ईवीएम से भी पहले यह सूरत?
-*कमलेश भारतीय
अभी तो विपक्ष को ईवीएम को कोसने का मौका ही नहीं मिला कि गुजरात के सूरत में जो 'निर्विरोध चुनाव' हुआ और जिसे लेकर बहुत तरह की खुशियां मनाई गयीं, जो स्वाभाविक है । इसके बावजूद जो बातें छन छन कर बाहर आई हैं, उनसे इस निर्विरोध चुनाव पर शंकायें व्यक्त की जाने लगी हैं, सवाल उठने लगे हैं । ऐसा कहा जा रहा है कि सूरत से कांग्रेस प्रत्याशी नीलेश कुंभाणी भाजपा से जा मिले और 'ऑपरेशन निर्विरोध' में पूरा सहयोग किया । कांग्रेस को कानों कान खबर न हुई कि हमारा प्रत्याशी क्या गुल खिलाने जा रहा है ! कांग्रेस की गुजरात इकाई को नीलेश ने अंधेरे में रखा, यहां तक कि डम्मी प्रत्याशी को भी अपने साथ मिला लिया । इससे भी बढ़कर इस 'ऑपरेशन निर्विरोध' की मज़ेदार बात यह सामने आई है कि कांग्रेस प्रत्याशी व डम्मी प्रत्याशी को साधने के बाद बसपा प्रत्याशी प्यारे लाल भारती की खोजबीन करने में क्राइम ब्रांच ने बड़ी कार्रवाई करते हुए बड़ोदरा के किसी फाॅर्म हाउस से लोकेशन के आधार पर ढूंढ कर सूरत में लाया गया और फिर फाइव स्टार होटल में ऐसा क्या जादू किया कि वे भी अपने नामांकन पत्र वापस लेने को खुशी खुशी तैयार हो गये । फिर बाकी बचे चार निर्दलीय प्रत्याशियों को भी आमने सामने बिठाया गया और वे भी हंसते खेलते अपने नामांकन वापस ले गये ! और इस तरह यह 'ऑपरेशन निर्विरोध' सफलतापूर्वक संपन्न हुआ और भाजपा अपनी लोकप्रियता साबित करने में जुट गयी । क्या अब विपक्ष ईवीएम को कोई दोष दे सकता है? ईवीएम तक आने की नौबत ही नहीं आई, भाई ! वही न मियां बीबी राजी, तो क्या करेगा काज़ी ? भाजपा नेता विपक्ष पर सही तंज़ कसते हैं कि आपसे अपना घर ही संभाला नहीं जा रहा तो हमें दोष किसलिए मढ़ रहे हो ? जब आपका प्रत्याशी ही आपके बस में नहीं, तो हम क्या कर सकते हैं ? एक बार तो कांग्रेस ने इन स्थितियों से बचने के लिए पश्चिमी बंगाल के विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशियों से बांड भी भरवाये थे और अब चूक गयी ! बांड भरवाया होता तो यह नौबत न आती लेकिन बांड भरवाने की नौबत क्यों आये ? क्या पार्टी के प्रति कोई समर्पण, विचारधारा के प्रति कोई श्रद्धा या फिर जनता के आगे जवाबदेही ? कुछ भी तो नहीं ! ये नये नये खेल हैं विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के ! यहा़ं सविधान या फिर निर्वाचन आयोग भी क्या कर लेगा ? क्या बिगाड़ लेगा, जैसे कहते हैं हरियाणा में कि शनि क्या पुंजर पाड़ लेगा?
इतना ही कह सकते हैं :
यह क्या जगह है दोस्तो
यह कौन सा दयार है
हदे निगाह तक यहां
गुबार ही गुबार है!
यह गुबार कौन साफ करेगा, यह तो बढ़ती ही जा रही है और नेताओं की आत्मा मरती ही जा रही है, भाई!
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।