समाचार विश्लेषण/छोटा कंबल, बड़ा सवाल
-कमलेश भारतीय
फिर एक बार दहेज लोभ सामने आया । मामला बेशक अम्बाला का है लेकिन इसका असर पूरे समाज पर पड़ा है और पड़ना चाहिए । पिंजौर से एक डेंटल सर्जन शादी के लिए बारात लेकर अम्बाला आते है -बैड बाजे सहित । बारात खाना खा रही है और उधर मिलनी की रस्म चल रही है । इतने में धमाल हो जाता है क्योंकि डेंटल सर्जन साब के चाचा जी को मिलनी में छोटा कम्बल दिया गया है । मामला बढ़ता जाता है और इतना बढ़ जाता है कि विवाह मंडप में जाने की बजाय दूल्हे के परिवार को पुलिस स्टेशन जाना पडता है । रात भर विवाद और फिर समझौता जिसमें साढ़े चार लाख रुपये वधू पक्ष की भरपाई के रूप में अदा करने पड़ते हैं । हालांकि बाद में दूल्हे महोदय शादी को राजी हो जाते हैं लेकिन परिजन नहीं मानते । वै कहते हैं कि अभी शादी में यह हाल और हंगामा है तो आगे क्या होगा? सही कहा जब ट्रेलर ही ऐसा तो पूरक फिल्म कैसी होगी ? इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है । यह सही सबक । क्राइम पेट्रोल वाली टैग लाइन-सीख एक को , सबक हम सब को । दूल्हे महोदय शिमला में डेंटल सर्जन हैं पर उनके देखने और,दिखाने के दांत अलग हैं जैसे हाथी के ।
जब सक्रिय पत्रकारिता में था । तब कुछ वर्ष पूर्व चरखीदादरी में ऐसा ही एक मामला सामने आया था जब विवाह के साथ फेरे लेने के बाद ऐन आखरी वक्त दुल्हन ने जाने से इंकार कर दिया था । बहुत चर्चा हुई और मैं भी हिसार से अपने साथियों सहित गया । बड़ी मुश्किल से हमें उस लड़की से परिवार जनों ने मिलने दिया क्योंकि लाइव शोज के कारण वह लड़की बुरी तरह परेशान हो चुकी थी । आखिर सिर्फ एक सवाल करने की अनुमति मिली ।
मैंने लड़की को कहा कि आज पहली बार मुझे दुख हो रहा है कि मेरे दो बेटियां ही हैं । काश । मेरी बेटी जो तुम्हारी उम्र की है बेटा होती । मैं तुम्हें उसके लिए मांग लेता । इस तरह उसे सहज कर सवाल पूछा कि बस इतना बता दो कि आखिर सात फेरों के बाद भी विदा होने से इंकार क्यों कर दिया ?
सर । जब मेरा दूल्हा मुझे विदा कराने ऊपर कमरे में आया तब पीछे पीछे उसकी बहन और जीजा भी चले आए । जोड़ा ने कहा कि दुल्हन तो है लेकिन गाड़ी कहां है ?
मैं कोई जवाब देती , उसके जीजा ने खुद ही जवाब दे दिया कि कोई बात नहीं । दुल्हन ले चल । गाड़ी अपने आप पीछे पीछे देने आएंगे । मैं अपने दूल्हे की ओर देखती रही पर उसने कोई विरोध नहीं किया । बस । मैं बाहर खड़े अपने पिता के पास दौड़ी गयी और गले लग कर कहा -पापा । मैं यह शादी तोड़ रही हूं । मैं इस दूल्हे के साथ नहीं जाऊंगी । जो आज दहेज का विरोध नहीं कर सकता , वह कल क्या करेगा ? जाहिर है खबर प्रकाशित हुई और मुझे वाहवाही भी मिली लेकिन क्या फायदा? यह दहेज खत्म तो नहीं हो रहा । मांगने वाले ने एक बड़ा कम्बल ही मांग लिया । क्या जीवन भर यह बड़ा कम्बल साथ देता ?
न जाने कितने लेखकों ने दहेज के विरोध में लिखा । मुंशी प्रेमचंद जी का निर्मला इसी तरह के समाज को दर्शाता है और बेमेल विवाह होता है । खुद मैंने कहानी लिखी -नीले घोड़े वाले सवारों के नाम । पता नहीं कितने कितने ग्रंथ लिखे गये लेकिन यह दहेज दानव मारा नहीं जा सका । फिर भी शाबाश बेटी और उसके परिवार जनों । आपने सही सबक सिखाया ।
इक चिंगारी कहीं से ढूंढ लाओ दोस्तो
तेल से भीगी हुई बाती तो है ,,,,