सहानुभूति
वे विकलांगों की सेवा में जुटे हुए थे । इस कारण नगर में उनका नाम था । मुझे उन्होंने आमंत्रण दिया कि आकर उनका काम व सेवा संस्थान देखूं । फिर अखबार में कुछ शब्द चित्र खीच सकूं ।
वे मुझे अपनी चमचमाती गाड़ी में ले जा रहे थे । उस दिन विकलांगों के लिए कोई समारोह था संस्था की ओर से ।
राह में बैसाखियों के सहारे धीमे-धीमे चल रहा था एक वृद्ध ।
उनकी आंखों में चमक आई । मेरी आंखों में भी ।
उन्होंने कहा कि यह वृद्ध हमारे समारोह में ही आ रहा है ।
मैंने सोचा कि वे गाड़ी रोकेंगे और वृदध विकलांग को बिठा लेंगे पर वे गाड़ी भगा ले गये ताकि मुखयातिथि का स्वागत् कर सकें ।
मेरी आंखों में उदासी तैर आई उनकी सहानुभूति देखकर ।
-कमलेश भारतीय