समाचार विश्लेषण/कोई कंगना को आज़ादी का संघर्ष बताओ भाई
-*कमलेश भारतीय
किसी की आंख पर पट्टी बंध जाये और आप उम्मीद करें कि वह सही रास्ते पर जायेगा तो यह सोच गलत है । ऐसे ही हमारी नयी नवेली पद्मश्री व फिल्म अभिनेत्री कंगना की आंखों पर सन् 2014 की पट्टी बंधी है और उससे किसी सीधे या सही बयान की उम्मीद लगाना बेकार है । सन् 2014 को वह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को ही असली आज़ादी मान रही है । कंगना का कहना है कि एक मरी हुई सभ्यता जिंदा हुई थी अपने पंख फड़फड़ाती हुई उस समय । अब गर्जना कर रही है और ऊंची उड़ान भर रही है । लोग हमें शर्मिंदा नहीं कर सकते कि हम अंग्रेज़ी नहीं बोल सकते ।
है न मज़ेदार व्याख्या सन् 2014 की असली आज़ादी की ? शायद कंगना सभी इतिहासकारों से ऊपर है या इतिहास की सबसे बड़ी अनाड़ी । कंगना सन् 1857 को तो प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मानती है लेकिन पंद्रह अगस्त , 1947 को असली आज़ादी नहीं मानती क्योंकि उसके मुताबिक मुझे बताओ कि सन् 1947 में कौन सी जंग लड़ी गयी थी ? कोई कंगना से पूछे कि क्या जंग एक ही दिन लड़ी गयी थी ? प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद से जो नब्बे वर्ष बीते वे हिंदुस्तानियों के लिए हर दिन एक जंग के बराबर था । आखिरकार अंग्रेजों ने मन ही मन हार स्वीकार कर ली लेकिन जाते जाते भी शरारत या बहुत बड़ी चाल चल गये कि दो मज़हबों के आधार पर दो टुकड़े करते गये । इसीलिए सुभाष चंद्र बोस ने एक ही लाइन लिखी थी -डिवाइड एंड रूल । यही किया अंग्रेजों ने आखिरी दिन तक तो क्या यह भीख थी ? किसे भीख कह रही बो कंगना और बहुत जिद्द कि तुम्हारी बात को मान लिया जाये ? कैसे मान लिया जाये ? शहीदों का , स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान कर माफी मांगने की बजाय चुनौती देने पर उतर आई हो ? सुभाष चंद्र बोस की किसी ने हत्या नहीं की । इतिहास बताता है कि वे एक विमान दुर्घटना में लापता हो गये थे और आज तक यह रहस्य ही है कि उनका क्या हुआ ? वे कहां गये ? उन्हें कभी गुमनामी बाबा के रूप में खोजा गया लेकिन बात आज तक रहस्य ही है । अंग्रेज ने विभाजन की लकीर खींची तो या इंकार करते या फिर स्वीकार करते? यही सच्चाई थी कंगना और नब्बे साल के लम्बे संघर्ष के बाद इस रक्तरंजित स्वतंत्रता को स्वीकार कर लिया गया क्योंकि संघर्ष और कितना लम्बा खींचा जा सकता था ? आप जवाब चाहती हो । क्या जानती हो कि कहने वालों ने तो सन् 1977 के बाद आई जनता सरकार को भी दूसरी आज़ादी कहा था ? फिर इसके मुताबिक तो सन् 2014 की आज़ादी तो तीसरी आजादी मानी या कही जायेगी ? कि नहीं? एक फिल्म बनाने के लिए थोड़ा इतिहास पढ़ने पर आप कोई विशेषज्ञ नहीं हो गयीं इतिहास की । जरा अपनी बात को ठंडे मन से सोचो और देश से व स्वतंत्रता सेनानियों से माफी मांग लो । यही सही रास्ता है बाकी आपने भीख मांग कर पद्मश्री लिया है उसे कैसे लौटाओगी ? कभी नहीं लौटाओगी । हां , अपने इस बयान के चलते नये नये जो केस हो रहे हैं उनका सामना करने के लिए तैयार रहो । इधर हमारे हिसार जिला के हांसी शहर की एक महिला वकील सुनीता ने भी आपके बयान के खिलाफ एस पी को शिकायत देकर मांग की है कि कंगना के खिलाफ केस दर्ज किया जाये । कंगना ने सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए जानबूझकर दे की एकता को चोट पहुंचाने वाला बयान दिया है । सुनीता ने कंगना को गिरफ्तार करने की मांग की है ।
इस तरह की बयानबाज़ी बहुत महंगी पड़ सकती है , कंगना । यह देश कोई सन् 2014 में नहीं बना । इस देश की नींव को स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने खून से सींचा है न कि बयानबाज़ी से ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।