पुरानी पिच पर, वही इल्जाम...
-*कमलेश भारतीय
बेशक यह नया लोकसभा चुनाव है लेकिन अगर क्रिकेट की भाषा में कहें तो पिच भी पुरानी है और एक दूसरे पर लगाये जाने इल्जाम भी पुराने हैं । पिछले लोकसभा चुनावों में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष के नेता राहुल गांधी को 'शहजादा' ही कह कर अपने तंज कसते थे और तीसरे लोकसभा चुनाव तक यही शहजादा कह कर तंज कसना जारी है। कोई बदलाव नहीं आया या नयापन नहीं। जब वायनाड से सांसदी खत्म की थी कोर्ट ने तब तो भाजपा नेताओं का कहना था कि गांधी परिवार भी आम परिवार है और इस परिवार से भी कानून वैसा ही सलूक कर रहा है तो इसमें गलत क्या? जब गांधी परिवार की विशेष सुरक्षा खत्म की गयी तब भी यही दुहाई दी गयी कि यह गांधी परिवार कोई विशेष परिवार नहीं, आम भारतीय परिवार है लेकिन चुनाव में इसी आम से परिवार को ही आलोचना में क्यों रखते हैं या निशाने पर यही गांधी परिवार क्यों और ये शहजादा कैसे ? दूसरा बड़ा इल्जाम कि विरोधी नेता दो दो किलो गालियां देकर इन्हें कोसते हैं, तब इन्हें नींद या चैन पड़ती है। यह एक तरह की सहानुभूति जुटाने का एक बड़ा तरीका है । कितना कारगर रहेगा इस बार?
दूसरी ओर राहुल गांधी भी पुरानी पिच पर वही गेंदबाजी कर रहे हैं। जैसे आरएसएस को लगातार कोसते जाना और इस विचारधारा से मुक्ति दिलाने का वादा करते जाना। इसके साथ इस बार लोकतंत्र बचाने का आह्वान नयी स्पिन गेंदबाजी जोड़ दिया है। ईडी, सीबीआई और निर्वाचन आयोग को सत्ता के लिए उपयोग करने का आरोप भी हर चुनाव में लगाया जा रहा है और ये संस्थायें वैसे ही काम कर रही हैं, इनके कामकाज के तरीके में कोई फर्क नहीं देखा गया । आरक्षण और बेरोजगारी जैसे मुद्दे भी वही पुराने मुद्दे हैं । आरक्षण पर तो खूब चर्चा चलती है लेकिन यह कभी बदलता नहीं।
हरियाणा में आइये तो कभी यहां एसवाईएल बहुत बड़ा मुद्दा रहा और अपनी राजधानी का मुद्दा भी अभी तक चल रहा है। इस बार तो अपनी राजधानी और अपना हाईकोर्ट एक मुहिम ही चला रखी है एम एम चोपड़ा ने। यह कितना असर करेगी चुनाव में, यह कह नहीं सकते।
हिमाचल के मंडी से प्रत्याशी कंगना रानौत स्वतंत्रता के बाद से नया इतिहास लिख रही हैं और कहती हैं कि देश को असली आज़ादी सन् 2014 यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल के बाद मिली और यह भी कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू नहीं बल्कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे । अब इस नये इतिहास पर क्या कहेंगे, यह तो बिल्कुल नयी तरह का बाउंसर है, जो सिर के ऊपर से ही निकल जाता है और यह वाइड गेंद करार दी जायेगी कि नहीं? पंजाब की पिच पर सन् 1980 के बाद से आतंकवाद एक मुद्दा रहता ही है । आतंकवाद से छुटकारा दिलाना भी सबकी जुबान पर रहता है । बाकी कोई दलबदल पर, राजनीतिक विचारधारा पर या देश की समरसता पर कोई बात नहीं करता।
बस, चांद तारे दिखाते रहते हैं और देखते रहिये।
आओ हुजूर आपको सितारों में ले चलू़
दिल झूम जाये, ऐसी बहारों में ले चलूं।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी