डा अजय शर्मा का 12वां उपन्यास "उधडऩ" का लोकार्पण

पंजाब के समकालीन हिन्दी लेखन में डा. अजय शर्मा का स्थान बहुत महत्तपूर्ण है 

डा अजय शर्मा का 12वां उपन्यास

जालन्धर:  दोआबा कॉलेज के हिन्दी विभाग एवं हिन्दी साहित्य सभा द्वारा उत्तर भारत के प्रसिद्ध  उपन्यासकार डॉ. अजय शर्मा के 12वें उपन्यास उधडऩ के लोकार्पण समागम आयोजित किया गया जिसमें डा. सिमर सदोश- प्रसिद्ध चिंन्तक, कहानीकार, आलोचक व कवि, प्रो. सोमनाथ शर्मा-हिन्दी विभागध्यक्ष, डा. ओमिंदर जोहल-पंजाबी विभागध्यक्ष, प्रो. संदीप चाहल- स्टाफ सैक्रेटरी, प्राध्यापक व विद्यार्थी सम्मलित हुए जिनका हार्दिक अभिनंदन प्रिं. डा. नरेश कुमार धीमान ने किया। प्रिं. डा. नरेश कुमार धीमान ने कहा कि पंजाब के समकालीन हिन्दी लेखन में डा. अजय शर्मा का स्थान बहुत महत्तपूर्ण है क्योंकि उनके लेखन में मनोविज्ञानिक पहलू उनके द्वारा रचित व घडि़त पात्रों द्वारा बखूबी उजागर होता है तथा उधडऩ उपन्यास इसी बात का एक सशक्त प्रमाण है।
 
डा. सिमर सदोश ने कहा कि  यह उपन्यास एक नई कथाभूमि को स्पर्श करते हुए विमर्श की नयी जमीन तैयार करता है तथा लेखक  अजय शर्मा ने उपन्यास में तार्किक ढंग से अपनी बात कही है व मनोवैज्ञानिक भावऊभूमि पर पात्रों की सक्रियता बनाकर इन्हें उकेरा है। प्रो. सोमनाथ शर्मा ने कहा कि उपन्यास में  रिश्तों के उधेड़बुन में फंसा व्यक्ति सामाजिक विस्तार की भावना से आगे बढ़ता है तथा अस्मितावादी समय में अपने होने के साथ-साथ दूसरे के बने रहने का भाव इस उपन्यास के केन्द्रीय भाव है। डा. ओमिंदर जोहल ने कहा प्रवाहपूर्ण भाषा में कहन की ताजगी आपको इस उपन्यास को पढऩे के लिए विवश करती है तथा वातावरण-सृजन से लेकर सम्वाद की नवीनता और प्रवाहपूर्ण घटनाओं की अन्वित अलग तरह की विशेषता इस उपन्यास में  है। डा. अजय शर्मा ने कहा कि विवाह उपरांत परिवारिक संबंधों में सांस्कृतिक मूल्यों की समस्याओं को मनोवैज्ञानिक ढंग से उजागर करता है यह उपन्यास अंतर्जातीय विवाह संबंधों में सास्कृतिक मूल्यों के ह्रास का ज्वलंत दस्तावेज है उपन्यास विवाह उपरांत जब हम किसी के भावनात्म संबंधों को उपेक्षित करते हैं तो व्यक्ति हीन भावना का शिकार हो जाता है जिससे परिवारिक संबंधों मेें दरार का पैदा होना अवश्यंभावी बन जाता है। उन्होंने कहा कि जब इंसान परिवार में घुटन महसूस करता है और इसकी इच्छाओं का दमन होता है तब वही दमन इच्छाएं उसके व्यक्तित्व में भी बिखराव ले आती है व्यक्ति अवसाद और एकाकीपन का शिकार हो जाता है ऐसे में इस तरह के रिश्ते अक्सर पनप जाते हैं।

प्रो. संदीप चाहल ने कहा कि कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो किसी नाम के मोहताज नहीं होते समाज उन्हें स्वीकार करें या ना करें लेकिन वे रिश्ते अपनी जगह समाज में बनाकर रखते हैं भले ही उन्हें कोई नाम मिले या ना मिले ऐसे ही रिश्तों के ताने बाने को इस उपन्यास में मनोवैज्ञानिक ढंग से बुनने की कोशिश की गई है। इसके उपरान्त प्रिं. डा. नरेश कुमार धीमान, डा. सिमर सदोश, प्रो. सोमनाथ शर्मा, डा. ओमिंदर जोहल व प्रो. संदीप चाहल व डा. अजय शर्मा ने उपन्यास उधडऩ का लोकर्पण किया। 

दोआबा कॉलेज में उपन्यास उधडऩ का लोकार्पण करते हुए प्रिं. डा. नरेश कुमार धीमान, डा. सिमर सदोश, प्रो. सोमनाथ शर्मा, डा. ओमिंदर जोहल, प्रो. संदीप चाहल व डा. अजय शर्मा।