समाचार विश्लेषण/रिमोट कंट्रोल और सरकारें
-*कमलेश भारतीय
थोड़ा बहुत शक था पर अब न रहा कि सरकारें कैसे चलती हैं ? सरकारें रिमोट कंट्रोल से चलती हैं । किसके रिमोट कंट्रोल से ? पार्टी हाईकमान के हाथों में होता है यह रिमोट । अरे । जनता नासमझ नहीं रही । ये जो पब्लिक है ,सब जानती है । फिर भी एक तरफ हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरी तरफ युवा प्रियंका गांधी बाड्रा यही आरोप एक दूसरे पर लगा रहे हैं कि राज्य सरकारें रिमोट कंट्रोल से चलाई जा रही हैं । क्या यह सच है या राजनीति का यही सच है ?
चाहे कांग्रेस हो या भाजपा यही सच है । यदि यह सच न होता तो पिछले वर्ष उत्तराखंड में भाजपा ने आने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए तीन तीन मुख्यमंत्री कैसे बदल दिये थे और पंजाब में कैप्टन अमरेंद्र सिंह की सरकार को क्यों पलट दिया गया था ? कैप्टन ने तो इस्तीफे की पेशकश भी दे दी थी लेकिन फिर भी पूरी तरह अपमानित कर हटाये गये । क्या यह एक वयोवृद्ध नेता का सम्मान था ? रिमोट पर हाथ नवजोत सिद्धू का आ गया था । पंजाब की जनता क्या सोचती है , इससे कोई लेना देना नहीं था । अब प्रियंका कह रही हैं कि कैप्टन का कंट्रोल भाजपा के हाथ में था । फिर चन्नी का कंट्रोल किसके हाथ में है ? एक बिल्कुल अज्ञात विधायक को अचानक मुख्यमंत्री कैसे बना दिया गया ? हरियाणा में कंट्रोल किसके साथ में रहता है ? कितनी बार ऐसी नौबत आई कि मीडिया में यह बात उछलती रही कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा रोहतक में रैली कर कांग्रेस छोड़कर या तो नयी पार्टी बना सकते हैं या फिर किसी दल में शामिल हो सकते हैं लेकिन वे परिपक्व नेता हैं , उनका पूरा परिवार कांग्रेस से जुड़ा है और वे समर्पित कार्यकर्त्ता हैं लेकिन अनेक बार ऐसे फैसले हुए कि लगा कंट्रोल कहीं और है । ऐसा क्यों ? जमीन से जुड़े और लोगों के बीच रहने वाले नेता की उपेक्षा क्यों और कब तक ?
दिल्ली में कांग्रेस पिछले तीन चुनावों से वापसी नहीं कर पा रही । शून्य से आगे बढ़ना मुश्किल क्यों हो गया ? इसी रिमोट कंट्रोल की वजह से । राजस्थान में भी हो जाता लेकिन अशोक गहलोत मजबूत निकले और बचते आ रहे हैं । मध्य प्रदेश में भी रिमोट से चलाई सरकार पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने रिमोट से नियंत्रित होने से मना कर दिया ।
ये रिमोट कंट्रोल की सरकारें और राजनीति बहुत शुरू से चलती आ रही है जब कांग्रेस उत्तर प्रदेश में ऐसे ही मनमाने नेता थोपती रही और अब उत्तर प्रदेश में जमीन खिसक चुकी है । यह बात भाजपा को समझनी होगी कि जनता की आकांक्षाओं पर जो नेता खरा उतरना हो उसे ही नेता बनाया जाना चाहिए न कि विधायक दल की बैठक का ढोंग करना चाहिए । परिवार वाद को रोने से कुछ नहीं होगा ,यह नयी तरह का परिवारवाद है ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।