प्रवासी और भारतीय लेखकों के सेतु: सुधा ओम ढींगरा
मूलतः जालंधर(पंजाब) की निवासी सुधा ओम ढींगरा न केवल एक कथाकार, कवयित्री बल्कि थियेटर, पत्रकारिता और समाज सेवा में भी बराबर सक्रिय हैं ।
-कमलेश भारतीय
मेरी पत्रिका विभोम-स्वर, प्रवासी व भारतीय लेखकों के बीच सेतु है और मेरे द्वारा लिए गए विश्व के पचास प्रवासी हिंदी लेखकों के साक्षात्कारों की दो पुस्तकों ने प्रवासी लेखकों को बहुत पहचान दिलवाई, पहले इन्हें कोई महत्व नहीं दिया जा रहा था। अमेरिका में पिछले चालीस साल से बसीं प्रसिद्ध लेखिका सुधा ओम ढींगरा ने यह बात खासतौर पर कही । मूलतः जालंधर(पंजाब) की निवासी सुधा ओम ढींगरा न केवल एक कथाकार, कवयित्री बल्कि थियेटर, पत्रकारिता और समाज सेवा में भी बराबर सक्रिय हैं । सुधा ओम ने बताया कि वे पोलियो सर्वाइवर हैं, पहले बारह वर्ष उनकी घर पर शिक्षा हुई, जिससे घर से बाहर जाकर अन्य बच्चों के साथ खेलने का आनंद भी न उठा पाईं लेकिन उनके माता-पिता डॉ. इंद्रजीत शर्मा और डॉ.शशिबाला शर्मा ने बहुत पॉजिटिविटी से उन्हें सदैव प्रोत्साहित किया और दयानंद आयुर्वेदिक कॉलेज से उनका ट्रीटमेंट करवाया जिससे वे पूर्णतया स्वस्थ हुईं।
डॉक्टर माता पिता की बेटी साहित्य में कैसे ?
कमलेश जी, शारीरिक कमज़ोरी की निराशा से बचाने के लिए बचपन से ही मेरे हाथों में कागज़ पेन्सिल पकड़ा दिए गए थे, छुटपन से ही वीर प्रताप और हिंदी मिलाप के बाल पृष्ठों से जुड़ गयी। साइंस में रुचि नहीं थी, डॉक्टर बनना नहीं चाहती थी और परिवार प्रगतिशील विचारों का था, तो लिखने के लिये प्रोत्साहित किया। पांच साल की उम्र में आकाशवाणी, जालंधर के बच्चों के कार्यक्रम में जाने लगी। फिर युववाणी और बाद में रेडियो नाटकों में हिस्सा लिया। पंजाब केसरी से भी जुड़ चुकी थी और सन् 1982 तक अपनी शादी से पहले अनेक लोगों के इंटरव्यूज़ लेती रही । माँ-बाप के सकारात्मक दृष्टिकोण ने मेरे व्यक्तित्व को बहुत निखारा।
स्कूल कॉलेज के दिनों में किन-किन गतिविधियों में भाग लेती रहीं या किनमें आपकी रुचि रही ?
डिबेट में हिस्सा लिया और थियेटर में भी सक्रिय रही। जालंधर, कपूरथला थियेटर के साथ जुडी रही। टैगोर थियेटर चंडीगढ़ में भी नाटक किये।
शादी कब हुई ?
सन् 1982 में डॉ. ओम ढींगरा के साथ जो वैज्ञानिक हैं। वे ग्लैक्सो कंपनी के वाइस प्रेजिडेंट रहे । अब अपनी दवाइयों की कंपनी चलाते हैं । बेटा विभु ढींगरा डॉक्टर है और बहू जेनी भी डॉक्टर हैं । सरीना व ऐडन मेरे पोता-पोती हैं।
कैसा सफर रहा जालंधर से अमेरिका तक ?
पहले-पहले मैं सोचती कि आख़िर मुझे अमेरिका क्यों भेजा ऊपरवाले ने ? जबकि मैं पंजाब में थियेटर, टीवी, रेडियो और पत्रकारिता में खुश थी, सक्रिय थी। कोई तो मकसद होगा ? बड़ी जल्दी समझ आ गया और मैं अमेरिका में हिंदी के काम में जुट गयी । न केवल हिंदी स्कूल खुलवाये बल्कि हिंदी कवि सम्मेलन भी आयोजित करवाने लगी । अंतराष्ट्रीय हिंदी समिति से जुड़ गयी । यूनिवर्सिटीज़ में हिंदी विभाग खुलवाये । हिंदी विकास मंडल के सहयोग से रामलीला मंचन व कवि सम्मेलन करवाती हूँ ताकि अमेरिका में आने वाली पीढ़ी का रामकथा से परिचय हो । रामलीला को नाटक के तौर पर मंचन करवाती हूँ। हिंदी के बहुत से नाटकों का मंचन और निर्देशन भी करती हूँ, हिस्सा तो लेती ही हूँ।
आप किस विधा में लिखती हैं ?
मूलतः कथाकार हूँ, कहानी व उपन्यास । वीर प्रताप , हिंदी मिलाप और पंजाब केसरी में खूब प्रकाशित हुईं मेरी रचनाएँ। पंजाब केसरी में 'और गंगा बहती रही' उपन्यास भी धारावाहिक प्रकाशित हुआ ।
अब तक कितनी पुस्तकें आईं ?
दो उपन्यास, सात कथा संग्रह , ग्यारह संपादित पुस्तकें और तीन काव्य संग्रह । विश्व के प्रवासी लेखकों के 50 इंटरव्यूज़ की पुस्तकें खूब चर्चित रहीं । कमलेश जी, वैसे मैं विद्यार्थी हूँ, सदैव कुछ न कुछ सीखती रहती हूँ ।
'विभोर स्वर' जैसी स्तरीय पत्रिका निकालने का विचार कैसे आया ?
पहले मैं कनाडा से प्रकाशित पत्रिका 'हिंदी चेतना' का संपादन करती रही पूरे सात साल। हिंदी चेतना टीम सिर्फ कनाडा तक सीमित रहना चाहते थे। मैं प्रवासी व भारतीय लेखकों के बीच सेतु बनना चाहती थी । इसलिए मैंने अपनी पत्रिका 'विभोर स्वर' का प्रकाशन सीहोर (मध्यप्रदेश) से पंकज सुबीर जैसे सशक्त लेखक के साथ शुरू किया। पंकज सुबीर मेरे साथ हिंदी चेतना में भी जुड़े हुए थे। मैं वैश्विक पुल बनना चाहती हूँ। पिछले सात साल से पत्रिका प्रकाशित हो रही है । इसमें न केवल भारत बल्कि भिन्न-भिन्न देशों के भी हिंदी लेखकों को स्थान मिला है । आपकी कहानी भी प्रकाशित की और लघुकथाएं भी ।
आपने पुरस्कार भी शुरू करवाये जिसका अभी भव्य आयोजन सीहोर में हुआ ।
जी । ये सब कुछ ढींगरा फैमिली फाउंडेशन के माध्यम से कर पा रही हूँ, जिसमें मेरे पति व परिवार का पूरा-पूरा सहयोग है । मेरा यह मानना है कि पुरस्कार निष्पक्ष आधार पर मिलने चाहिए । इसी धारणा से ये पुरस्कार शुरू किये । हालाँकि मैं सीहोर नहीं जा पाई, हमारी टीम ने ही सारा कार्य किया, मैं वर्चुअल सबके साथ जुड़ी रही। पर सभी का कहना है कि पुरस्कार समारोह बहुत भव्य रहा।
फिर समाजसेवा में कैसे ?
यह भी अपने माँ-बाप की प्रेरणा से । बचपन में उन्हें यही करते देखा । ढींगरा फैमिली फाउंडेशन के माध्यम से आदिवासी बच्चों के लिए काम कर रही हूँ । गरीब घरों की प्रतिभावान बालिकाओं को कम्प्यूटर शिक्षा देने के लिए स्कूल खोले हैं व व्यक्तित्व विकास के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं । प्रथम संस्था द्वारा स्लम एरिया में और एकल विद्यालय द्वारा आदिवासी एरिया में स्कूल खोले हैं ।
आगे क्या लक्ष्य ?
बस । चलते जाना है... नयी से नयी राहों की ओर । एक विद्यार्थी की तरह नये से नया सीखते जाना है ।
हमारी शुभकामनाएं सुधा ओम ढींगरा को और आप इस ईमेल पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं।