समाचार विश्लेषण/राजधर्म, कुंभ और कोरोना
-कमलेश भारतीय
राजधर्म के बारे में पुराने शास्त्रों में बहुत कुछ वर्णित है । यह आम बात पढ़ने को मिलती है कि राजा भेष बदल कर जनता के सुख दुख जानने निकलता था और उसी ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर फैसले भी लिए जाते थे । फिर चाहे राजा राम द्वारा पत्नी सीता को वनवास देने जैसा कठोर फैसला क्यों न हो । महाराजा रणजीत सिंह ने पत्थर मारने के चलते जब कारण पूछा तो पता चला कि फलदार पेड़ को पत्थर मार रहे थे तो उन्होंने भी बच्चों को उपहार दिये । यह कह कर कि जब एक पेड़ पत्थर खाकर फल देता है तो मैं राजा होकर उपहार क्यों न दूं ? वैसे आजकल के नेता दलित बस्तियों में जाकर डिस्टिल्ड वाटर की बोतल के साथ भोजन करते दिखाई देते हैं । इनके घरों में नाइट स्टे का चलन भी चला था कुछ दिन । म्हारे हरियाणे के नेता भी मीडिया के साये में रातें बिताते थे । चौ देवीलाल राह चलते कहीं भी काफिला रुकवा कर आम आदमी का हालचाल जानते और फैसले करते । फिर आया खुले दरबारों या संगत दर्शन का दौर । जनता दरबार या फिर प्रशासनिक तौर पर जनपरिवाद बैठकों का दौर पर दुख दर्द वहीं रहा ।
अब पश्चिमी बंगाल में चुनाव है और चाहे भाजपा हो या फिर तृणमूल कांग्रेस सब चुनाव रैलियों और भव्य रोड शो में व्यस्त व एक दूसरे की होड़ कर रहे हैं । कोरोना इतना फैल चुका है कि पश्चिमी बंगाल में प्रचार करने गये यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कोरोना संक्रमित पाये गये हैं । यूं तो कोरोना संक्रमित होने वाले नेताओं की सूची बढ़ती जा रही है। चाहे रणदीप सुरजेवाला हों , दिग्विजय सिंह हों , हरसिमरत कौर बादल हो या फिर कितने ही फिल्म अभिनेता हों लेकिन सरकार ज़रा भी गंभीर नहीं हो रही । पश्चिमी बंगाल जीतने की होड़ में पहले तो आठ चरण लम्बे कार्यक्रम को तैयार किया गया और फिर रैलियों और रोड शो की धूम मचा रखी है सभी दलों ने । इस तरह कोरोना को पूरा मौका दिया जा रहा है अपने शिकार ढूंढने का । फिर भी बार बार आग्रह के बावजूद न निर्वाचन आयोग और न ही प्रधानमंत्री जनता का दुख समझते हुए अब बाकी बचे तीन चरण का चुनाव एक साथ करवाने को तैयार नहीं । स्थगित तो हो नहीं सकता। कम से कम एक साथ तो करवाया जा सकता है लेकिन जिद्द ठहरी नेताओं की और मरण जनता का । हालांकि कांग्रेस के एक प्रत्याशी भी कोरोना की भेंट चढ़ चुके हैं । फिर भी सियासत है कि पिघल नहीं रही ।
दूसरी ओर हरिद्वार का कुंभ मेला जिससे सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमण फैलने के समाचार आ रहे हैं लेकिन अभी पूरा संत समाज इस कुंभ को समाप्त करने के पक्ष में एकजुट नहीं बल्कि विवाद और खींचतान जारी है और सरकार भी कह रही है कि 27 अप्रैल को शाही स्नान के प्रबंध पूरे हैं । जिस तरह से एक महामंडलेश्वर इस कोरोना की चपेट में आए उसको देखते हुए इनके समाज के संतों ने तो कुंभ समाप्त करने और अपनी वापसी की तैयारी वह शुरू कर दी लेकिन कुछ दूसरे संत समाज हैं जो अभी इसे पूरा यानी 27 अप्रैल तक चलाने पर अड़े हैं जिसके सामने एक भीरू सरकार भी हाथ जोड़े खड़ी है । जहां सवाल धर्म या आस्था का नहीं । यहां सवाल राजधर्म का है । राजधर्म कहता है कि अपनी प्रजा की रक्षा करो । फिर देर किस बात की ? उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को तुरंत फैसला लेना चाहिए कि क्या कोरोना को फैलने की छूट देनी है या इसे रोकना है ? इसी तरह निर्वाचन आयोग को पश्चिमी बंगाल में कोई फैसला लेना चाहिए । कम से कम रैलियों और रोड तो पर तो प्रतिबंध लगाया ही जा सकता है । सोशल मीडिया पर प्रचार करें सभी दल ।