काव्य रचना / शान्ति व सद्भाव / डॉ. उपासना पाण्डेय
आओ ! 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का आरम्भ करें ,
स्व-स्व कर स्वार्थनीति का हम न दम्भ भरें ।
अतः शान्ति व सद्भाव का हम वरण करें ,
मानवता का किसी तरह न क्षरण करें ।
प्रभु ने दी हमें जो प्राकृतिक अमूल्य धरोहर ,
संतुलित उपभोग करें उसका, प्रकृति संजोकर।
विकास का आधार लेकर नहीं करें दोहन ,
नहीं तो आपदाओं के द्वारा दण्डित करेंगे मोहन !
आतंक को मानवता पर हावी न होने दें ,
अशान्ति को विश्व में प्रभावी न होने दें ।
सद्गुणों का मानव-मन में हम वपन करें ,
शान्ति व सद्भाव द्वारा इनका शमन करें।
धर्म व संस्कृति का सर्वत्र प्रभाव बढ़े ,
मानवता में श्रेष्ठ मूल्यों का चाव चढ़े ।
जन-जन में नैतिक मूल्यों का शिल्प गढ़ें,
प्रसृत नैतिक अवमूल्यन की जड़ें उखड़ेंं ।
रामराज्य की संकल्पना को हम साकार करें ,
दैहिक, दैविक व भौतिक तापों का नाश करें।
ऐसी नैतिक शिक्षा का बालमन में संधान करें,
जिससे युवा होकर वह सामाजिक उत्थान करें।
-(स्वरचित)डॉ. उपासना पाण्डेय
प्रयागराज- (उत्तर प्रदेश) ।