फेसबुक से किसी मित्र ने शेयर की तो याद आई
बेटी जब छोटी थी तब उसकी एक किताब में कहानी थी । राजा भेष बदल कर घूम रहा था । दोपहर का समय हुआ । भूख लग आई । खेत के किनारे पेड के नीचे पसीना पसीना हुआ किसान रोटी की पोटली खोल कर बैठा ही था ।
-एक राहगीर हूं । भूख लगी है । कुछ खाने को मिलेगा ?
राजा ने किसान के पास बैठ कर कहा । किसान ने अपने हिस्से में से रोटी दे दी ।
राजा ने यों ही पूछा -इतनी मेहनत से जो रुपया कमाते हो , उसका क्या करते हो ?
किसान ने जवाब में कहा - एक रुपये में से चार आने कर्ज उतारता हूं , चार आने कर्ज दे देता हूं । चार आने किसानी पर खर्च करता हूं और चार आने फेंक देता हूं ।
-यह तो पहेली हो गयी । बताओ तो ?
राजा ने पूछा । किसान ने जवाब दिया कि राजा पूछे तो बताऊंगा । राहगीर राजा चला गया । दूसरे दिन दरबार में किसान को बुला लिया और कहा कि अब बताओ । अब तो राजा ही पूछ रहा है ।
किसान ने जवाब दिया - चार आने कर्ज उतारने का मतलब यह कि अपने माता पिता का पालन पोषण । चार आने उधार का अर्थ -अपने बच्चों पर खर्च और चार आने किसानी के काम में खर्च होते हैं ।
-बाकी चार आने क्यों फेंक देते हो ?
- राजन् , समाज के काम के लिए चार आने दान देता हूं , जिनके लौटने की कोई उम्मीद नहीं करता । यह फेंकने के समान हैं । इन्हीं चार आनों से प्याऊ लगते हैं । धर्मशालाएं और स्कूल चलते हैं । बस । बताइए ये पैसे न फेंके तो सामाजिक काम कैसे चलेंगे ?
निश्चय ही राजा प्रसन्न हुआ और काफी उपहार देकर किसान को विदा किया ।
आज समाजसेवा के लिए कोई कुछ नहीं फेंकता
-प्रस्तुति : कमलेश भारतीय