ग़ज़ल /अश्विनी जेतली
दिल से हर पल ही तेरी बात हुआ करती है
अश्कों की इसीलिये तो बरसात हुआ करती हैदिन तो गुज़र जाता है ज़माने की फिक्र में, पर
खुद की फिक्र होती है जब रात हुआ करती हैपतझड़ में खिलें फूल और आंधी में जले दीपक
रहमत हो जो उसकी, तो करामात हुआ करती हैरात ग़म का अगर लेकर सैलाब आई, तो क्या
छटतें हैं अंधेरे भी, जब प्रभात हुआ करती हैढूँढ़ता है अक्सर खुद को ही खुद में 'जेतली'
गुमशुदा से अब कहाँ मुलाकात हुआ करती है