'हिन्दी राष्ट्रवाद' के लोकार्पण के मौके पर वरिष्ठ लेखक आलोक राय करेंगे बातचीत

वरिष्ठ लेखक आलोक राय की सद्य प्रकाशित पुस्तक 'हिन्दी राष्ट्रवाद' का  सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवेलपिंग सोसायटीज ( सीएसडीएस)  में 12 जुलाई को शाम 4:30 बजे लोकार्पण  होगा।

'हिन्दी राष्ट्रवाद' के लोकार्पण के मौके पर वरिष्ठ लेखक आलोक राय करेंगे बातचीत

नई दिल्ली।  वरिष्ठ लेखक आलोक राय की सद्य प्रकाशित पुस्तक 'हिन्दी राष्ट्रवाद' का  सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवेलपिंग सोसायटीज ( सीएसडीएस)  में 12 जुलाई को शाम 4:30 बजे लोकार्पण  होगा। इस मौके पर आलोक राय से लेखक डॉ. अतहर फारुकी और लेखक- संपादक गिरिराज किराडू खास बातचीत करेंगे।

यह आयोजन राजकमल प्रकाशन और सीएसडीएस मिलकर कर रहे हैं।  'हिन्दी राष्ट्रवाद' को  राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। गौरतलब है कि 'हिन्दी नेशनलिज्म' नाम से आलोक राय की एक पुस्तक करीब दो दशक पहले प्रकाशित हुई थी जिसकी काफी चर्चा हुई थी। तभी से यह मांग की जा रही थी कि हिन्दी भाषा और समाज से जुड़ी इस किताब का हिन्दी में अनुवाद प्रकाशित होना चाहिए। इसी मांग का परिणाम है 'हिन्दी राष्ट्रवाद'. लेकिन यह 'हिन्दी नेशनलिज्म' का लेखक द्वारा किया गया अनुवाद भर नहीं है बल्कि पुनर्लेखन है।

यह किताब भारत की भाषाई राजनीति की एक चिन्ताकुल और सघन पड़ताल है। इसमें हिन्दी भाषा के मौजूदा स्वरूप तक आने के इतिहास का विश्लेषण भी मौजूद है। लेखक ने जन की भाषा बनने की हिन्दी की तमाम क्षमताओं को स्वीकार करते हुए यह बतलाया है वह हिन्दी जो अपनी अनेक बोलियों और उर्दू के साथ मिलकर इतनी रचनात्मक, सम्प्रेषणीय, गतिशील और जनप्रिय होती थी, कैसे सरकारी ठस्सपन के चलते इतनी औपचारिक और बनावटी हो गई कि तक़रीबन जड़ दिखाई पड़ती है।

इस किताब में इस पर विचार किया गया है कि अपने विशाल समुदाय की सृजनात्मक कल्पनाओं की वाहक बनने के बजाय हिन्दी संकीर्णताओं से क्यों घिर गई।

आज जब राष्ट्रवादी आग्रहों के और भी संकुचित और आक्रामक रूप हमारे सामने हैं, जिनमें भाषा के शुद्धिकरण की माँग भी बीच-बीच में सुनाई पड़ती है, इस विमर्श को पढ़ना, और हिन्दी के इतिहास की इस व्याख्या से गुज़रना ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है।

लोकार्पण के मौके पर अपनी बातचीत में आलोक राय इन तमाम मुद्दों पर अपने विचार रखेंगे और समकालीन परिप्रेक्ष्य में भारत की भाषाई राजनीति और संभावनाओं पर रोशनी डालेंगें।

कौन हैं आलोक राय
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लम्बे समय तक देश-विदेश में अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य का अध्यापन कर चुके आलोक राय हिंदुस्तान के उन चुनिंदा लेखकों में अग्रणी हैं, भाषा के संदर्भ में राजनीति, साहित्य और समाज की जटिल गतिकी पर जिनके विचारों को बहुत गौर से सुना जाता रहा है.  उनका जन्म 16 जुलाई, 1946 को जबलपुर, मध्य प्रदेश में हुआ। आपने 1966 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. किया। 1968-71 तक ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में रोड्स स्कॉलर रहे। वहाँ से लौटकर इलाहाबाद आए। 1977 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। उसके बाद कॉमनवेल्थ एकेडमिक स्टाफ़ स्कॉलरशिप पर यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन गए और 1982 में वहाँ से पी-एच.डी. की। 1991 में आई.आई.टी. दिल्ली में प्रोफ़ेसर नियुक्त हुए। 2002 में दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन शुरू किया। 1985-87 तक नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम एंड लाइब्रेरी के फ़ेलो रहे। 1985 में आईसीएसएसआर के सीनियर फ़ेलोशिप से सम्मानित हुए।
ऑरवेल एंड द पॉलिटिक्स ऑफ़ डिस्पेयर और हिन्दी नेशनलिज़्म उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय से रिटायर होने के बाद इन दिनों वे इलाहाबाद में रह रहे हैं।