू हो चुकी है। भाजपा में तो एक ही नाम है-प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी लेकिन विपक्ष में अभी किसी एक नाम पर सहमति बनती नहीं दिखाई दे रही।
कांग्रेस की ओर से यह मांग कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उठाई है कि राहुल गाँधी प्रधानमंत्री बनने की बात स्वीकार करें। राहुल गाँधी के नाम पर सहमति बनेगी या नहीं लेकिन भाजपा के देवेंद्र फडणवीस का मानना है कि राहुल गाँधी लोकप्रिय नहीं और उनके नाम पर सहमति नहीं बनेगी। वैसे राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा ने उनकी ओर जनता का ध्यान खींचा धा और अब चौदह जनवरी से न्याय यात्रा शुरू करने जा रहे हैं जिस पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का कहना है कि जो अन्याय के पर्याय बने रहे, वे न्याय यात्रा निकालने जा रहे हैं। वैसे भारत जोड़ो यात्रा के बाद कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को सरकार बनाने में सफलता मिली थी। अब न्याय यात्रा क्या परिणाम देगी यह भविष्य के गर्भ में है!
दूसरा चर्चित चेहरा है पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का! वे भी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं और उन्होंने अपने इरादे जाहिर कर दिये हैं। एक बार नहीं अनेक बार पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की बात सहज ही याद आती है। उनका कहना था कि वे राष्ट्पति नहीं बल्कि प्रधानमंत्री बनना चाहते थे लेकिन इसमें सबसे बड़ी बाधा रही मेरा हिंदी भाषी न होना! भारत में प्रधानमंत्री बनने के लिए हिंदी जानना बहुत जरूरी योग्यता है। संभवतः यही हिंदी ममता बनर्जी की राह का रोड़ा बनेगी!
एक समय उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शुमार थी लेकिन अब वे बुरी तरह इस दौड़ में पिछड़ ही नहीं गयीं बल्कि इस दौड़ से बाहर हो गयी हैं। इसी तरह कभी प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार भी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल थे लेकिन वे महाराष्ट्र तक सीमित होकर रह गये लगते हैं। वे महाराष्ट्र की अघाड़ी सरकार नहीं बचा पाये। बाकी तो कभी एच डी देवगौड़ा या इंद्रजीत गुजराल ने कब सोचा था कि वे कभी प्रधानमंत्री बनेंगे!
बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के मन में भी प्रधानमंत्री बनने के लड्डु फूट रहे हैं लेकिन वे अपने मन की बात मन में ही रखे हुए हैं। बड़े संभल संभल कर या कहिये कि फूंक फूंक कर कदम रख रहे हैं। अभी इन दिनों तो पार्टी के अध्यक्ष के चर्चे हैं। वे पहले भाजपा के गठबंधन में बिहार में सरकार चलाते रहे और जब किसी बड़े पद की आस पूरी नहीं हुई तब दोबारा कांग्रेस और आरजेडी के साथ गठबंधन कर सरकार बना ली। है न कमाल की कलाकारी! अब भी वे कौन सा कदम उठायेंगे, कोई नहीं जानता!
अब देखिए कि इंडिया गठबंधन में किसके नाम पर सहमति बनती है या इंडिया गठबंधन लोकसभा चुनाव तक कितना टिका रहता है या क्या रूप लेता है। फिर भी ये तो तय है कि इंडिया को किसी सशक्त प्रत्याशी को खोजना होगा! मोदी अभी हुए राज्यों के चुनाव में भी अपना करिश्मा बनाये रखने में सफल रहे और भाजपा में उन्हें अभी कोई चुनौती भी नहीं है!