रतन टाटा : समाजसेवा से मिली खुशी
-*कमलेश भारतीय
सारा देश नतमस्तक है रतन टाटा के आगे, श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है, विदाई दे रहा है लेकिन दिल में कह रहा है -नो टाटा, मेरे रतन । रतन टाटा ने सबको अपने मोहपाश में बांध लिया । एक कहानी पहले भी आती रही, अब फिर से वायरल हो रही हैं कि एक रेडियो कार्यक्रम में जब रतन टाटा से सबसे बड़ी खुशी किस बात से मिली के बारे में पूछा गया तब उनका जवाब था कि एक समय धनी बनने से खुशी ढूंढने की कोशिश की, नहीं मिली, फिर उद्योग बढ़ाने में खुशी ढूंढी लेकिन एक बार किसी मित्र ने विकलांगों के लिये व्हील चेयर मांगी। मैंने दो सौ व्हील चेयर खरीद दीं लेकिन दोस्त ने आग्रह किया कि बांटने भी चलूं और मैं गया । जब सभी व्हील चेयर बांट कर चलने लगा तब एक विकलांग ने मेरी टांगों से मुझे पकड़ लिया, जिससे मेरा चेहरा उसके सामने आ गया । मैने पूछा कि कुछ और चाहिए क्या? उस बच्चे ने कहा कि मैं आपका चेहरा अच्छे से देखना चाहता था ताकि जब स्वर्ग में आपसे मिलू़ं तो आपको पहचान सकूं । इस चेहरे की खुशी मेरी सबसे बड़ी खुशी थी ।
यह है उद्योगपति रतन टाटा का असली चेहरा, जिसे सब याद रखेंगे ! वैसे रतन टाटा का बचपन बहुत सुखद नहीं रहा । दस साल के थे जब मां बाप में तलाक हो गया और दादी ने पढ़ाया लिखाया, पाला पोसा । स्कूल में बच्चे मां बाप को लेकर ताने भी कसते लेकिन दादी खामोश रहने की शिक्षा देती । विदेश में पढ़ाई की, आर्किटेक्ट बने, पढ़ते समय कभी पैसे आने में देर हुई तो रेस्तरां में बर्तंन भी धोने से संकोच नहीं किया । फिर स्वदेश लौटे और गुरु जेआरडीटाटा से सीखे मंत्र और बने देश के बड़े उद्योगपतियों में से एक ।
विवाह नहीं हुआ या किया नहीं क्योंकि फिल्म अभिनेत्री सिम्मी ग्रेवाल से प्यार हुआ लेकिन शादी का इकरार न हुआ और मित्र बने रहे आजीवन । कभी बेईमानी करने की कोशिश नहीं की । समाजसेवा कर ही खुशी पाने की कोशिश की । चाहते तो राजनीति में जा सकते थे लेकिन समाजसेवा का रास्ता ही चुना । अपने गुरु व चाचा जेआरडीटाटा से विनम्रता का गुण ग्रहण किया, सबके लिए उपलब्ध रहने का मंत्र बनाया । सबकी पहुच में रहने की इच्छा रही । कोई शो ऑफ नहीं बड़प्पन का । उन्हें अधूरे या गलत इम्पलिमेंटेशन पर गुस्सा आता था । वे जैसे अंदर थे, वैसे बाहर दिखना चाहते थे और दिखते रहे ।
ऐसे रतन को कौन कहना चाहेगा टाटा?
बड़े गौर से सुन रहा था ज़माना
तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते!
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।