आंदोलन और राजनीति का संबंध
-*कमलेश भारतीय
आंदोलन व राजनीति का बहुत मधुर संबंध है । स्वतंत्रता पूर्व कांग्रेस ने लगातार आंदोलन चलाये महात्मा गांधी , जवाहर लाल नेहरु और अन्य नेताओं के नेतृत्व में और आखिर स्वतंत्रता मिली तो कांग्रेस में सरकार बनाने की बात उठी । हालांकि महात्मा गांधी का यह कहना था कि हमारा यानी कांग्रेस का उद्देश्य पूरा हुआ और अब इसे भंग कर दो लेकिन यह बात स्वीकार न की गयी और महात्मा गांधी सरकार से दूर रहे । कांग्रेस को कम से कम पचास वर्ष मिले एकछत्र सरकार बनाने व चलाने के । आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह लक्ष्य लेकर चल रहे हैं कि कांग्रेस मुक्त भारत बनायेंगे और उसके लिए क्या क्या नहीं करते ? संविधान से खिलवाड़ कर राज्य सरकारें पलटने का खेल बढ़ता और लोकप्रिय होता जा रहा है । राजनीतिक दलबदल को प्रोत्साहन मिला है । खैर ।
फिर आये जयप्रकाश नारायण संपूर्ण क्रांति का नारा लेकर और खूब आंदोलन चला । लोह महिला व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी इसका सामना न कर पाईं । आखिर चुनाव हारने के बावजूद इमर्जेंसी लगा कर नेताओं को जेल में ठूंस दिया । बाद में सन् 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ जनता ने ऐसा रौद्र रूप दिखाया कि खुद इंदिरा गांधी हार गयीं और जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन ने यह चमत्कार कर दिखाया जिसे दूसरी आजादी कहा गया । यहां भी जयप्रकाश नारायण को राष्ट्रपति पद देने की पेशकश की गयी लेकिन वे भी महात्मा गांधी की तरह निर्लिप्त रहे और लोकनायक कहलाए । इस तरह उनके आंदोलन से एक नयी जनता सरकार निकली ।
फिर आया अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन जो देखते देखते जंतर मंतर व रामलीला मैदान से ऐसा जंतर मार गया और ऐसी लीला कर गया कि कांग्रेस सरकार फिर हिल गयी जैसे कोई भूकंप आ गया हो । इस आंदोलन से उपजी आम आदमी पार्टी । हालांकि अन्ना हजारे इस तरह के राजनीतिक संगठन के खिलाफ थे लेकिन अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई जबकि अन्ना ने तो पोस्टर में भी अपना चेहरा न दिखाने की हिदायत दी । इसके बावजूद दिल्ली में आप ही आप हो गयी लगातार तीन चुनाव जीत कर सरकार बनाई । हालांकि अन्य सहयोगियों से अनबन होती रही जैसे योगेंद्र यादव , आशुतोष व किरण बेदी दूर होते चले गये । पर अरविंद केजरीवाल को पंजाब में भी आंशिक सफलता मिली और इस बार तो पंजाब के साथ उत्तराखंड व उत्तरप्रदेश के लोगों को भी नये सपने दिखा रहे हैं मफलरमैन ।
अब आइए किसान आंदोलन पर । यह आंदोलन सबसे लम्बा चला और आज इस आंदोलन को एक वर्ष हो गया । इस आंदोलन को सफलता मिली जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर दी । इस आंदोलन में 683 लोगों की जानें गयीं और इसके चलते पश्चिमी बंगाल , हिमाचल व राजस्थान में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा । अब भाजपा उत्तर प्रदेश को खोना नहीं चाहती इसलिए न चाहते भी राजहठ छोड़ कर कानून वापस लेने की घोषणा कर दी । उधर संयुक्त किसान मोर्चे के नेताओं में चुनाव लड़ने पर मंथन होने लगा है । जहां दर्शन पाल कह रहे हैं कि यदि मोर्चा न होता तो सभी राजनीतिक दल कितना भी ज़ोर लगा लेते , कानून रद्द न करा पाते । दूसरी ओर चढूनी का कहना है कि यदि मजदूरों , किसानों की सरकार होती तो आंदोलन करने की नौबत ही न आती । एक तरफ राकेश टिकैत कह।रहे हैं कि मोर्चा राजनीति के लिए नहीं बना तो दूसरी ओर योगेंद्र यादव कहते हैं कि राजनीति करना जरूरी होता है । इस तरह संयुक्त किसान मोर्चा राजनीति में आने या न आने पर बंटा हुआ है पर कोई कोई अरविंद केजरीवाल की तरह राजनीति में आयेगा जरूर । योगेंद्र यादव तो पहले से भी स्वराज इंडिया चला रहे हैं और चढूनी को पंजाब मे चुनाव लड़ने का बड़ा जोश है । अब देखते हैं किसान आंदोलन का राजनीति पर कितनी छाप छोड़ पाता है ,,,,;
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।