डॉ अजय शर्मा द्वारा मनोज धीमान के लघु-कथा संग्रह की समीक्षा

डॉ अजय शर्मा द्वारा मनोज धीमान के लघु-कथा संग्रह की समीक्षा
मनोज धीमान (Manoj Dhiman) की पुस्तक

लघु-कथा संग्रह "खोल कर देखो"

मनोज धीमान हिंदी के सशक्त लेखक हैं। वह उपन्यास कहानी और कविता पर अपनी कलम चला चुके हैं। हाल ही में उनका लघु-कथा संग्रह "खोल कर देखो" डायमंड प्रकाशन से छप कर आया है। मैं अपने बारे में बता दूं, मुझे लघु-कथा पढ़ना मुश्किल लगता है, क्योंकि लघु-कथा ज्यादातर चुटकुलों से लबरेज होती हैं। लेकिन इस मुश्किल काम ने मनोज धीमान की लघु कथाओं ने आसान कर दिया। कहानियों में समाज और प्रकृति दोनों शामिल हैं। जिन कहानियों में सामाजिक समस्याएं हों और वह भी पात्रों के माध्यम से, वह कहानियां सोने पर सुहागा जैसी होती हैं। हर कहानी का अंत खुला है, कोई भी पात्र नारा नहीं लगाता,  हम समाज सुधारक हैं। आकार में छोटो होती हुई भी, बड़ा मैसेज समाज को देती हैं, मनोज धीमान की कहानियां। संग्रह की पहली कहानी "असली रावण कौन" से शुरू होकर आखिरी कहानी "पुस्तक की कीमत" तक य़ात्रा तय करती है तो पता चलता है कि मनोज धीमान के अंदर पत्रकार के साथ अवचेतन मन जो साहित्यकार बैठा है, वह कहीं न कहीं समाज में हो रही कुरीतियों से परेशान है। मुझे लगता है उसी कुरीतियों से उपजी हैं सारी की सारी कहानियां। "असली रावण कौन" में राजनीति पर प्रहार करते हुए व्यंग्यात्मक ढंग से बताने की कोशिश की हैं कि रावण भले ही हर साल जलता है, लेकिन खेल अब भी वही है, जिसमें कोई बदलाव नहीं है। बेटा लघुकथा में एक बेटा अपनी मां को वृद्धाश्रम में छोड़ आता है। मां उम्मीद लगाकर बैठी है कि बेटा उसे जरूर वापस ले जाएगा। लेकिन अंत आते-आते परिस्थितियां बद से बद्तर हो जाती हैं। उस चोट से पाठक एक बार सोचने पर मजबूर हो जाता है। अगर "कद" कहानी की बात करूं तो उसमें बच्चों से गायब होते हुए संस्कारों की बात की है। संस्कार ही हमारे समाज में उत्थान का कारण बनते हैं। प्रकृति कहानी की बात करूं तो इस कहानी में प्रकृति का सुंदर वर्णन मिलता है। प्रकृति कीट पतंगा हो या मनुष्य सबका पालन करती है। वह सभी को ता-उम्र देती है। हम ही हैं कि हमारी भूख खत्म ही नहीं होती। इसमें "भंवरे और फूल" का इस्तेमाल एक बिंब उभारने के लिए किया गया है। और चुभन कहानी पढ़ते हुए संस्कारों की यात्रा आगे बढ़ती है और हमें एक संदेश के साथ सोचने पर मजबूर करती है। सुहागरात लघुकथा में जो लोग पंजाब की जड़ों से टूटकर विदेशी धरती पर जा बसे हैं उनके दर्द को बयान करती हैं। कोरोना काल का जिक्र करते हुए मनोज ने दो सभ्यताओं के बीच अच्छा प्रहार किया है। "दो फूल एक कहानी" में बताने की कोशिश की है कि जब आदमी अर्श से फर्श पर आता है तो उस समय वह दूसरों का नहीं खुद का आत्मविवेचन करता है और उसके सोचने का नजरिया बदल जाता है। प्रेम प्रस्ताव कहानी में कैसे लालच में प्रेम किया जाता है उस पर गहरी चोट करती है। लघुकथा "तलाक" में शादी कई बार सिरदर्द बन जाती है। ऐसे में जब तलाक पर नौबत आती है तो तलाक के बाद ऐसा महसूस होता है जैसे अभी-अभी कोई मरीज आईसीयू से बाहर निकला हो। संग्रह की आखिरी लघु-कथा पुस्तक की कीमत पढ़कर नजरें गहरे ठिठक जाती हैं क्योंकि मनोज ने इस कहानी के माध्यम से हमारे समाज में पुस्तक संस्कृति को लेकर जो बातें समाज में फैल रही हैं, उस पर प्रहार किया है। हर कोई कहता है कि पुस्तक बहुत महंगी है। लेकिन पुस्तक कैसे सस्ती है यह सब इन कहानियों से गुजरने के बाद ही पता चलेगा। फिलहाल इतना ही। इतना सुंदर लघुकथा संग्रह देने के लिए मनोज धीमान को दिल से बधाई और शुभकामनाएं।
डॉ. अजय शर्मा, जालंधर
(प्रसिद्ध उपन्यासकार डॉ. अजय शर्मा की फेसबुक वाल से, आभार सहित। )
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