समाचार विश्लेषण/सुप्रीम कोर्ट, किसान आंदोलन और ट्रैक्टर परेड
-कमलेश भारतीय
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किसान आंदोलन पर भाजपा नेता सवाल करने लगे हैं कि अब किसान घर क्यों नहीं जाते ? है न मज़ेदार । किसान आंदोलन भाजपा नेताओं से पूछ कर शुरू नहीं हुआ और न ही उनसे पूछकर खत्म होगा । तीन कृषि कानूनों को भाजपा नेता सराहते नहीं थकते तो किसान इसका विरोध करने के लिए डटे हैं और इन कानूनों को रद्द करवा कर ही घर वापसी की घोषणा बार बार कर रहे हैं । यही नारा है किसानों का :
जब तक कानून वापसी नहीं
तब तक घर वापसी नहीं ।
सुप्रीम कोर्ट ने तीन कृषि कानूनों पर रोक लगा दी लेकिन किसान नेताओं का कहना है कि हमने कोर्ट से कुछ मांगा ही नहीं । हम कोर्ट से नहीं , केंद्र से इन कानूनों को रद्द करने की लड़ाई लड़ रहे हैं । इसलिए हम वापस क्यों जायें? हम अपना आंदोलन जारी रखेंगे । सुप्रीम कोर्ट को ये किसान नेता सम्मान देते हैं लेकिन दबी जुबान में रह बात भी चल निकली है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र की बोली बोल रहा है और सीबीआई की तरह कहीं दूसरा तोता तो नही बनता जा रहा? किसानों पर जैसे तीन कृषि कानून लादे और थोपे गये , लगता है वैसे ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी थोपा गया । इसलिए किसान इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं और चार में से तीन कमेटी सदस्य तो पहले ही सरकारी बोली बोल रहे हैं , फिर इनसे सत्यता और निष्पक्षता की उम्मीद कैसी की जा सकती है ?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी युवा दिवस के बहाने गांधी परिवार पर हमला बोलने से नहीं चूके और वंशवाद की आलोचना की लेकिन वे यह गूंज नहीं सुन रहे कि उन्हें तानाशाह की श्रेणी में रखा जाने लगा है ? क्यों ? उनकी और हिटलर की भाव भंगिमाएं एक समान दिखाने की सोशल मीडिया में होड़ लगी है । यह बहुत दुखद है ।
इधर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को यह विश्वास दिला कर आए हैं कि हमारी सरकार मजबूत है और पूरे पांच साल चलेगी । ऐसा विश्वास दिलाने की जरूरत क्यों आन पड़ी? क्या सरकार पर कोई संकट आ रहा है ? सरकार पर कोई आंच आ रही है ? क्या यह विश्वास खुद को ही दिला रहे हैं ? जबकि आधे निर्दलीय विधायक कह आए हैं कि कृषि कानूनों को रद्द किया जाए । मुख्यमंत्री जी अपने ही चुनाव क्षेत्र में किसान महापंचायत न कर पाए और यह प्रशासनिक जवाब जारी किया जाए कि मौसम की वजह से हेलीकाॅप्टर उतर नहीं पाया तो फिर किसानों पर लाठीचार्ज क्यों किया गया ? कसूर मौसम का और सज़ा किसानों को क्यों ? यार । झूठ तो ढंग का बोलो । सरकार मेरी । मुख्यमंत्री खट्टर भी कह रहे हैं कि कृषि कानून रद्द नहीं होंगे तो फिर नौ दौर की बातचीत किस बारे में रखी जाती रही ? क्या सिर्फ लंगर और पंगत में बैठने के लिए ? ट्रैक्टर परेड की तैयारियां जारी हैं और सरकार भी दिल्ली के रास्ते रोक रही है । राम भली करे । कोई टकराव की स्थिति न बने तो अच्छा है और किसानों की जानें पहले ही बहुत जा चुकी हैं । और जानें न जाएं । यही दुआ है । समय पर सुन लीजिए साहब । देर होती जा रही है । ज्यादा देर न कीजिए ।