महंगाई और नशे की लत दोनों बढ़ा दिये कोविड ने
कोविड महामारी ने दुनिया भर के लोगों का सुख चैन, सेहत और रोजगार ही नहीं छीने, इसके दुष्प्रभाव और भी कई रूपों में सामने आ रहे हैं।
कोविड महामारी ने दुनिया भर के लोगों का सुख चैन, सेहत और रोजगार ही नहीं छीने, इसके दुष्प्रभाव और भी कई रूपों में सामने आ रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान लोगों में अल्कोहल व तम्बाकू उत्पादों का सेवन करने की लत बेतहाशा बढ़ गयी। कोरोना की वजह से पूरी दुनिया में हर मोर्चे पर व्यवस्था भंग हुई और महंगाई में बेतहाशा वृद्दि हुई। भारत की अर्थव्यवस्था भले ही पटरी पर लौटने लगी है, परंतु अभी कई महीने लग जायेंगे सब कुछ लाइन पर आने में। महामारी की वजह से सभी मुल्कों में महंगाई बढ़ी है। लॉकडाउन के समय अनेक चीजों का उत्पादन घट गया, लेकिन लॉकडाउन हटने के बाद बाजार में अचानक से तमाम चीजों की मांग बढ़ती गयी। यही वजह है कि महंगाई यकायक बढ़ गयी। उदाहरण के लिए, कई देशों में अभी भी कर्मचारियों की किल्लत बनी हुई है। मलेशिया में इसी कारण से पॉम ऑयल का पर्याप्त उत्पादन नहीं हो पा रहा है। पॉम ऑयल की कीमतें बढ़ने से साबुन, तेल, शैम्पू, बिस्कुट, कॉस्मेटिक्स, नमकीन आदि के दामों में बढ़ोतरी हुई है।
कच्चे तेल का दाम बढ़ने से मालवाहन और सामान की डिलीवरी के दाम बढ़े हैं। इसी वजह से रासायनिक खाद, पेंट, रबड़ और सिंथेटिक धागे आदि की कीमतों में वृद्धि हुई है। समुद्री मार्ग से माल की ढुलाई महंगी हो गयी है। चीन में कामगारों की कमी की वजह से पीतल, तांबा, इस्पात, निकल व कोबाल्ट आदि औद्योगिक धातुएं महंगी हुई हैं। इसका असर टेलीविजन सेट, फ्रिज, एसी, वॉशिंग मशीन आदि प्रोडक्ट्स की कीमतों पर पड़ा है। जलवायु परिवर्तन से कई देशों में कृषि उत्पादों की आपूर्ति प्रभावित हुई है, जैसे कि ब्राजील में इसी कारण से गन्ने की फसल प्रभावित हुई। फलस्वरूप चीनी की कीमत बढ़ गयी। कोरोना के कारण लॉकडाउन लगने से सेमीकंडक्टर या चिप का उत्पादन घट गया, जिसकी कमी की वजह से कार, फ्रिज, टीवी, वाशिंग मशीन आदि इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का उत्पादन प्रभावित हुआ है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया में प्रति वर्ष अल्कोहल के अधिक सेवन से 30 लाख लोगों की जान जाती है। विश्व में बीमारियों के इलाज पर होने वाले खर्च में पांच प्रतिशत भाग अल्कोहल जनित रोगों पर होता है। इसी तरह, तम्बाकू की वजह से हर साल 80 लाख लोगों की मौत होती है। इनमें 12 लाख ऐसे लोग भी शामिल हैं, जो खुद तम्बाकू का सेवन नहीं करते, न ही सिगरेट पीते हैं, लेकिन जो ऐसा करने वालों के साथ रहते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, विश्व में 1.3 अरब लोग धूम्रपान अथवा तम्बाकू वाले अन्य उत्पादों का प्रयोग करते हैं। ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि पहले लॉकडाउन में ही 40 प्रतिशत से अधिक, करीब 45 लाख लोगों ने अल्कोहल का सेवन शुरू कर दिया। देश भर में सार्वजनिक स्थानों पर थूकने पर रोक लागू है। इसक बावजूद लोग हैं कि मानते नहीं। इधर-उधर थूकते रहते हैं। इससे सरकारी भवन ही नहीं, रेलवे भी परेशान है। थूक के दाग मिटाने के लिए रेलवे को हर साल 1200 करोड़ रुपये धनराशि खर्च करनी पड़ती है। पानी की बर्बादी होती है सो अलग। गुटखा चबाकर थूकने वालों की सहूलियत के लिए देश के 42 स्टेशनों पर स्पिटर कियोस्क लगाये जा रहे हैं, जहां स्पिटून पाउच मिलेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं)