समाचार विश्लेषण/ राइट टू रिकाॅल: बहुत आता है याद 

समाचार विश्लेषण/ राइट टू रिकाॅल: बहुत आता है याद 
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
याद कीजिए आपातकाल और एक वृद्ध व अस्वस्थ सेनानी जयप्रकाश यानी जेपी को । इन्होंने लौह महिला कही जाने वाली इंदिरा गांधी के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था जो राइट टू रिकाॅल के साथ शुरू हुआ था । यानी जिन विधायकों या जनप्रतिनिधियों को जनता चुनती है उनको दलबदल से रोकने के लिए राइट टू रिकाॅल होना चाहिए जनता के पास । जो जनप्रतिनिधि उसके विश्वास को तोड़कर दल बदल ले , उसे वापिस बुलाने का अधिकार उसी जनता के पास होना चाहिए जिस जनता ने उसे चुन कर भेजा था । इस आधार पर शुरू हुआ आंदोलन इतना तेज हुआ कि देखते देखते देश भर में फैल गया था और इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाकर बड़े बड़े नेताओं और पत्रकारों को भी जेल में डालने पर विवश होना पड़ा था ।
अब सबसे ताजा और बड़ा दलबदल महाराष्ट्र में शिवसेना में हुआ है । एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के ही विधायक तोड़कर सरकार बना ली और अब खूद को ही असली शिवसेना कह रहे हैं । मामला कोर्ट में है । 
इस पर कोर्ट का बहुत सही कहना है कि यदि विधायक पार्टी की अनदेखी करें तो यह लोकतंत्र के लिए बहुत घातक है । क्या चुने जाने के बाद विधायक पर उसकी पार्टी का कोई नियंत्रण नहीं होता ? यह चीफ जस्टिस का सवाल बहुत वाजिव है । वैसे अब यही हो रहा है । फिर चाहे मध्य प्रदेश की बात हो , गोवा , मणिपुर या इससे पहले उत्तराखंड की बात हो विधायक इस तरह पार्टी बदलते हैं जैसे कहा जाता है :
तुम बदल न जाना 
मौसम की तरह ...

कपड़ों की तरह फैशन के अनुसार पार्टी बदल लेते हैं विधायक । जैसा और जिसका मौसम आया , उसी पार्टी के हो लेते हैं । उसी के रंग मे रंग जाते हैं । अभी हरियाणा के नेता  कुलदीप बिश्नोई के पुराने वीडियो वायरल हो रहे हैं , जिनमें वे जी भरकर मोदी और भाजपा को कोस रहे हैं । और नये वीडियोज में उन्हीं मोदी जी को देश का श्रेष्ठ प्रधानमंत्री बता रहे हैं । यह सब करने से पहले ही इस्तीफा देना था लेकिन बड़ी बहादुरी से क्राॅस वोटिंग कर पार्टी प्रत्याशी को हरा कर बदल लेने के बाद पार्टी को अलविदा कहा । तब राइट टू रिकाॅल खूब याद आता रहा । पार्टी हाईकमान बेबसी से क्राॅस वोटिंग देखती रह गयी । पार्टी हाईकमान का कोई बस न चला । 
यह दलबदल इतनी तेजी से बढ़ा है कि जैसे आसमान छू लिया हो । किसी तरह को कोई सामाजिक शर्म नहीं । कोई मर्यादा नहीं । कोई विचारधारा नहीं । बस । वैसे कोई शर्त भी नहीं । यदि कोई शर्त नहीं थी और सब बिना शर्त हो रहा था तो फिर इतनी देर किस बात में लगी ? यह भी एक यक्ष प्रश्न है । फिर क्या विचार हो रहा था ? क्या फायदा नुकसान सोचा /देखा जा रहा था ? अब बिन फेरे हम तेरे , बिना शर्त हम तेरे से तू भी राजी , मैं भी राजी । 
देखिए मुसाफिर ने वया कदम , पुरानी राह पर रख दिया है , अंजाम क्या होगा ? अभी तो उपचुनाव की वैतरणी भी पार करनी है । प्रो सम्पत सिह इंतजार में बैठे थे कि कुलदीप जाये , तो मैं भी कांग्रेस में चल दूं । उनका नलवा से टिकट रणधीर पनिहार के के कारण कटवा दिया था । प्रो सम्पत सिंह ने नाराजगी में कांग्रेस छोड़कर भाजपा का कमल थाम लिया था लेकिन भाजपा ने उचित सम्मान ही नहीं दिया । अब और भी दलबदल होने हैं , जैसे कुलदीप दावा कर रहे हैं कि अभी सात विधायक लाऊंगा । देखिए दलबदल का खेल ...देखते रहिए ...
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।