खेल में राजनीति या राजनीति में खेल? 

खेल में राजनीति या राजनीति में खेल? 

-कमलेश भारतीय
कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण सिंह शरण पर महिला पहलवानों ने अनैतिक हरकतें करने के आरोप लगाये थे और लम्बे समय तक दिल्ली में इसके विरोध में न केवल महिला बल्कि पुरुष पहलवानों ने भी इनके साथ धरना दिया। इनमें एक कम उम्र वाली पहलवान भी शामिल थी, जिसके पिता ने बाद में बयान दिया कि उनकी बेटी के साथ कोई अनैतिक हरकत नहीं हुई बल्कि चयन में अन्याय हुआ। इस तरह पाक्सो एक्ट के दायरे से बाहर आ गये। 
पिछली सर्दियों की ये बातें हैं जब कम्बल ओढ़े ये पहलवान दिल्ली की सड़कों पर ठिठुरती रातों में विरोध की आवाज उठा रहे थे। फिर एक ऐसा दिन भी आया जब इन पहलवानों को सरेआम सड़क पर घसीटा गया और इनके हाथों में तिरंगा था। वह दिन भी आया जब ये पहलवान हरिद्वार गये अपने जीते हुए पदक गंगा में बहाने! इनको समझा बुझा कर पदक गंगा में विसर्जित करने से रोक दिया गया। बाद में केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर से बातचीत हुई और धरना छोड़ दिया। तब यह आरोप इन महिला खिलाड़ियों पर राजनीति से प्रेरित होने का आरोप भी लगाया गया और खासतौर पर हरियाणा के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा को निशाने पर लिया जाता रहा। फिर भी यह मामला सुलझाया गया और बृजभूषण सिंह शरण को अपने पद से हाथ मुक्त कर दिया गया। 
अब लगभग एक साल बाद साक्षी मलिक व बजरंग पूनिया ने फिर इस मुद्दे को हवा दी है। बजरंग पूनिया ने अपना पदक प्रधानमंत्री के आवास के पास फुटपाथ पर रख दिया, हालांकि पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह ने इन पदकों की कीमत पंद्रह पंद्रह रुपये बताते इन पहलवानों का मज़ाक उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। 
अब साक्षी मलिक ने यह आरोप लगाया है कि जो कुश्ती संघ के नये अध्यक्ष बनाये गये हैं वे पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के पार्टनर हैं और  उनसे भी न्याय की कोई उम्मीद नहीं और वे कुश्ती से संन्यास ले रही हैं। यहाँ तक तो खेल था लेकिन दुसरी फोटो जो बहुत तेजी से वायरल हुई उसमें साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गाँधी से औपचारिक भेंट करते दिखाई दे रहे हैं। अब कहा जा सकता है कि खेल में या खिलाड़ियों में राजनीति आ गयी है। 
यह कोई पहले खिलाड़ी नहीं जो राजनीति से हाथ मिला रहे हैं। इनसे पहले क्रिकेट के भगवान् सचिन तेंदुलकर को राज्यसभा में ले जाया गया लेकिन उन्होंने बड़ी विनम्रता से सत्ताधारी दल के लिए चुनाव प्रचार करने से साफ हाथ जोड़ दिये। क्रिकेट के ही पूर्व कप्तान अजहरुद्दीन को बरेली से टिकट मिला और वे जीते भी अब भी उनको हैदराबाद से टिकट दिये जाने के चर्चे हैं । चेतन चौहान, चेतन शर्मा भी राजनीति में आये। आजकल गौतम गंभीर दिल्ली से सांसद हैं। पहले पहल एक हाॅकी खिलाड़ी असलम शेर खान भी सांसद बने जिन्होंने ऐन आखिरी मिनट पर पेनल्टी शाॅट से गोल कर मलेशिया से हारने से बचाने में भूमिका निभाई थी। कोशिश तो धोनी को भी राजनीति में लाने की कम नहीं हुई लेकिन वे इस पथ से अभी तक दूरी बनाये हुए हैं। हरियाणा में हाॅकी के प्रसिद्ध खिलाड़ी संदीप सिंह पिहोवा से चुनाव जीते और मंत्री बने पर उन पर भी एक महिला कोच ने आरोप लगाकर उन्हें चक्रव्यूह में फंसा रखा है। बबिता फौगाट भी विथान सभा चुनाव लड़ी थीं लेकिन हार गयीं। कृष्णा पूनिया भी राजस्थान में राजनीति कर रही हैं। 
अब जिस तरह से साक्षी मलिक व बजरंग पूनिया प्रियंका गाँधी से हाथ मिला रहे हैं उससे ये साफ संकेत मिल रहे हैं कि खेल और राजनीति की सीमायें कम हो रही हैं। अगले साल होने वाले लोकसभा या विधानसभा में इन्हें टिकट दिये जाने के आसार बढ़ गये हैं। यानी राजनीति में खेल और खेल में राजनीति घुल मिल रहे हैं। जैसे वो गाना था-दो दिल मिल रहे हैं मगर चुपके चुपके नहीं खुल के!यह अलग बात है कि साक्षी सहित महिला पहलवानों के विरोध की उपेक्षा की गयी जिसके चलते संन्यास लेना ही एक रास्ता बचा था!