लघुकथा/ शौक
-सुनो यार , हर समय बगल में कैसी डायरी दबाए रखते हो ?
-यह ,,,यह मेरा शौक है ।
-यह कैसा अजीब शौक हुआ ?
-मेरे इस शौक से कितने जरूरतमंदों का भला होता है ।
-वह कैसे ?
-इस डायरी में सरकारी अफसरों के नाम , पते , फोन नम्बरों के साथ साथ उनके शौक भी दर्ज हैं ।
-इससे क्या होता हैं ?
-इससे यह होता हैं कि जैसा अफसर होता हैं वैसा जाल डाला जाता हैं । जिससे जरूरतमंद का काम आसानी से हो जाता हैं ।
-तुम कैसे आदमी हो ?
-आदमी नहीं । दलाल ।
और वह अपने शौक पर खुद ही बड़ी बेशर्मी से हंसने लगा ।
-कमलेश भारतीय