विद्यार्थी हमेशा अपने बुजुर्गों, माता-पिता, गुरुजनों और देश का करें सम्मान: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक के 18 वें दीक्षांत समारोह में की शिरकत।
1216 शोधार्थियों को पीएचडी की उपाधि से किया
रोहतक, गिरीश सैनी। भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक में आयोजित 18वें दीक्षांत समारोह में शोधार्थियों को पीएचडी की उपाधि से अलंकृत किया और उन्हें जीवन में सफल होने तथा बुजुर्गों की सेवा व देश के प्रति सम्मान भाव रखते हुए कार्य करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि आज के दीक्षांत समारोह में 1216 शोधार्थियों को पीएचडी उपाधि प्रदान की गई है और यह गर्व की बात है कि इनमें से 740 लड़कियां हैं, जोकि देश व हरियाणा में बदलाव के गौरवान्वित परिदृश्य को दर्शाता है कि किस प्रकार लड़कियां हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं।
18 वें दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति की धर्मपत्नी डॉ सुदेश धनखड़, हरियाणा के राज्यपाल और महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के कुलाधिपति बंडारू दत्तात्रेय, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत, उच्चतर शिक्षा मंत्री मूलचंद शर्मा भी उपस्थित रहे। इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत को विशेष तौर पर डॉक्टरेट की उपाधि दी गई।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शोधार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि इस संस्थान से शिक्षा ग्रहण करना व्यक्तिगत उपलब्धियों से कहीं आगे है। यह आनंदमय, अविस्मरणीय क्षण है। आप अपने पूरे जीवन में उन लोगों की यादों को संजोकर रखेंगे जिन्होंने हर कदम पर आपकी शिक्षा और संघर्षों को साझा किया है। आज आपके जीवन का एक नया अध्याय शुरू हो रहा है, आज के बाद आप वास्तविक जीवन में प्रवेश करेंगे और विभिन्न क्षेत्रों में अपना नाम रौशन करेंगे। परंतु एलुमनाई के रूप में अपने संस्थान से अवश्य जुड़े रहें। इससे संस्थान को आगे बढऩे में बहुत मदद मिलेगी।
उन्होंने कहा कि आप सभी शोधार्थी बहुत सौभाग्यशाली हैं, जिन्होंने इस अमृतकाल में शिक्षा ग्रहण की है, आपके पास एक पारिस्थितिकी तंत्र है और अपनी असीम ऊर्जा को उजागर करते हुए अपनी प्रतिभाओं व संभावनाओं का प्रयोग करते हुए आगे बढ़ें। यह अमृतकाल गौरवकाल है। उन्होंने कहा कि आज भारत दुनिया में बहुत आगे है, जितना पहले कभी नहीं था। आज से एक दशक या 15 साल पहले की स्थिति पर नजर डालेंगे तो पता लगेगा कि उस समय क्या स्थिति होती थी, कैसा वातावरण था। लेकिन आज ईमानदारी, जवाबदेही, पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा परक्राम्य तत्व हैं, ये ही शासन के अविभाज्य पहलू हैं।
उप राष्ट्रपति ने कहा कि एक समय था जब भारत तकनीकों के क्षेत्र में पीछे था और दूसरे देशों पर निर्भर रहता था, उसे इंतजार करना पड़ता था कि कैसे उस तकनीक को प्राप्त करे। अधिकांश देश अपने नियम और शर्तें निर्धारित करते थे और छोटा सा टुकड़ा ही हमें मिलता था। लेकिन आज भारत प्रौद्योगिकियों के नवीनीकरण के क्षेत्र में दुनिया के पहले 10 देशों में से एक है। हम उन देशों की अग्रिम पंक्ति में हैं जिन्होंने क्वांटम तकनीक पर ध्यान दिया और केंद्र सरकार ने इस क्वांटम मिशन के लिए 6000 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। इसका उद्देश्य वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना और क्वांटम प्रौद्योगिकी (क्यूटी) में एक जीवंत और नवीन पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है। इसके साथ ही, ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत साल 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए लगभग 19 हजार करोड़ रुपए की मंजूरी दी जा चुकी है। इन क्षेत्रों में आने वाले समय में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं और आज उपाधि प्राप्त विद्यार्थियों को इस दिशा में सोचना चाहिए।
उप राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों को कहा कि अपने जीवन में रिस्क लेने से न डरें, विफलता से न डरें, कुछ भी नया करने के लिए सदैव तैयार रहें, क्योंकि विफलता सबसे बड़ा गुरु है, जो सफल होना सिखाती है। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के शब्दों को दोहराते हुए कहा कि जीवन में असफल होना बड़ी बात नहीं है, बल्कि उसके बाद भी हार मान लेना सबसे बड़ी कमी है। आपका प्रयास करते रहना आपकी लगन को दिखाता है। असफलता इकोसिस्टम की होती है, लेकिन निरंतर मेहनत करने से सफलता निश्चित मिलती है। इसलिए जीवन में रिस्क अवश्य लें।
उपराष्ट्रपति ने विद्यार्थियों से कहा कि आपके जीवन में सफलता तो आएगी लेकिन अपने बुजुर्गों, माता-पिता, गुरुजनों और देश का सम्मान हमेशा आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसा देश है, जहां बुजुर्गों का सम्मान होता है, लेकिन जब कभी कोई यह कहता है कि मैं वृद्धाश्रम बना रहा हूं, तो बहुत पीड़ा होती है। क्योंकि हमारे देश में वृद्धाश्रम की कोई आवश्यकता ही नहीं है। इसलिए जीवन में सफलता मिलने के बाद भी अपने बुजुर्गों का ध्यान हमेशा रखें। भारत को जो विरासत मिली है, वह दुनिया के किसी देश को नहीं मिली है। भारतीयता हमारी पहचान है।
इस अवसर पर अपने संबोधन में हरियाणा के राज्यपाल एवं महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के कुलाधिपति बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आज इस विश्वविद्यालय का 18 वां दीक्षांत समारोह है और पीएचडी पाठ्यक्रम के लगभग 1200 से ज्यादा शोधार्थी पीएचडी उपाधि से अलंकृत हुए हैं। 12 शोधार्थियों को बेस्ट थीसिस अवार्ड तथा 3 शोधार्थियों को पदक से सम्मानित किया गया है।
उन्होंने सभी शोधार्थियों को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आप सबकी कड़ी मेहनत, लगन तथा कर्तव्य निष्ठा का प्रत्यक्ष परिणाम ये गौरवमय पीएचडी उपाधि है। आपके माता-पिता, परिजनों तथा गुरूजन को भी हार्दिक बधाई, जिनका साथ, मार्गदर्शन, शुभकामनाएं इस शैक्षणिक यात्रा में आपका संबल बनी है। उन्होंने कहा कि यह सौभाग्य है कि आप भारत के महान समाज सुधारक, विद्वान, आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती के नाम पर स्थापित भारत के इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से उपाधि प्राप्त कर रहे हैं। स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन, उनके कार्यों, उनके दर्शन से प्रेरणा लेकर आप सबको समाज कल्याण, राष्ट्र कल्याण तथा मानव कल्याण के लिए कार्य करना होगा।
उन्होंने कहा कि आज का युग प्रौद्योगिकी का युग है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स इत्यादि के क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। आप सभी अपने सामर्थ्य से अपने जीवन को सार्थक बनाएं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी दुनिया में भारत की ऊंची पहचान बनाने का प्रयास कर रहे हैं और इस प्रयास में आप सभी युवाओं का योगदान अति महत्वपूर्ण है।
दीक्षांत समारोह में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत, प्रदेश के उच्चतर शिक्षा मंत्री मूलचंद शर्मा, लोकसभा सांसद डॉ. अरविंद शर्मा, राज्यसभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा, पूर्व मंत्री मनीष कुमार ग्रोवर, उच्चतर शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव आनंद मोहन शरण, उपायुक्त अजय कुमार, जिला पुलिस अधीक्षक हिमांशु गर्ग, एसडीएम विवेक आर्य, अतिरिक्त उपायुक्त महेश कुमार, नगराधीश मुकुंद तंवर, मदवि के कुलपति प्रोफेसर राजबीर सिंह सहित अन्य गणमान्य अतिथिगण तथा शोधार्थी मौजूद थे।