जीएनडीयू के हिंदी विभाग द्वारा विशेष व्याख्यान का आयोजन

अमृतसर: गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर के हिंदी-विभाग द्वारा चलाई जा रही व्याख्यान माला के अंतर्गत 'भारतीय ज्ञान परंपरा और हिंदी साहित्य' विषय पर एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। विभाग के अध्यक्ष और डीन,भाषा संकाय प्रो. सुनील ने आमंत्रित विद्वानों हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़ (हरियाणा) के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. बीर पाल सिंह यादव और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) की प्रोफ़ेसर प्रीति सागर का स्वागत करते हुए उनका परिचय दिया। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के यशस्वी उप-कुलपति प्रो. करमजीत सिंह के कुशल नेतृत्व और प्रेरणा से हिंदी विभाग द्वारा निरंतर साहित्यिक गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने विषय की महता बताते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा और अन्य ज्ञान प्रणालियों को हिंदी के जरिए विश्व की बड़ी आबादी तक पहुंचाया जा सकता है और हर प्रकार के ज्ञान-विज्ञान की जड़ें भारतीय संस्कृति और वांडमय में निहित हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी हमारे स्वाभिमान और गर्व की भाषा है। हिंदी ने हमें विश्व में एक नयी पहचान दिलाई है। प्रो. बीर पाल सिंह यादव ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा और हिन्दी साहित्य का संबंध बहुत गहरा है। भारतीय ज्ञान परंपरा, हिन्दी साहित्य को समृद्ध और अधिक समाज सापेक्ष बनाती है। भारतीय ज्ञान परंपरा में ज्ञान, विज्ञान, धर्म, कर्म, भोग, और त्याग का समन्वय है। हिन्दी साहित्य में पर्यावरणीय चेतना, भारतीय ज्ञान परंपरा की गहरी जड़ों से जुड़ी हुई है।हिन्दी साहित्य, भारतीय ज्ञान परंपरा का एक मुख्य और अतुलनीय स्रोत है।
भारतीय ज्ञान परंपरा के संदेशों को भक्तिकालीन संतों ने अपनी कविताओं में पिरोकर जन-जन तक पहुंचाया। कबीरदास, तुलसीदास, सूरदास आदि कवि स्वयंज्ञान को महत्व देते हैं। समूचा हिंदी साहित्य इसी भावना से ओत-प्रोत है। साहित्य चिंतकों का मानना है कि परमात्मा की प्राप्ति ज्ञान और प्रेम के आधार पर ही हो सकती है। शोधार्थियों को अपने विषय का चुनाव करते समय और शोध प्रपत्र लिखते समय इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
प्रो. प्रीति सागर ने अपने संबोधन में कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा, भारत की सांस्कृतिक विरासत, रीति-रिवाज, विश्वासों और ज्ञान प्रणालियों को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित कर रही है तथा भारतीय ज्ञान परंपरा, भारत की बौद्धिक संपदा है जो पीढ़ियों से चली आ रही है। उन्होंने वैदिक सभ्यता से लेकर वर्तमान सभ्यता तक भारतीय ज्ञान परंपरा पर अपने विचार अभिव्यक्त किये। इस अवसर पर विभागीय अध्यापकों डॉ. सपना शर्मा, डॉ. लवलीन कौर, मैडम पिंकी शर्मा सहित विभाग के शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।