दम तोड़ गए रिश्ते घर की दहलीज़ पर
मनोज धीमान द्वारा लिखित शायरी
ख़ामोशी में दब गए हैं अलफ़ाज़
सन्नाटे में कोई आवाज़ तो दे
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मंज़िलें बदल सी गयीं
कारवाँ रवाना होते-होते
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ख़ुशी की तलाश में थे
ग़म भी नसीब में ना आये
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रात भर भँवरे जलते रहे
अंधेरों में ख़ुशी तलाश करते-करते
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बो दिए दुश्मनी के बीज रिश्तों की दहलीज़ पर
दम तोड़ गए रिश्ते घर की दहलीज़ पर
-मनोज धीमान