समाचार विश्लेषण/बिखर रही राहुल गांधी की ड्रीम टीम
-कमलेश भारतीय
क्या राहुल गांधी की ड्रीम टीम बिखर रही है ? यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद जितिन प्रसाद का जाना इसका प्रमाण माना जाये तो गलत नहीं कहा जायेगा । पहले ज्योतिरादित्य गये और मध्य प्रदेश में बनी बनाई कांग्रेस सरकार की विदाई भी हो गयी । हालांकि जितिन प्रसाद के दलबदल से यूपी में ऐसा कोई डर नहीं । वहां कांग्रेस की जड़ें ही उखड़ी हुई हैं । खोया कुछ नहीं कांग्रेस ने क्योंकि जो जितिन प्रसाद खुद तीन तीन चुनाव हार चुके वे कांग्रेस का कितना कल्याण कर पाते ? हां , दलबदल कर अपना कल्याण अवश्य कर लिया । यूपी में कह सकते हैं कि कांग्रेस इस हाल में है कि शनि भी इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता तो जितिन प्रसाद क्या कर लेंगे? और मजेदार बात कि भाजपा की ओर से इसे कांग्रेस के लिए बहुत बड़े झटके के रूप में प्रचारित किया जा रहा है ।सही कह रही हैं कांग्रेस की प्रवक्ता श्रीनेत कि जब केंद्र में मंत्री पद था तब ऐसा क्यों नहीं सोचता कि कांग्रेस में रहकर क्या फायदा ? तब तो लूट सके तो लूट मौज का दर्शन चल रहा था । फिर बताया जा रहा है कि जितिन प्रसाद भी कांग्रेस के गुलाबी गैंग के जी 23 के सदस्य थे और जम्मू जाकर गुलाबी रंग की पगड़ी में दिखे भी थे । यानी जो काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुलाम नवी आजाद को सौंपा था , उस पर कार्यवाही शुरू हो गयी है । ज्योतिरादित्य भी बहुत खुश हुए जितिन के भाजपा में आने से ।
जितिन के जाने का तत्काल असर हुआ राजस्थान पर जहां फिर से सचिन पायलट ने विद्रोह का सुर अलापना शुरू कर दिया । अभी तक असंतुष्ट गुट की सुनी नहीं गयी । जितिन प्रसाद के जाने का असर दिखा प॔जाब में जहां पहले से ही नवजोत सिद्धू प्रकरण चल रहा है । कांग्रेस के दो महत्त्वपूर्ण विकेट भाजपा झटक चुकी है , तीसरे विकेट के लिए संघर्ष जारी है और वह विकेट है सचिन पायलट । ये तीनों राहुल गांधी की ड्रीम टीम के सदस्य रहे और खूब पदों से नवाजा गये लेकिन राहुल व कांग्रेस का सितारा डूबते ही हाथ को झटक कर कमल पकड़ने दौड़े। क्यों? क्या राहुल गांधी का भरोसा सही नहीं था ? क्या उसने गलत टीम का चयन किया था ? इसीलिए वरिष्ठ भी नाराज हुए और युवा भी साथ छोड़ गये ? क्या कारण रहा होगा ? राजनीति में जहां तक भाजपा की बात है, फिलहाल इसका ग्राफ भी नीचे की ओर जा रहा है। खासतौर पर किसान आंदोलन के छह महीनों में । पश्चिमी बंगाल जीत नहीं पाई । पंजाब में अकाली दल से गठबंधन टूट चुका है । दिल्ली में अरविंद केजरीवाल पूरे मुफ्तलाल बन वोटरों पर कब्जा किये हुए हैं । कोरोना से निपटने में असफलता ने भी हालत खस्ता कर रखी है । मन की बात को कम लोग सुनते हैं और आंसुओं भी बेअसर हो रहे हैं । ऐसे में जितिन का भाजपा में जाना कोई बहुत दूरदर्शी निर्णय नहीं । वे कह रहे हैं कि मेरा काम बोलेगा । पहले आपका मंत्री पद बोलता था क्या ? दस साल से आप खामोश बैठे रहे । कहीं दिखाई नहीं दिये । आप वही हो न जिन्होंने सोनिया गांधी के खिलाफ अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा था ? फिर भी राहुल गांधी के विश्वास पात्र बने रहे? यह चूक आपकी नहीं , राहुल गांधी की है जो आपको पहचानने में धोखा खा गया । राजनीति में बाप बेटे को तो बेटा बाप को धोखा देता आ रहा है । भाई भाई को धोखा देता है । राजनीति में रिश्तों का कोई मोल नहीं । कुछ अनोखा नहीं हुआ पर कांग्रेस को अपनी सोच और युवाओं के प्रति नज़रिया बदलना होगा । यह बात साफ है ।