समाचार विश्लेषण/विरोधियों पर छापेमारी, कितनी सही?

समाचार विश्लेषण/विरोधियों पर छापेमारी, कितनी सही?
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
पहले पश्चिमी बंगाल और अब पंजाब के विधानसभा चुनावों में विरोधी पार्टियों के प्रमुख नेताओं के रिश्तेदारों , मित्रों या करीबियों के घरों प्रतिष्ठानों पर ईडी के छापे कितने सही हैं ? पश्चिमी बंगाल में चुनाव के बाद आज तक पता नहीं चला कि उन छापों का नतीजा क्या रहा ? इसी प्रकार राजस्थान में सरकार पलटने के प्रयास के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबियों पर मारे गये ये ईडी के छापे । कोई परिणाम नहीं दे पाये । तो क्या जो पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी इसे दवाब की राजनीति कह रहे हैं , वह सही है ? चन्नी के भांजे पर ईडी की रेड में करोड़ों रुपए बरामद करने की बात सामने आ रही है । इसे अवैध रेत खनन के साथ जोड़कर देखा जा रहा है । यदि ईडी इतनी ही सतर्क है तो हरियाणा के तोशाम के निकट खानक से अवैध खनन करने वालों पर अब तक छापे मारने क्यों नहीं निकला ? क्या इसलिए कि यहां भाजपा-जपपा का शासन है ? आइए न यहां भी । दो मजदूर इनके इसी खनन के शिकार हो गये । सबने दौरे किये लेकिन क्या ईडी को कोई विशेष न्यौता देना पड़ेगा? 
असल सवाल तो यह है कि राजनीति में बदला लेने की भावना या बदले की कार्यवाही बढ़ती जा रही है । यदि आप सत्ताधारी दल के साथ हैं तो आपके सात खून माफ हैं और यदि आप विरोधी हैं तो आप तो आप आपके रिश्तेदार , मित्र और जानकार सभी अपराधी हैं । अभी ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश में केशव प्रसाद मौर्य का भी है जिन्होंने भाजपा क्या छोड़ी कि उनका पुराना केस झट गूगल  देवता ने बाहर निकाल दिया जैसे कभी जिन्न हाजिर हो जाता था । ऐसे ही । अब बताइए जब तक मौर्य भाजपा के साथ थे तब तक ये केस कहां धूल चाट रहा था ? अब अचानक इस पर चुनावों के दौरान कार्यवाही क्यों की जा रही है ? इतने साल मौर्य की मंत्री क्यों बनाये रखा ? अब ऐसा क्या हो गया कि केस निकाल लिया ? याददाश्त इतनी तेज कैसे हो गयी ? कुलदीप सेंगर की बेटी आज ही क्यों बताने निकली की आशा सिंह क्या और कैसी है ? 
राजनीतिक विरोधियों पर ऐन चुनाव के अवसर पर ईडी या सीबीआई के छापे यही साबित करते हैं कि ये एजेंसियां पिंजरे के तोतों की तरह काम कर ही हैं , स्वतंत्र नहीं हैं । आज भाजपा के राज में जो हो रहा है , वही कभी कांग्रेस  के राज में होता आया और ये तोते सत्ताधारी दल की बोली बोलते रहते हैं । 
राजनीति में बदले की भावना नहीं होनी चाहिए । जब आप विकास की बात कर रहे हो तो बताइये कि क्या क्या काम किये और क्या क्या करेंगे ?  ये बताइये कि आप क्या कर पाये और क्या नहीं ? दीजिए अपना रिपोर्ट कार्ड । फिर जनता फैसला कर लेगी कि किसे चुनना है , किसे नहीं । ये बदले की राजनीति से कुछ होना होता तो पश्चिमी बंगाल में जीत मिलती लेकिन ये छापेमारी बेअसर हो गयी । ऐसे ही कहीं पंजाब में भी देखने को न मिले । क्या रणनीति में बदलाव की जरूरत तो नहीं ? जरा सोचिए चाणक्य जी ....?
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।