समाचार विश्लेषण/रिश्ते हो रहे टुकड़े टुकड़े 

जिन रिश्तों की दुहाई दी जाती है और रिश्तों के लिए मरने मिटने की सौगंध खाई जाती है , बहुत दुख की बात है कि वही रिश्ते अब टुकड़े टुकड़े होते जा रहे हैं । बिजली की आरी से काटे जा रहे हैं ।

समाचार विश्लेषण/रिश्ते हो रहे टुकड़े टुकड़े 
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय
जिन रिश्तों की दुहाई दी जाती है और रिश्तों के लिए मरने मिटने की सौगंध खाई जाती है , बहुत दुख की बात है कि वही रिश्ते अब टुकड़े टुकड़े होते जा रहे हैं । बिजली की आरी से काटे जा रहे हैं । पहले मुम्बई की श्रद्धा की हृदय विदारक खबर आई कि कैसे लिव इन में दिल्ली के निकट रह रही इस युवती को इसके ब्बाॅय फ्रेड आफताब ने छत्तीस टुकड़ों में काट कर फ्रिज में छिपा दिया और इन टुकड़ों को कैसे महरौली के निकट एक एक कर फेंकने जाता था ! छह माह तक किसी को कानों कान खबर भी न हुई । यहां तक कि नयी गर्ल फ्रेंड भी बना ली । इतनी निर्ममता से कोई किसी को कैसे मार सकता है ? पर सच सामने आया तो दिल दहल गया । अभी कोई पछतावा भी नहीं आफताब को ! वो जिसके प्यार में पागल था , उसी को मार कर कितना बेफिक्र है ! रिश्ता टुकड़े टुकड़े करते जरा भी मलाल नहीं , कोई अफसोस नहीं और वो श्रद्धा पगली उसके लिए अपने मां बाप को छोड़कर आ गयी ! 
अभी पश्चिमी बंगाल के बरुईपुर से भी समाचार आया है कि एक बेटे ने अपने पिता के छह टुकड़े कर दिये ! जिस औलाद के लिए पिता ने न जाने कितनी मन्नतें मांगी होगीं , उसी औलाद ने कैसे टुकड़े टुकड़े करने में देर नहीं लगाई । जानकारी के अनुसार बेटे ने बढ़ईगिरी की क्लास  किट से आरी निकाल कर अपने पिता के छह टुकड़े कर दिये और फिर इन टुकड़ों को खास मलिक और देहिमेदान इलाकों में फेंक दिया । यहां यह भी हैरानी वाली बात रही कि बेटे के साथ मां ने भी पूरा पूरा साथ दिया यानी रिश्ता यहां भी आरी से कटा और पत्नी भी इसमें शामिल रही । मजेदार बात कि मां बेटे ने गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा कर बचना चाहा ! लेकिन मां बेटे के बयानों से पुलिस को शक हो गया और पूछताछ में मां बेटे ने जुर्म कबूल कर लिया ! झगड़े की वजह मात्र तीन हजार रुपये की मांग रही । पिता ने दिये नहीं बल्कि थप्पड़ मार दिया । बेटे ने बदले में धक्का दिया और वे कुर्सी से टकराये और बेहोश हो गये । फिर बेटे ने गला घोंट कर हत्या करने के बाद आरी से टुकड़े टुकड़े कर दिये ! संबंध खत्म । रिश्ता खत्म ! 
 हम और हमारा समाज कहां जा रहे हैं ? क्या हम वापिस जंगलों की ओर जा रहे हैं ? हमारी सभ्यता जंगलों से ही शुरू हुई थी और हमने धीरे धीरे सभ्य होते होते महानगर बना लिये लेकिन हमारे अंदर का वह जंगली और बहशी आदमी आज भी हमारे अंदर है और वह जब तब बाहर निकल आता है । कभी आफताब जैसे प्रेमी के रूप में तो कभी उज्ज्वल चक्रवर्ती के बेटे के रूप में । कभी मुखर्जी जैसी मां के रूप में ! इससे पहले देहरादून में सूटकेस में बंद कर दी थी अपनी प्रेमिका की लाश ! ये कहां आ पहुंचे हैं हम ? कहां तक जायेगे अभी ? कितने पशुवत व्यवहार करेंगे ? 
याद है हिसार के एक पुलिस स्टेशन में बंद एक ऐसे व्यक्ति को देखने जाना जिसने प्रेमिका के चक्कर में अपने ही परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी थी । तब वहां मौजूद एक सिपाही ने जो कहा वह कभी भूल नहीं पाया । उसने कहा था कि देखिए । आपने कहानियों में सुने होंगे नरपिशाच ! ये लगाव देख लीजिए ! ओह ! ये नरपिशाच से कम हैं भी नहीं ! 
सभ्यता के लिए शर्म करो , इंसानियत के लिए शर्म करो । मानवता के लिए शर्म करो । कुछ तो ऊपर वाले का खौफ मानो , जिसने इंसान के रूप में जन्म दिया और तुम नरपिशाच ही बन गये । शर्मनाक !!
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।