समाचार विश्लेषण/सिद्धू अपनी ही क्रीज में कैद ?
-*कमलेश भारतीय
पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू क्या अपनी ही क्रीज में बंद या कैद होकर रह गये हैं ? जो स्थितियां बनीं उन्हें देखकर तो ऐसा ही लगता है कि सिद्धू सचमुच बेबस होकर क्रीज में कैद होकर रह गये हैं । ऐसे में क्रिकेट खिलाड़ी या तो बड़ा शाॅट लगाता है या फिर कैच आउट हो जाता है ।
सिद्धू ने राजनीति में प्रवेश भाजपा के मंच पर किया था और खूब वाहवाही के बीच चुनाव जीता लेकिन जब भाजपा को जरूरत थी इनके किसी राज्य में चुनाव प्रचार की तब ये महाशय बिग बॉस में अपना बैग लेकर चल दिये । मुश्किल से इन्हें वापस बुलाया जा सका । पंजाब के पिछले विधानसभा चुनाव से पहले आप के अरविंद केजरीवाल के साथ ब्रेकफास्ट करने गये लेकिन चुनाव निकट आने तक कांग्रेस में शामिल हो गये और अमृतसर से जीते, मंत्री भी बने लेकिन कैप्टन के साथ मतभेद होते होते विवाद शुरू हो जाने से मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर बाहर आ गये । इनकी पत्नी को भी कोई सम्मानजनक पद नहीं मिला । फिर अभियान चलाया कैप्टन अमरेंद्र सिंह के खिलाफ । विधायकों के घर घर जाकर मिले और कैप्टन की चुनाव से छह माह पूर्व कांग्रेस हाईकमान ने छुट्टी कर दी । इसके बावजूद सिद्धू को मनचाही मुख्यमंत्री की कुर्सी न मिली । अचानक से छींका टूटा चरणजीत सिंह चन्नी के सिर पर । कुछ दिन चन्नी का हाथ पकड़कर चले लेकिन फिर अपनी चाल पर आ गये और सवाल पर सवाल और बवाल पर बवाल करने लगे । जहां तक कि अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा देने की घोषणा कर दी । कांग्रेस हाईकमान ने मनाया और अध्यक्ष बनाये रखा । सिद्धू भी मान गये इस उम्मीद में कि क्या पता मुख्यमंत्री पद हाथ लग ही जाते ।
अब पंजाब में आप ने भगवंत मान को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर दिया तो सिद्धू ने भी जोर लगाया कि चेहरा घोषित किया जाये । कहीं मुझे दर्शनी घोड़ा ही न बनाये रखना और हुआ वही जिस बात का सिद्धू को डर था । राहुल गांधी ने लुधियाना आकर चन्नी को ही मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर दिया और सिद्धू बगल में बैठे देखते रह गये । ऐसा होगा यह सोचा न था ।
अब कह रहे हैं कि आप के केजरीवाल मेरी पत्नी को टिकट देना चाहते थे लेकिन मुझे सिर्फ प्रचार की जिम्मेदारी दे रहे थे । उधर आप ने भगवंत मान को मुख्यमंत्री चेहरा भी घोषित कर दिया । इस तरह सिद्धू का आप में जाना भी रह गया । वहां भी कोई इन्हें मुख्यमंत्री चेहरा स्वीकर करने को तैयार नहीं था । वहां भी दरवाजे बंद पाकर कांग्रेस में ही बैठे रह गये । लेकिन एक भेद तो खुल ही गया कि कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रहते भी सिद्धू कांग्रेस के नहीं थे और जुगाड़ में थे कि कहीं से मुख्यमंत्री बनाने का भरोसा मिले तो चला जाऊं हाथ झटक कर ।
कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने इस सारे प्रकरण पर फिर कहा कि सिद्धू चुप नहीं बैठेने वाला और फिर कोई नया धमाका करेगा और कांग्रेस देखती रह जायेगी । एक बात सिद्धू को समझ लेनी चाहिए कि वे मुख्यमंत्री पद से चूक गये हैं और सचमुच हर पार्टी इन्हें प्रदर्शनी घोड़े के बराबर ही अहमियत देती है । समय गंवाने से पहले ही सिद्धू को यह बात समझ लेनी चाहिए और जितनी जल्दी समझेंगे उतनी जल्दी उनमें राजनीतिक मैच्योरिटी आयेगी ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।