साहित्यिक हास्य : परसाई का स्नेह चार्ज
हरिशंकर परसाई ने अपनी पहली पुस्तक - हंसते हैं, रोते हैंं, न केवल स्वयं प्रकाशित की बल्कि बेची भी । उनका समर्पण भी उतना ही दिलचस्प था - ऐसे आदमी को जिसे किताब खरीदने की आदत हो और जिसकी जेब में डेढ़ रुपया हो ।
एक मित्र ने कहा - यह क्या सूखी किताब दे रहे हो ? अरे, कुछ सस्नेह, सप्रेम लिखकर तो दो ।
परसाईं ने किताब ली और लिखा - भाई मायाराम सुरजन को सस्नेह दो रुपये में ।
मित्र ने कहा - किताब तो डेढ़ रुपये की है । दो रुपये क्यों ?
परसाई का जवाब - आधा रुपया स्नेह चार्ज ।
यादों की धरोहर : पुस्तक में से
-चयन: कमलेश भारतीय