डॉ. मंगल सैन जयंती पर विशेष- डॉ. मंगल सैन ने प्रदेश में गठबंधन की राजनीति की नींव रख कांग्रेस को दिखाया था बाहर का रास्ता।

डॉ. मंगल सैन जयंती पर विशेष- डॉ. मंगल सैन ने प्रदेश में गठबंधन की राजनीति की नींव रख कांग्रेस को दिखाया था बाहर का रास्ता।

सब मानते थे डॉ. मंगल सैन का लोहा।

रोहतक, गिरीश सैनी।

हरियाणा की राजनीति में गठबंधन के माध्यम से कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने वाले व प्रदेश में भारतीय जनसंघ और भाजपा को ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले डॉ. मंगल सैन का जन्म 27 अक्टूबर 1927 को सरगोधा जिले के गांव झांवरिया (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। युवा अवस्था में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आने का बाद वे पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर संघ के प्रचार कार्य में जुट गए। 17 साल की अल्पायु में ही वे जम्मू-कश्मीर में संघ के प्रचारक बने। उन्होंने 1947 में विभाजन के समय अद्भुत साहस का परिचय दिया। उसके बाद वे रोहतक, भिवानी व हिसार में संघ के प्रचारक रहे। उन्होंने बीए व एलएलबी की शिक्षा ग्रहण की।

वर्ष 1951 में जनसंघ की स्थापना के बाद वे राजनीति में सक्रिय हो गए। संयुक्त पंजाब के समय 1957 में उन्होंने पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और विजयी हुए। वे लगातार दो बार संयुक्त पंजाब विधानसभा के सदस्य चुने गए और उन्होंने अहम मुद्दे उठाकर विधानसभा में अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने पंजाब सरकार पर दबाव डालकर रोहतक में मेडिकल कॉलेज व अस्पताल की स्थापना करवाई थी, जिसे अब स्वास्थ्य विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हो चुका है। उन्होंने प्रदेश में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, रोहतक में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय तथा आकाशवाणी केंद्र की स्थापना करवाई। डॉ. मंगल सैन जनता पार्टी के शासनकाल के दौरान 1977 में हरियाणा के शिक्षा व उद्योग मंत्री रहे। शिक्षा मंत्री होने के नाते उन्होंने रोहतक विश्वविद्यालय का नाम महर्षि दयानन्द के नाम पर रखवाया।

1971 में उन्होंने हिन्दू शिक्षण संस्थान की स्थापना की थी। कॉलेज स्थापना के अभियान में जुटे रहने के कारण उन्हें 1972 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। डॉ. मंगल सैन द्वारा लगाया गया शिक्षा का यह पौधा अब वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका है।

वर्ष 1985 में चौ. देवीलाल व डॉ. मंगल सैन ने अधिकतर विपक्षी दलों को एक मंच पर लाकर हरियाणा संघर्ष समिति का गठन किया। राजीव-लौंगोवाल समझौते के खिलाफ विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था। उन्होंने सभी विपक्षी दलों को साथ लेकर राजीव-लौंगोवाल समझौते के खिलाफ जोरदार आंदोलन चलाया और इस समझौते के खिलाफ माहौल तैयार किया। इस आंदोलन के चलते 1987 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का सुपड़ा साफ हो गया। कांग्रेस को विधानसभा में 90 में से केवल 5 सीटें ही हासिल हुई। उनके विरोधी भी उनका लोहा मानते थे। वे हरियाणा के उपमुख्यमंत्री रहे। 2 दिसंबर 1990 को हृदय गति रुकने से उनका निधन हो गया।

उनके निधन के बाद से आज तक हरियाणा की राजनीति में उनकी भरपाई नहीं हो पाई है। हरियाणा के निर्माण में प्रदेश की राजनीति के भीष्म पितामह माने जाने वाले चौ. देवीलाल व डॉ. मंगल सैन की जोड़ी ने अहम भूमिका निभाई।

हिन्दी आंदोलन के दौरान भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई और उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी। आपातकाल के दौरान 19 माह तक वे करनाल जेल में रहे। राम मंदिर कार सेवा के लिए वे 2 नवंबर 1990 को अयोध्या गए थे। जहां उन्हें गिरफ्तार कर पीलीभीत जेल में रखा गया था। बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया था।

डॉ. मंगल सैन ने 1957, 1962, 1967, 1968, 1977, 1982 व 1987 में सात बार विधायक बनकर जिले में रिकॉर्ड बनाया। अपने राजनीतिक जीवन में उन्हें केवल दो बार 1972 व 1985 के उप चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। वर्ष 1982 व 1987 में उन्होंने चौ. देवीलाल की पार्टी से गठबंधन करके कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया।